छत्तीसगढ़ के उच्च न्यायालय बिलासपुर मै दायर करीब 15 से 20 याचिकाओं पर लगातार सुनवाई करने के बाद जो फैसला सुनाया गया है, उससे छत्तीसगढ़ के बिल्डर, सफेदपोश तथा उनके समकक्ष लोगों में भय व्याप्त हो गया है और उनकी दौड़ सिविल लाइन के बड़े बंगले से लेकर महानदी भवन मंत्रालय नया रायपुर तक में देखी जा रही है।
उच्च न्यायालय बिलासपुर में 1950 के पहले जितने भी कोटवारी जमीन लोगों को अमल आवंटित की गई थी, जिस की खरीदी बिक्री नहीं हो सकती थी, इन 17 से 18 वर्षों में बड़ी संख्या में इनकी खरीदी बिक्री हो गयी ।
इतना ही नहीं शासन की घास जमीन की भी खरीदी बिक्री हो गई या फिर उन पर कब्जा कर लिया गया, किसानों की जमीन भी कम दाम पर जबरदस्त खरीदी बिक्री हो गयी । 50 रुपए के स्टांप पेपर में आज भी खरीदी बिक्री की लिखा पढ़ी लोगों के पास रखी हुई है, लेकिन केंद्र की भाजपा सरकार के कानून बना लेने के बाद 20000 रुपए से ऊपर के लेन देन चेक के माध्यम से होंगे उसके कारण रजिस्ट्री नहीं करवाई जा रही है।
लेकिन उन जमीनों पर बिल्डर और सफेदपोश लोगों ने कब्जा करके रख लिया है, इन सभी कोटवारी जमीन को वापस करने का आदेश उच्च न्यायालय बिलासपुर में दिया है, एक जमीन की कई कई बार खरीदी बिक्री हो चुकी है। कई जमीनों में प्लाट कटिंग होकर कालोनियां का निर्माण भी किया जा चुका है।
छत्तीसगढ़ शासन द्वारा नियुक्त एडवोकेट जनरल ने सचिव राजस्व विभाग सहित सभी संभागों के कमिश्नर और कलेक्टर लोगों को पत्र प्रेषित कर न्यायालय के आदेश का पालन करने का निर्देश दिया है। लेकिन उसका पालन नहीं किया जा रहा है, छत्तीसगढ़ सरकार को चाहिए कि इस संबंध में एक उच्च स्तरीय ईमानदार अधिकारियों की कमेटी बनाकर समय सीमा तय कर उपरोक्त सभी स्थानों को चिन्हित कर उस पर तत्काल निर्णय ले ऐसी व्यवस्था बनाएं और एक श्वेत पत्र भी जारी करें, उसमें उन तथाकथित लोगों के नाम हो जिसे प्रदेश की 2.88 करोड़ जनता जान सके और पहचान सके ।