देश में इस समय आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 12 मार्च को अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से श्पदयात्रा (फ्रीडम मार्च) को झंडी दिखाई तथा श्आजादी का अमृत महोत्सव की शुरुआत की। आजादी का अमृत महोत्सव भारत की स्वाधीनता की 75वीं वर्षगांठ मनाने के लिए भारत सरकार द्वारा आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों की एक श्रृंखला है। यह महोत्सव जनभागीदारी की भावना के साथ एक जन-उत्सव के रूप में मनाया जा रहा है।
हमने बचपन से यही पढ़ा है कि हमें 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी मिली थी। गुलामी के मायने और आजादी का संघर्ष क्या होता है, यह कभी सेल्युलाइड पर कभी पुस्तकों के माध्यम से हमारे सामने आता रहा है। इस आजादी की आग में न जाने कितने ही लोग हंसते हंसते कूद पड़े और देश के लिए कुर्बान हो गए। कुछ गुमनामी का हिस्सा बन गए, कुछ जुबानी तो कुछ यादों में रहे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब आजादी का अमृत महोत्सव की शुरुआत की, तो लोगों के मन में इसके नाम को लेकर जिज्ञासा भी रही। शायद इसके पीछे प्रधानमंत्री जी की हमारी प्राचीन परंपरा और संघर्ष से जुड़ी सोच रही होगी। आजादी क्या होती है, उसे पाने का संघर्ष क्या होता है, यह कोई 1947 के दौर में जाकर देखें, तो पता चले कि हमें आज सच में कितनी आजादी मिली हुई है।
वहीं अमृत शब्द की बात करें , तो इसका शाब्दिक अर्थ होता है ’’अमरता’’ है। भारतीय ग्रंथों में यह अमरत्व प्रदान करने वाले रसायन के अर्थ में प्रयुक्त होता है। यह शब्द सबसे पहले ऋग्वेद में आया है जहां यह सोम के विभिन्न पर्यायों में से एक है। व्युत्पत्ति की दृष्टि से यह यूनानी भाषा के ’’अंब्रोसिया’’ से संबंधित है तथा समान अर्थ वाला है। इसलिए जब स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा रही हस्तियों को एक बार फिर नए सिरे से याद करने और उनसे युवा पीढ़ी को अवगत कराने का मौका आया, तो इस अभियान के साथ अमृत यानी अमरता शब्द भी जुड़ गया। यह हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की दूरगामी और विस्तृत सोच का ही परिचायक है। इसलिए प्रधानमंत्री ने कहा- आजादी अमृत महोत्सव का अर्थ स्वतंत्रता की ऊर्जा का अमृत है। इसका अर्थ हुआ स्वतंत्रता संग्राम के योद्धाओं की प्रेरणाओं का अमृतय नए विचारों और संकल्पों का अमृत और आत्मनिर्भरता का अमृत।
स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं में हमारे जेहन में कई नाम अमिट स्याही की तरह बड़े-बढ़े अक्षरों में लिख से गए हैं। 1857 में भारतीय स्वतंत्रता के प्रथम युद्ध, मंगलपांडे का विद्रोह, विदेश से महात्मा गांधी के लौटने, सत्याग्रह की शक्ति का राष्ट्र को स्मरण कराने, लोकमान्य तिलक द्वारा पूर्ण स्वतंत्रता का आह्वान, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज का दिल्ली मार्च तथा दिल्ली चलो के नारे जैसे स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण क्षण क्या कभी कोई भूल सकता है। देश में उस दौर में स्वाधीनता आंदोलन के इस अलख को निरंतर जगाए रखने का काम प्रत्येक क्षेत्र में, प्रत्येक दिशा में देश के कोने-कोने में हमारे आचार्यों, संतों तथा शिक्षकों द्वारा किया गया था। भक्ति आंदोलन ने राष्ट्रव्यापी स्वाधीनता आंदोलन के लिए मंच तैयार किया। चैतन्य महाप्रभु, रामकृष्ण परमहंस, श्रीमंत शंकर देव ने एक राष्ट्रव्यापी स्वतंत्रता संग्राम की आधारशिला का निर्माण किया।
इस राष्ट्रव्यापी आंदोलन को याद करने के लिए आजादी की 75 वीं वर्षगांठ को चुना गया है और ये सच भी है कि इस पावन अमृत योगदान को स्मरण करने का इससे बेहतर मौका कोई और हो ही नहीं सकता। प्रधानमंत्री की दूरगामी सोच ने एक बार फिर आजादी के राष्ट्रव्यापी आंदोलन की याद ताजा कर दी है।
कंडेल का सत्याग्रह और बाबू का छत्तीसगढ़ आगमन आजादी का अमृत महोत्सव छत्तीसगढ़ में भी भव्यता और युवा पीढ़ी के जोश के साथ शुरू हुआ है। पहले ही दिन धमतरी के युवाओं ने ऐतिहासिक स्थल कंडेल तक साइकिल यात्रा निकाली। युवाओं के जोश ने उन दिनों की याद ताजा कर दी, जब यहां पर अंग्रेजों के तुगलकी जल कर फरमान को लेकर किसानों ने नहर सत्याग्रह किया था। इस सत्याग्रह की गूंज दिल्ली तक सुनाई दी और इसी से प्रभावित होकर पहली बार छत्तीसगढ़ के कंडेल गांव में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का आगमन हुआ। उन्होंने रायपुर में एक आम सभा भी ली थी।
इतिहास के पन्ने पलटे तो पता चलता है कि ग्राम कंडेल में 20 दिसंबर 1920 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का प्रथम छत्तीसगढ़ आगमन हुआ। बापू का रायपुर आने का मकसद स्वराज फंड और कंडेल सत्याग्रह ही था। इस दौरान उन्होंने कंडेल जाने के पहले रायपुर के आजाद चैक, आनंद समाज वाचनालय, गांधी चैक पर स्वराज फंड के लिए पैसे एकत्र किए। इतिहासकारों के मुताबिक इस दौरान महिलाओं ने फंड के लिए अपने सोने-चांदी के गहने भी न्यौछावर कर दिए थे। इसके अलावा कई लोगों ने स्वेच्छा से हजारों रुपये दान दिए थे।
दरअसल अंग्रेजों ने कंडेल गांव के ग्रामीणों पर नहर से पानी चोरी करने का आरोप लगा दिया। अंग्रेज, किसानों से भारी टैक्स लेना चाहते थे, लेकिन किसान टैक्स देने को राजी नहीं थे। अंग्रेजों ने किसानों को जेलों में डालना शुरू कर दिया। इस बीच उग्र आंदोलन को देखते हुए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं. सुंदरलाल शर्मा बापू को लाने के लिए कोलकाता गए। 20 दिसंबर, 1920 के दिन ही महात्मा गांधी कंडेल गए और वहां किसानों से बात की। अंततरू अंग्रेजों को किसानों का सभी टैक्स माफ करना पड़ा और किसानों की जब्त की गई सारी गोधन संपदा भी उन्हें लौटानी पड़ी। इतिहासकारों के मुताबिक छत्तीसगढ़ का कंडेल सत्याग्रह महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन का पूर्वाभ्यास साबित हुआ, क्योंकि कंडेल से वे रायपुर के रास्ते से ही नागपुर अधिवेशन में शामिल हुए, जहां गांधीजी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की है। इस प्रकार कंडेल नहर सत्याग्रह अंग्रेजों के खिलाफ बेहद कारगर कदम साबित हुआ।
छत्तीसगढ़ के आजादी के दीवाने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में छत्तीसगढ़ के वीर सपूतों का भी भरपूर सहयोग रहा। आजादी के दीवानों ने अंग्रेजी हुकूमत का बहिष्कार किया, जेल की सजा काटी। आजादी का अमृत महोत्सव हमें छत्तीसगढ़ के उन वीर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को नमन और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का सुनहरा मौका दे रहा है। इनमें से बहुत सी हस्तियों के नाम से पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने राज्यस्तरीय पुरस्कार भी शुरू किए हैं, जो हर साल विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वाली हस्तियों और संगठनों को प्रदान किए जाते हैं। इनमें वीर नारायण सिंह, वीर गुण्डाधुर, गेंदसिंह, हनुमान सिंह, ई राघवेन्द्र राव, ठाकुर प्यारेलाल सिंह, घनश्याम सिंह गुप्त, डॉ. खूबचंद बघेल, पंडित माधव राव स्प्रे, बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव, पंडित रविशंकर शुक्ल, पं. सुन्दरलाल शर्मा, ठाकुर छेदीलाल श्रीवास्तव, यति यतनलाल आदि शामिल हैं।
शहीद वीर नारायण सिंह देश की आजादी के लिए अपनी जान देने वालों में एक नाम छत्तीसगढ़ के शहीद वीर नारायण सिंह का भी आता है, जो बिंझवार आदिवासी समुदाय के थे, जिन्होंने अंग्रेजों के समर्थक का गोदाम लूट सारा अनाज गरीबों में बंटवा दिया था। वे पांच सौ आदिवासियों की फौज बना अंग्रेजी सेना से भिड़ गए थे, जिसके बाद अंग्रेजों ने 10 दिसंबर 1857 को रायपुर में बीच चैराहे पर उन्हें तोप से उड़ा दिया था। यह स्थल आज जयस्तंभ चैक के नाम से जाना जाता है। छत्तीसगढ़ के पहले वीर शहीद के नाम से आज नवा रायपुर स्थित देश का दूसरा बड़ा क्रिकेट स्टेडियम शहीद वीर नारायण सिंह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम है।
पंडित सुंदरलाल शर्मा तो छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम संकल्पनाकार हैं। वे छत्तीसगढ़ (अविभाजित मध्यप्रदेश) में राष्ट्रीय जागरण के अग्रदूत रहे। जिन्होंने 1925 में राजिम के राजीव लोचन मंदिर में 1500 निम्न जाति के लोगों को प्रवेश कराया था। आज भी इस मंदिर परिसर में वो स्थान मौजूद है, जहां से निम्न जाति के लोगों को भगवान राजीवलोचन के दर्शनों की अनुमति मिली थी। उन्होंने कंडेल नहर सत्याग्रह तथा सिहावा जंगल सत्याग्रह में अग्रणी भूमिका निभाई।
पंडित रविशंकर शुक्ल को आधुनिक मध्यप्रदेश का निर्माता भी कहा जाता है। 1936 में व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन में छत्तीसगढ़ के प्रथम व्यक्ति थे। उन्होंने 1930 में रायपुर में सविनय अवज्ञा आंदोलन का नेतृत्व किया।
ठाकुर प्यारेलाल सिंह
छत्तीसगढ़ में सहकारिता आंदोलन के जनक ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने राजनांदगांव में 1920 में 37 दिन तक चले बी.एन.सी. मिल हड़ताल का नेतृत्व किया। 1930 में ष्पट्टा मत लोष् आंदोलन का भी नेतृत्व किया था।
पंडित वामन बलीराव लाखे ने रायपुर में सहकारी आंदोलन की शुरुआत की। उन्होंने रायपुर में को-ऑपरेटिव की स्थापना की तथा 1920 के असहयोग आंदोलन, 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया। सन 1920 में जब गांधी जी रायपुर आए, तब उनके रायपुर निवास की व्यवस्था के आयोजकों में लाखेजी प्रमुख थे एवं गांधी जी के साथ नागपुर में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में भी वे गए। सन् 1920 के असहयोग आंदोलन में उन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया और अंग्रेजी शासन द्वारा 1916 में प्रदत्त राव साहब की उपाधि लौटा दी।
ठाकुर छेदीलाल श्रीवास्तव ने असहयोग, सविनय अवज्ञा, व्यक्तिगत सत्याग्रह तथा भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। 1946 में संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य निर्वाचित हुए।
डॉ. राघवेंद्र राव आई.सी.एस की परीक्षा उत्तीर्ण कर ब्रिटिश शासन के अधिकारी बने, किन्तु जनसेवा की भावना से बैरिस्टरी प्रारम्भ कर दिया। 1927 में असेम्बली चुनाव में विजयी हुए और शिक्षा मंत्री बने। 1936 में मध्यप्रान्त के गवर्नर तथा 1942 में वायसराय की कार्यकारिणी सदस्य में छत्तीसगढ़ के एक मात्र सदस्य बने।
पेशे से चिकित्सक डॉ. खूबचंद बघेल महात्मा गांधी से प्रभावित थे। वे अपनी शासकीय नौकरी छोड़कर 1930 में गांधीजी के आंदोलन में शामिल हो गए। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में इन्हे गिरफ्तार भी किया गया। अपने आंदोलनों के दौरान डॉ बघेल को कई बार जेल भी जाना पड़ा। उन्हें छत्तीसगढ़ का प्रथम स्वप्नदृष्टा भी कहा जाता है। 1931 में ष्जंगल सत्याग्रहष् प्रारंभ हो गया, इसमें शामिल होने डॉ. साहब ने शासकीय सेवा से त्यागपत्र दे दिया और कांग्रेस के पूर्णकालिक सदस्य बन गये। वर्ष 1951 में कांग्रेस से त्यागपत्र देकर आचार्य कृपलानी के साथ ष्किसान मजदूर प्रजा पार्टी से जुड़ गये।
यती यतनलाल जैन को छत्तीसगढ़ में सामाजिक और सांस्कृतिक जागृति के प्रणेता स्त्रोत माना जाता है। स्वतंत्रता आंदोलन में इन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रचार कार्य में संयोजक तथा नगर प्रमुख के रुप में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने शंकरराव गनौदवाले के साथ महासमुंद तहसील में जंगल सत्याग्रह का आरम्भ किया। 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह में इन्हें महासमुंद में गिरफ्तार किया गया। 1942 में भी इन्हें गिरफ्तार किया गया।
वीर गुण्डाधूर- सन् 1910 ई. में जब बस्तर का भूमकाल विद्रोह हुआ, तब गुण्डाधूर की उम्र लगभग 35 वर्ष थी। उनकी योजना में अंग्रेजों के संचार साधनों को नष्ट करना, सड़कों पर बाधाएं खड़ी करना, थानों एवं अन्य सरकारी कार्यालयों को लूटना और उनमें आग लगाना शामिल था। गुण्डाधूर के नेतृत्व में वनवासियों ने आधुनिक हथियारों से लैस अंग्रेज सैनिकों का जमकर मुकाबला किया। सैकड़ों क्रांतिकारी तथा अंग्रेज सैनिक मारे गए। मई सन् 1910 ई. तक यह विद्रोह अंग्रेजों द्वारा क्रूरतापूर्वक कुचल दिया गया। जनश्रुतियों तथा गीतों में गुण्डाधूर की वीरता का वर्णन है।
इनके अलावा छत्तीसगढ़ में और भी सैकड़ों ऐसे नाम हैं, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत का विद्रोह किया और इन सभी के योगदान की बदौलत ही आज हम आजादी में सांस ले पा रहे हैं। आजादी का अमृत महोत्सव निश्चित ही ऐसे लोगों के प्रति आभार प्रकट करने का है।
विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन
छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश में 75 सप्ताह तक चलने वाले आजादी का अमृत महोत्सव के दौरान सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार के प्रादेशिक लोकसंपर्क कार्यालय और पत्र सूचना कार्यालय विभिन्न कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। पत्र सूचना कार्यालय रायपुर द्वारा 12 मार्च से रायपुर में चित्र प्रदर्शनी शुरू की गई है। इस प्रदर्शनी मे भारत की आजादी के लिए संघर्ष करने वाले नेताओं जैसे सुभाष चन्द्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल, महात्मा गांधी तथा अन्य स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों की जीवन गाथा चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत की जा रही है। यह पहला मौका है जब छत्तीसगढ़ के वीर सपूतों के छायाचित्र भी इस प्रदर्शनी का हिस्सा बने हैं। इसके अलावा रोजाना विभिन्न प्रतियोगिताओं के माध्यम से आम जन को इस महोत्सव में जोडने का प्रयास में सराहनीय है।