अब तक आपने पेट्रोल या डीजल से चलने वाले नेचुरल एस्पायर्ड या टर्बो फ़्यूल इंजन के बारे में सुना होगा। लेकिन बहुत जल्द ही भारतीय बाजार में ऐसी गाड़ियां भी देखने को मिल सकती हैं, जिनमें नए फ्लेक्स फ़्यूल इंजन का प्रयोग होगा। ऑटोकार इंडिया अवार्ड्स में बोलते हुए केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री, नितिन गडकरी ने भारतीय कार निर्माता कंपनियों से आग्रह किया है कि वो अपने वाहनों में फ्लेक्स फ़्यूल इंजन का इस्तेमाल करें।
नितिन गडकरी ने इस आयोजन के दौरान कहा कि, “मैं ऑटोमोबाइल उद्योग में सभी से अनुरोध कर रहा हूं कि कृपया आप संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राजील और कनाडा की तरह फ्लेक्स इंजन लाने में हमारा सहयोग करें।” उन्होनें कहा कि, “मैं मानता हूं कि, चारपहिया या दोपहिया दोनों तरह के वाहन पेट्रोल या इथेनॉल फ़्यूल से आसानी से चल सकते हैं।”
क्या होता है फ्लेक्स-फ़्यूल इंजन: सबसे पहले आपको बता दें कि, ये सामान्य इंटर्नल कम्ब्यूशन इंजन (ICE) इंजन जैसा ही होता है, लेकिन ये एक या एक से अधिक तरह के फ़्यूल से चलने में सक्षम होता है। कई मामलों में इस इंजन को मिक्स फ़्यूल (मिश्रित ईंधन) का भी इस्तेमाल किया जाता है। सामान्य भाषा में समझें तो इस इंजन में पेट्रोल और इथेनॉल या मेथनॉल के मिश्रण का भी प्रयोग किया जा सकता है। इस इंजन में ईंधन मिश्रण सेंसर का इस्तेमाल होता है जो कि मिश्रण में ईंधन की मात्रा के अनुसार खुद को एड्जेस्ट कर लेता है।
नितिन गडकरी ने बढ़ते वायु प्रदूषण और भारत के कच्चे तेल के आयात को कम करने की जरूरत का हवाला देते हुए कहा कि, “मौजूदा समय में भारत 7 से 8 लाख करोड़ रुपये का कच्चा तेल आयात करता है। इस समय वायु प्रदूषण और कच्चे तेल का आयात ये दोनों ही चिंता का विषय हैं। मैं पूरी तरह से ग्रीन फ़्यूल का समर्थक हूं और हम इस दिशा में काम करते हुए इथेनॉल का उत्पादन लगातार बढ़ा रहे हैं।”
मौजूदा समय में, भारत में आपूर्ति किए जाने वाले पेट्रोल को पहले से ही लगभग 10-15 प्रतिशत इथेनॉल के साथ मिश्रित किया जाता है। हालांकि, इस समय के उत्पादन स्तर के अनुसार ये कोई मानक नहीं है। लेकिन यदि हम पेट्रोल मिश्रण में इथेनॉल के स्तर को और बढ़ाते हैं तो इंजन में भी जरूरी मॉडिफिकेशन करना होगा। इसलिए नितिन गडकरी ने वाहन निर्माता कंपनियों को इंजन में उपयुक्त बदलाव करने को कहा है।
गडकरी ने यह भी कहा कि, आमतौर पर इथेनॉल का उत्पादन मकई (Corn) और गन्ना (Sugarcane) जैसी फ़ार्मिंग फसलों द्वारा किया जाता है, और भारत में इन दोनों फसलों का उत्पादन भारी मात्रा में किया जाता है। ऐसे में उन्हें पूरा विश्वास है कि फ्लेक्स ईंधन हमारे देश के लिए एक अच्छा विकल्प बनकर उभरेगा।
इथेनॉल फ़यूल के फायदे: इथेनॉल में ऊर्जा की मात्रा कम होती है, यह आम तौर पर पर्यावरण के लिए बेहतर माना जाता है क्योंकि इथेनॉल से चलने वाले वाहन बहुत कम उत्सर्जन करते हैं। इथेनॉल के इस्तेमाल से 35 फीसदी कम कार्बन मोनोऑक्साइड का उत्सर्जन होता है, जो कि प्रदूषण फैलाने वाले अन्य फ़्यूल के मुकाबले काफी कम है। यह कार्बन मोनोऑक्साइड उत्सर्जन और सल्फर डाइऑक्साइड को कम करने के साथ ही इसमें 35 प्रतिशत ऑक्सीजन होता है। ब्राजील में इस ईंधन का प्रयोग सबसे ज्यादा होता है, यहां पर 40 प्रतिशत गाड़ियां 100 फीसदी इथेनॉल से चलती हैं।