साजा। श्री हर्षण कुंज साजा में जानकी जीवन लाल जू का दिव्य एवं पावन अभिषेक किया गया। रात्रि में राजगद्दी महोत्सव हुआ। आयोजन में देश के विभिन्न धामों से पधारे साधु, संत, महात्मा तथा श्रद्धालु बड़ी संख्या में सम्मिलित हुये पूज्य आचार्य स्वामी अयोध्यादासजी, संत भगवानदासजी तथा महंत वैष्णवदासजी के सानिध्य तथा मार्गदर्शन में मंदिर का वार्षिकोत्सव हर्षोल्लास के साथ संपन्न हुआ। सुबह ठाकुर जी का जल, दूध, दही, घृत, मधु, सर्करा, सुगंधित तैल, औषधि, पंचामृत, ईख रस, गंधोदक आदि से वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पावन अभिषेक किया गया। आचार्य मिथिलेश शास्त्री जी ने पुजारियों सियारामदासजी व अवधकुमार तथा मृत्युंजय शुक्ला के सहयोग से अभिषेक संपन्न कराया। पश्चात् ठाकुर जी का श्रृॅगार कर विशेष आरती की गयी। ठाकुर जी के मंगल के लिये मंगलगीत गाये गये। बधाई के पदों का गायन किया गया। न्यौछावरी लुटायी गयी। पूरा मंदिर प्रांगण भगवान के जयकारों से गूॅज उठा। आचार्य स्वामी अयोध्यादासजी ने आशीर्वचन में कहा कि गुरूदेव भगवान ने भक्तों के सुख के लिये मंदिर की प्रतिष्ठापना की है। जैसे हम ठाकुर जी की प्रतीक्षा करते हैं वैसे ही ठाकुर जी भी बेसब्री से हमारी प्रतीक्षा करते हैं। अपना हृदय, मनमंदिर ठाकुर जी को बिठाने के लिये खाली रखें। उत्सवों को भक्तों का प्राण बताते हुये महाराज जी ने कहा इससे ठाकुर जी की प्रत्यक्ष अनुभूति होती है। देवतागण भी विविध रूपों में आकर उत्सवों का आनंद लेते हैं। संत भगवानदासजी ने कहा कि जैसे हम जन्मदिन, विवाह आदि की वर्षगाॉठ मनाते हैं उसी प्रकार यह मंदिर के स्थापना की वर्षगाॅठ है। प्रतिवर्ष बसंत पंचमी को मंदिर का वार्षिकोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। मंदिर के इन विग्रहों तथा साकेत के ठाकुर जी में कोई अंतर नहीं समझना चाहिये वस्तुत: दोनों एक ही हैं। प्रत्येक स्थिति में भगवान का ही बनकर रहना चाहिये। भगवान की आराधना, पूजा में व्यतीत किया गया समय और धन ही सार्थक है। भगवान से नाता जोड़कर ही सांसारिक रिश्ता निभायें। भगवान का भजन कीर्तन करने वाले ही हमारे सच्चे नाते रिश्तेदार हैं। जीव का भगवान से संबंध सनातनी है जबकि जगत का रिश्ता आगंतुकी है। भगवान हमें भवकूप से निकालने आते हैं। रात्रि में राजगद्दी महोत्सव हुआ प्रभु को सिंहासनारूढ़ कर संतों ने राजतिलक किया। राजा राम का पूजन तथा आरती की गयी। आयोजन में राघवेन्द्रदासजी, जुगलकिशोरदासजी, बिशंभरदासजी, रामाश्रयदासजी, अवधबिहारीदासजी, हरिरामदासजी, रामकुमारदासजी, मणिरामदासजी, बलरामदासजी, संत समाज प्रवक्ता भरतदासजी, वयोवृद्ध संत सियाशरणदासजी, रसिक संत स्वामीशरणदासजी, प्रभुदासजी सहित अयोध्या, मिथिला, वृंदावन, चित्रकूट, प्रयागराज, पौड़ीधाम, बनारस आदि तीर्थस्थलों से पधारे संत काफी संख्या में शामिल हुये।