अब तक राजस्थान बाॅर्डर पर ही सेना की गश्त में उपयोग होने वाले राजस्थानी ऊंट अब लेह-लद्दाख में चीन बॉर्डर पर भी दिखेंगे। बीकानेर में 50 डिग्री तापमान में रहने वाले 4 ऊंट बीते 4 साल से लेह में माइनस 20 डिग्री तापमान में रह रहे हैं। ये अच्छी तरह सरवाइव भी कर चुके हैं।
इतने कम तापमान में डीजल-पेट्रोल जम जाते हैं, इसलिए वहां वाहनों से गश्त नहीं हाे सकती। ऐसे में ड्रोन या पैदल ही गश्त होती है। अब लेह का डिफेंस इंस्टीट्यूट फॉर हाई ऑल्टिट्यूट रिसर्च सेंटर राजस्थानी ऊंटों से भारत-चीन बॉर्डर पर गश्त कराना चाहता है, ताकि सैनिक अपना राशन व अन्य सामान ऊंट पर लादकर बॉर्डर पर गश्त कर सकें।
राजस्थान को छोड़ किसी बॉर्डर इलाके में ऊंटों से गश्त नहीं होती। नेपाल बाॅर्डर पर सेना नहीं है। बांग्लादेश बाॅर्डर पर सड़कों का जाल है। जम्मू-कश्मीर का इलाका पहाड़ी है, इसलिए ऊंट से गश्त संभव नहीं।
यदि ये प्रयोग सफल हुआ तो उसी तकनीक का सहारा लेकर दो कूबड़ वाले ऊंटों को राजस्थान लाया जाएगा। NRCC के तत्कालीन निदेशक डॉ. एनवी पाटिल ने ये प्रस्ताव बनाया था।
दो कूबड़ वाले ऊंटों पर भी हुआ था प्रयोग, लेकिन सफल नहीं रहा
- सेना ने दो कूबड़ वाले ऊंटों पर भी यही रिसर्च की थी, विफल रही। दो कूबड़ वाले ऊंटों की संख्या भी मात्र 240 है। इसलिए सेना राजस्थानी ऊंटों पर रिसर्च कर रही है।
- सेना को अब सिर्फ यह टेस्ट होना करना है कि ऊंटाें से इतने कम पारे में सामान लादकर लंबी गश्त हो सकती है या नहीं? प्रयोग सफल रहा तो यहां से और ऊंट ले जाकर सेना के उपयोग के लिए तैयार किया जाएगा।
राजस्थानी ऊंट लद्दाख में सरवाइव कर रहे हैं। यह अच्छा संकेत है।
-कर्नल अमित, डीआईएचएआरसी, लेह
एक कूबड़ वाला राजस्थानी ऊंट चीन बॉर्डर पर गश्त के लायक है, तो इससे सैनिकों को गश्त और सामान ले जाने में बहुत मदद मिलेगी। जम्मू-कश्मीर में ऊंटों से गश्त संभव नहीं है, लेकिन चीन बॉर्डर पर ये प्रयोग सफल हो सकता है।