देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में इन दिनों आग लगी हुई है। भले ही बीते तीन दिनों के भीतर पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में इजाफा नहीं हुआ है, लेकिन कीमतें जितनी बढ़ चुकी है, वह राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को उकसाने के लिए पर्याप्त है। वह भी तब, जबकि देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है।
बीते दो वित्तीय वर्षों पर यदि बात की जाए, तो 1 अप्रैल 2019 से 31 मार्च 2020 तक 5.56 लाख करोड़ और 1 अप्रैल 2020 से दिसंबर 2020 तक की स्थिति में केंद्र और राज्य सरकार को 4.21 लाख करोड़ यानी कुल मिलाकर 9.77 लाख करोड़ का राजस्व हासिल हो चुका है। गौर करने वाली बात यह है कि 22 मार्च से लेकर 30 जून 2020 तक देश लाॅक डाउन के प्रभाव में था, इसके बाद शुरु हुई अनलाॅक की प्रक्रिया के बावजूद स्थितियों को सामान्य होने में करीब दो माह का वक्त लग गया, तब की स्थिति में सरकारों को इतनी बड़ी रकम बतौर राजस्व प्राप्त हो चुकी है।
ऐसे में अब देश की जनता ना केवल केंद्र, बल्कि अपने राज्य की सरकारों की तरफ भी निगाहें जमाए हुए हैं कि उनकी सरकार उनके लिए आखिर कितनी राहत का नजराना दे सकती है। इस मामले में केंद्र सरकार की उदारता को लेकर सवाल खड़े करने में विपक्षी दलों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है, लेकिन मोदी सरकार जवाब देने में कोताही नहीं करती। लिहाजा पेट्रोलिमय पदार्थों की कीमतों में कमी लाए जाने पर विचार विमर्श शुरू हो चुका है।
मिल रहे संकेत के मुताबिक 15 मार्च के बाद पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में कमी संभावित है। पर ध्यान देने वाली बात यह है कि उपभोक्ताओं को राहत तब ही मिलेगी, जब राज्य की सरकारें, केंद्र के बढ़ते कदमों के साथ कदमताल करेंगी। यदि राज्य की सरकारों का लालच कम नहीं हुआ, तो ऐसे प्रदेश के लोगों को किसी कीमत पर राहत नहीं मिल सकती।