नई दिल्ली। शिव सेना ने अपने मुखपत्र सामना में सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के अनिश्चितकालीन अनशन की घोषणा के कुछ घंटों बाद रद्द किए जाने पर तंज कसते हुए कहा कि अब उनको को बताना चाहिए कि वो किसान के साथ हैं या सरकार के साथ हैं?
संपादकीय में लिखा गया है, मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते अन्ना दो बार दिल्ली आए और उन्होंने जोरदार आंदोलन किया। इस आंदोलन की मशाल में तेल डालने का काम तो भाजपा कर रही थी लेकिन विगत सात वर्षों में मोदी शासन में नोटबंदी से लॉकडाउन तक कई निर्णयों से जनता बेजार हुई, लेकिन अन्ना ने करवट भी नहीं बदली, सामना में कहा गया कि अन्ना को आंदोलन सिर्फ कांग्रेस के शासन में करना है क्या? अन्ना द्वारा अनशन का अस्त्र बाहर निकालना और बाद में उसे म्यान में डाल देना, ऐसा इससे पहले भी हो चुका है। इसलिए अभी भी हुआ तो इसमें अनपेक्षित जैसा कुछ नहीं था।
अनिश्चितकालीन अनशन की घोषणा के कुछ घंटों बाद अन्ना हजारे ने अनशन किया रद्द
आपको बतां दें कि अन्ना हजारे ने शुक्रवार को कहा कि वह नए कृषि कानूनों के खिलाफ अनिश्चितकालीन अनशन नहीं करेंगे और दावा किया कि केंद्र सरकार उनकी कुछ मांगों पर सहमत हो गई है। केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी और भाजपा नेता एवं महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने दिन में हजारे से मुलाकात की। चौधरी ने कहा कि हजारे द्वारा मनोनीत कुछ सदस्यों के साथ एक उच्चस्तरीय समिति उनकी मांगों पर विचार करेगी और छह महीने में रिपोर्ट सौंपेगी। एक बयान में हजारे (84) ने घोषणा की थी कि वह शनिवार को महाराष्ट्र के अपने गांव रालेगण सिद्धि में भूख हड़ताल शुरू करेंगे। हजारे ने कहा था कि उन्होंने किसानों की दुर्दशा पर प्रधानमंत्री और केंद्रीय कृषि मंत्री को पांच बार पत्र लिखा था लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ । हजारे ने शुक्रवार को कहा, केंद्र सरकार ने मेरी कुछ मांगों पर सहमति जताई है और किसानों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए एक समिति गठित करने की भी घोषणा की है। मैंने शनिवार से शुरू हो रहे अपने प्रस्तावित अनिश्चितकालीन अनशन को स्थगित करने का फैसला किया है।