रायपुर। भाजपा विधायक एवं पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव द्वारा कोरोना वैक्सीन को लेकर लिए गए फैसले को मंत्रिमंडल के सामूहिक जवाबदेही के खिलाफ बताते हुए गंभीर मामला बताया है । उन्होंने इस विषय को लेकर आज ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पत्र लिखकर कहां है कि यह एक गंभीर मामला है आता आप स्वयं निर्णय करें की को वैक्सीन का इस्तेमाल शीघ्र से अति शीघ्र प्रदेश में हो । वह प्रदेश कोरोना मुक्त हो ।
अग्रवाल ने अपने पत्र में कहा है कि समाचार पत्रो से ज्ञात हुआ, प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को पत्र लिखकर, छत्तीसगढ़ के लोगो की जान की रक्षा के लिए आई हुई को-वैक्सीन को राज्य मे इस्तेमाल न करने और वापस लेने को कहा है। यह दुर्भाग्यजनक है। सरासर राज्य के नागरिकों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ का मामला है। आप दोनों के बीच कुर्सी की रस्सा-कस्सी के बीच, नागरिकों के जान की कीमत नहीं लगानी चाहिए। ये एक गंभीर नीतिगत फैसला है, जिसे सिर्फ कोई एक मंत्री नहीं ले सकता। इस तरह के फैसले मंत्रिमंडल ही ले सकता है वो भी जनता को ये आश्वसत कर कि आप उन्हे बेहतर विकल्प देंगे। पूरी दुनिया मे भारत की “को-वैक्सीन” और “कोविशील्ड” की मांग हो रही है। जर्मनी जैसा देश भी बार-बार भारत से इन वैक्सीन की मांग कर रहा है। यहाँ तक दुनिया 25 से अधिक देशो को 2.5 करोड़ से अधिक वैक्सीन के डोज, लोगो की जान बचाने के लिए भेजे जा चुके हैं, ऐसी स्थिति मे हमारे वैज्ञानिको द्वारा तैयार वैक्सीन पर सवाल खड़ा करना कहाँ तक उचित है ?
अग्रवाल ने कहा है कि जब छत्तीसगढ़ सहित पूरा देश कोरोना महामारी से जूझ रहा है, तो हमें लोगों तक जल्द वैक्सीन देने के लिए कदम उठाने की जरूरत है। केंद्र सरकार ने वैक्सीन के आपात इस्तेमाल को लेकर मंजूरी दी है, यह सही कदम है और जनता की ही भलाई के लिए है। दुनियाभर मे यही किया गया है, आपदा के घनघोर संकट को देखते हुये। किसी भी वैक्सीन को विकसित करने के लिए कई चरणों से गुजरना पड़ता है। इन चरणों को पूरा करने में आमतौर कई साल तक लग जाते हैं।
किसी भी वैक्सीन का फेज 01 के ट्रायल में सुरक्षा का परिक्षण होता है यानी यह देखा जाता है कि वैक्सीन देने पर कोई खतरा तो नहीं एवं इसका बेस्ट डोज क्या होना चाहिए। इस चरण के परीक्षणों पर “को-वैक्सीन” के परीक्षणों को दुनिया की जानी संस्थान लैसेंट ने अपने प्रतिष्ठित संक्रामक रोग से जुड़े जर्नल मे प्रकाशित किए हैं जिसमे के पहले चरण के ट्रायल के नतीजे अच्छी प्रतिरोधक क्षमता बिना किसी दुष्प्रभाव वाला बताया गया है। जबकि फेज 2 के ट्रायल में यह देखा जाता है कि जिस रोग के लिए वैक्सीन दी जा रही है, शरीर पर उसकी इम्यून प्रतिक्रिया पैदा होती है या नहीं और तीसरे फेज में यह देखा जाता है कि टीका लेने के बाद इन्फेक्शन को कितना रोका जा सका। ‘‘भारतीय वैज्ञानिको ने को-वैक्सीन के लिए बताया है कि इससे इम्युनिटी शरीर मे बनेगी, कोरोना से बचाव होगा, जो वायरस के रोगाणु को मार देती है या वापस बीमारी नहीं लाती, जबकि बाकी की वैक्सीन रोगाणु को लगभग मृत अवस्था में छोड़ देती है।
अग्रवाल ने कहा है कि भारत बायोटेक की कोवैक्सीन स्वदेशी वैक्सीन है और इस वैक्सीन के लिए भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने सहयोग किया है। भारत बायोटेक ने नवंबर में अपने थर्ड फेज के ट्रायल शुरू किये और देश भर में 25,000 से ज्यादा स्वयं सेवकों पर अपने ट्रायल हुआ, ’सुरक्षित है वैक्सीन’। इसी आधार पर ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की ओर से आपात इस्तेमाल को लेकर इन दोनों वैक्सीन को स्वीकृति मिलने के बाद विशेषज्ञो ने कहा कि यह वैक्सीन पूरी तरह से सुरक्षित हैं। साथ ही वैक्सीन को लेकर DCGI के निदेशक वीजी सोमानी ने भी दोनों वैक्सीन को पूरी तरह से सुरक्षित बताया हैं और यह भी कहा कि “अगर सुरक्षा से जुड़ा कोई भी संशय होता तो हम मंजूरी नहीं देते। ये वैक्सीन 110 प्रतिशत सुरक्षित हैं।
कई पब्लिक हेल्थ स्पेशलिस्टो ने कहा है, भारत बायोटेक की ओर से 25000 स्वयं सेवकों पर ट्रायल किये गए हैं और अब तक वैक्सीन की सुरक्षा पर कोई सवाल नहीं उठा है, दूसरा भारत बायोटेक की मंजूरी वैज्ञानिकों की विश्वसनीय तथ्यो के आधार पर दी गई है, यह सही कदम है और जनता की ही भलाई के लिए है।
अग्रवाल ने कहा है कि विशेषज्ञों की कमेटी ने अब तक के आंकड़ों को देखते हुए ही को-वैक्सीन को अप्रूवल दी, इसलिए हमें यह समझना चाहिए कि कोरोना महामारी के इस दौर में आप दोनों की खिचाव में छत्तीसगढ़ के नागरिकों को संकट में न डाला जाय।
अग्रवाल ने कहा है कि यदि मंत्री परिषद की स्वीकृति के बिना राज्य स्वास्थ्य मंत्री ने खुद फैसला लिया है तो यह मंत्रीमण्डल के सामूहिक जवाबदेही के खिलाफ है, गंभीर मामला है। अतः आप निर्णय करे की को-वैक्सीन का इस्तेमाल शीघ्र, अतिशीघ्र हो।