नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स का दुरुपयोग रोकने के लिए गुरुवार को नए दिशा-निर्देशों की घोषणा की। इसके तहत उन्हें आपत्तिजनक सामग्री को तुरंत हटाना होगा और जांच में सहायता करनी होगी। इसके साथ ही शिकायत समाधान की व्यवस्था भी स्थापित करनी होगी।
सरकार ने इन दिशा-निर्देशों को अमल में लाने के लिए तीन महीने का समय दिया है। हालांकि, ये नियम केवल कंपनियों के लिए ही नहीं बल्कि यूजर्स के लिए भी हैं। किसी आपत्तिजनक पोस्ट के मामले में कंपनी को इस बात की जानकारी देनी होगी कि पोस्ट कहां से की गई और किसने की। ऐसे में गिरफ्तारी भी हो सकती है।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर होगी इस तरह से सख्ती, यूजर्स के लिए भी जरूरी
नए दिशा-निर्देशों के अनुसार किसी आपत्तिजनक पोस्ट के मामले में सोशल मीडिया कंपनियों को यह बताना होगा कि पोस्ट सबसे पहले किसने शेयर की। अगर पोस्ट भारत के बाहर से की गई है तो ये बताना होगा कि भारत में इसे सबसे पहले किसने जारी किया। यह नियम जितना कंपनियों के लिए है उतना ही यूजर्स के लिए भी। किसी भी तरह की पोस्ट करने से पहले यूजर को यह देखना होगा कि उसमें कुछ आपत्तिजनक तो नहीं है। क्योंकि ऐसी स्थिति में गिरफ्तारी भी हो सकती है।
नए नियमों में देश की संप्रभुता या सुरक्षा से जुड़े मामलों यहां तक कि कानून-व्यवस्था, विदेश नीति अथवा दुष्कर्म जैसे मामलों में भी जानकारी साझा करने की व्यवस्था की गई है। इसका साफ अर्थ है कि यूजर्स को बहुत ही सावधानी बरतनी होगी। क्योंकि इस तरह के किसी मामले के सामने आने पर कंपनी को संबंधित पोस्ट के मूल स्रोत की जानकारी देनी होगी। खासतौर पर उन मामलों में जिनमें अपराध सिद्ध होने पर 5 वर्ष तक की सजा हो सकती है।
इसके साथ ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को यूजर वेरिफिकेशन की व्यवस्था शुरू करनी होगी। इसके लिए एसएमएस या ओटीपी के जरिए यूजर का वेरिफिकेशन किया जा सकता है। मतलब अगर आप अपना फोन नंबर या कॉन्टैक्ट की जानकारी साझा नहीं करना चाहते हैं तो हो सकता है कि आने वाले समय में आप सोशल मीडिया का इस्तेमाल ही न कर पाएं। सरकार ने इसके लिए सोशल मीडिया कंपनियों को वॉलंटियरी वेरिफिकेशन मैकेनिज्म तैयार करने को कहा है।
सरकार की ओर से जारी किए गए इन दिशा-निर्देशों का पालन हो रहा है, यह सुनिश्चित करने के लिए सोशल मीडिया कंपनियों को चीफ कंप्लायंस अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी। यह अधिकारी भारत का निवासी ही होना चाहिए। इसके साथ ही एक नोडल संपर्क अधिकारी नियुक्त करना होगा, जिससे सरकारी एजेंसियां कभी भी संपर्क कर सकें। यह अधिकारी भी भारतीय होना चाहिए। इसके जरिए सरकार की मंशा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को उन्मुक्त होने से रोकना है।
ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के लिए होगी कुछ ऐसी स्थिति, पैरैंटल लॉक की सुविधा
ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को लेकर दिशा-निर्देश कहते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीष या इस क्षेत्र के किसी विशेषज्ञ की अध्यक्षता में एक निकाय बनाया जाए। ये निकाय शिकायतों की सुनवाई करेगा और उन पर आए फैसले मानेगा। यह वैसे ही होगा जैसे टीवी पर गलत जानकारी प्रसारित होने पर चैनल खेद जताते हैं। ऐसा करने के लिए उनसे सरकार नहीं कहती है।
ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और डिजिटल मीडिया को यह जानकारी देनी होगी कि उन्हें जानकारी कहां से मिलती है। इसके साथ ही शिकायतों को निपटाने के लिए एक व्यवस्था बनानी होगी। इसके तहत शिकायत का हल करने के लिए अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी, उसकी संपर्क जानकारी देनी होगी और तय समय में समस्या का समाधान करना होगा। अभी ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर शिकायतों के हल के लिए बहुत समस्या का सामना करना पड़ता है।
ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को अपना कंटेंट पांच श्रेणियों में विभाजित करना होगा। ये पांच श्रेणियां U (सबके लिए), U/A 7+ (सात वर्ष के अधिक आयु वालों के लिए), U/A 13+ (13 वर्ष से अधिक आयु वालों के लिए), U/A 16+ (16 वर्ष से अधिक आयु वालों के लिए) और A (वयस्क) हैं। U/A 13+ से ऊपर की श्रेणी के लिए पैरेंटल लॉक की सुविधा देनी होगी, ताकि बच्चों को इससे दूर रखा जा सके और जो कंटेंट जिसके लिए उचित है वही उस कंटेंट को देख सके।
इसके साथ ही ओटीटी प्लेटफॉर्म को ऐसी व्यवस्था तैयार करनी होगी जिससे यह पता लगाया जा सके कि यूजर की उम्र वयस्क किसी श्रेणी का कंटेंट देखने लायक है या नहीं। दिशा-निर्देशों में इसके लिए सरकार ने ओटीटी प्लेटफॉर्म्स से वेरिफिकेशन मैकेनिज्म तैयार करने के लिए कहा है। मतलब अगर किसी की आयु कम है और वह ऊपर की श्रेणी का कंटेंट देखना चाहता है, तो यह व्यवस्था बनने के बाद संभव नहीं होगा। अभी ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं है।
साल 2018 में हुई शुरुआत, सुप्रीम कोर्ट ने दिया दिशा-निर्देश बनाने का आदेश
सोशल मीडिया के लिए दिशा-निर्देश बनाने की जरूरत 2018 में महसूस हुई थी। 11 दिसंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा था कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी, दुष्कर्म, सामूहिक दुष्कर्म से संबंधित सामग्री डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से हटाने के लिए जरूरी दिशा-निर्देश बनाए। 24 दिसंबर 2018 को इसका ड्राफ्ट तैयार हुआ था।
किसान आंदोलन के बाद सबसे ज्यादा चर्चा में आया दिशा-निर्देशों का मुद्दा
26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिल्ली के लाल किले पर हुई हिंसा के दौरान सरकार ने सोशल मीडिया कंपनियों पर सख्ती की। उल्लेखनीय है कि सोशल मीडिया समेत अनेक मंचों पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (फ्रीडम ऑफ स्पीच) के सही और गलत इस्तेमाल को लेकर बहस लंबे समय से चली आ रही थी।
सरकार ने किसान आंदोलन को लेकर सोशल मीडिया कंपनियों के रुख पर कड़ा एतराज जताया था। सरकार ने कहा था कि अगल अमेरिकी संसद पर हमला होता है जो सोशल मीडिया पुलिस कार्रवाई का समर्थन करता है। वहीं, लाल किले पर हमला होता है तो यह दूसरी तरह से काम करने लगता ही। यह स्वीकार्य नहीं है।