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बाल विवाह एक कुप्रथा है, जिसे जड़ से नष्ट किया जाना समाज के कल्याण के लिए अति आवश्यक है

Last updated: 2021/02/12 at 1:05 PM
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4 Min Read
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दुर्ग. राजेश श्रीवास्तव जिला एवं सत्र न्यायाधीश/अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण दुर्ग के मार्गदर्शन में रामजीवन देवांगन अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश एवं अजीत कुमार राजभानू अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा ग्राम कचांदुर एवं छावनी ग्राम में विशेष जागरूकता अभियान के अंतर्गत बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम के बारे में एवं बाल विवाह से हो रही परेशानियों के संबंध में जानकारी प्रदान की। उन्होंने बताया कि बाल विवाह बच्चों के अधिकारों का अतिक्रमण करता है। जिससे उन पर हिंसा शोषण तथा यौन शोषण का खतरा बना रहता है। बाल विवाह लड़कियों और लड़कों दोनों पर असर डालता है, लेकिन इसका प्रभाव लड़कियों पर अधिक पड़ता है। बाल विवाह बचपन खत्म कर देता है। बाल विवाह बच्चों की शिक्षा स्वास्थ्य और संरक्षण पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। बाल विवाह का सीधा असर ना केवल लड़कियों पर बल्कि उनके परिवार और सामुदाय पर भी होता है। बाल विवाह अधिनियम के अंतर्गत 21 वर्ष से कम आयु के पुरुष या 18 वर्ष से कम आयु की महिला के विवाह को बाल विवाह की श्रेणी में रखा जाएगा। इस अधिनियम के अंतर्गत बाल विवाह को दंडनीय अपराध माना गया है। साथ ही बाल विवाह करने वाले वयस्क पुरुष या बाल विवाह को संपन्न कराने वालों को इस अधिनियम के तहत 2 वर्ष के कठोर कारावास या एक लाख रुपए का जुर्माना या दोनों सजा से दंडित किया जा सकता है, किंतु किसी महिला को कारावास से दंडित नहीं किया जाएगा। इस अधिनियम के अंतर्गत किए गए अपराध संज्ञेय और गैर जमानती होंगे। इस अधिनियम के अंतर्गत अवयस्क बालक के विवाह को अमान्य करने का भी प्रावधान है। बाल विवाह समाज की जड़ों तक फैली बुराई लैंगिक असमानता और भेदभाव का ज्वलंत उदाहरण है।
यह आर्थिक और सामाजिक ताकतों की परस्पर क्रिया-प्रतिक्रिया का परिणाम है। जिन समुदायों में बाल विवाह की प्रथा प्रचलित है वहां छोटी उम्र में लड़की की शादी करना, उन समुदायों की सामाजिक प्रथा और दृष्टिकोण का हिस्सा है तथा यहां लड़कियों के मानवीय अधिकारों की निम्न दशा दर्शाता है। बाल विवाह से भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और यहां पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों को गरीबी की ओर धकेलता है। जिन लड़कियों और लड़कों की शादी का कम उम्र में कर दी जाती है उनके पास अपने परिवार की गरीबी दूर करने और देश के सामाजिक व आर्थिक विकास में योगदान देने के लिए कौशल, ज्ञान और नौकरियां पाने की क्षमता कम होती है। जल्दी शादी करने से बच्चे भी जल्दी होते हैं और जीवन काल में बच्चों की संख्या भी ज्यादा होती है। जिससे घरेलू खर्च का बोझ बढ़ता है। बाल विवाह बंद करने के लिए बहुत से देशों में पर्याप्त निवेश की कमी का एक कारण यह भी है कि इस कुप्रथा को जड़ से खत्म करने के लिए वित्तीय तौर पर उचित तर्क नहीं दिए गए हैं। लड़कियों को लड़कों की तुलना में बराबर महत्व ना दिए जाने के कारण यह धारणा है कि लड़कियों की शादी करने के अलावा कोई अन्य वैकल्पिक भूमिका नहीं है। उनसे यहां उम्मीद की जाती है कि वे शादी की तैयारी के लिए घर के काम-काज करें और घरेलू जिम्मेदारी उठाएं। बाल विवाह एक कुप्रथा है यहां प्राचीन काल में प्रचलित थी। जब लड़के-लड़कियों का विवाह बहुत ही कम उम्र में कर दिया जाता था। बाल विवाह केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में होते रहे हैं। भारत सरकार ने बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006, 1 नवंबर 2007 को लागू किया।

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