बिहारशरीफ की अदालत ने एक ऐसा फैसला दिया है, जिसमें कानूनी बारीकियों के बजाय मानवीय पहलू को तरजीह देने की नजीर पेश की गई है। किशोर न्याय परिषद के प्रधान दंडाधिकारी मानवेंद्र मिश्र ने महज तीन दिनों में केस का निपटारा करते हुए किशोर और किशोरी की शादी को वैध करार दे दिया। साथी ही, जेल में बंद आरोपित किशोर को रिहा कर दिया। इस फैसले ने किशोर और किशोरी की आठ माह की मासूम बच्ची को उसके दादा-दादी के घर पहुंचने का रास्ता भी साफ कर दिया।
यह सूबे का पहला केस है, जब महज तीन दिन में मामले का फैसला सुनाया गया। इस ऐतिहासिक फैसले ने कई नए रिकॉर्ड बनाए। किशोर-किशोरी की शादी को वैध करार दिए जाने से उनसे जन्मी आठ माह की बच्ची को उसका हक मिल गया। हालांकि, जज ने यह भी कहा है कि इस फैसले को आधार बनाकर किसी अन्य मामले में इसका लाभ नहीं लिया जा सकता है।
मासूम के हित में लिया फैसला
जज ने जिला बाल संरक्षण इकाई और हिलसा बाल कल्याण पुलिस पदाधिकारी को बच्ची व किशोर दंपति की उचित देखभाल और संरक्षण के संबंध में हर छह माह पर प्रतिवेदन देने को कहा है। मासूम बच्ची के हितों व भविष्य को देखते हुए यह अनोखा फैसला सुनाया गया है।