छत्तीसगढ़ का बीजापुर नक्सली हमलों को लेकर अभी सुर्खियों में है तो वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने बीजापुर के एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की तस्वीर और डाक्टरों के प्रयास की सराहना की है। बीजापुर जिले के भैरमगढ़ स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में राजेश्वरी ने 24 सप्ताह (छह माह का गर्भ) की बच्ची को जन्म दिया। डाक्टरों व स्वास्थ्य विभाग की टीम ने बच्ची को सामान्य स्थिति में पहुंचाने का अथक प्रयास किया। डाक्टरों ने न सिर्फ बच्ची को सुरक्षित बचाया, बल्कि अब जच्चा और बच्चा दोनों खतरे से बाहर हैं।
डाक्टरों की मानें तो छह माह के नवजात को बचाना काफी चुनौतीपूर्ण है। बीजापुर के मंगलनार की मितानिन राजेश्वरी शादी के दस साल बाद गर्भवती हुई थी। अप्रैल-2020 में जब पूरे देश में कोरोना संक्रमण के कारण लाकडाउन लगा था, उस समय 24 सप्ताह की गर्भवती राजेश्वरी के पेट में दर्द हुआ। वह सीधे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भैरमगढ़ पहुंची। डाक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ की मदद से सुरक्षित प्रसव कराया गया। जब बच्ची पैदा हुई, उस समय उसका वजन 500 ग्राम था। इसके बाद बच्ची को बचाने के लिए डाक्टरों का संघर्ष शुरू हुआ। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की संचालक डा. प्रियंका शुक्ला ने बताया कि बच्ची को सिक न्यू बार्न केयर (एसएनबीसी) यूनिट में जिला अस्पताल बीजापुर शिफ्ट किया गया। कोरोना के कारण जगदलपुर या रायपुर के अस्पताल में भेजना मुश्किल था। ऐसे में टेलीमेडिसीन के सहारे रायपुर के मेकाहारा और रायपुर के एम्स के विशेषज्ञों की मदद ली गई। यह बच्ची उस क्षेत्र की सबसे कम समय में पैदा होने वाली बच्ची है।
नवजात के वजन को सामान्य करना बड़ी चुनौती
बीजापुर जिला अस्पताल के सीएमएचओ बी पुजारी ने बताया कि राजेश्वरी को बच्ची अप्रैल-2020 में हुई और उसे जिला अस्पताल से 24 जून 2020 को डिस्चार्ज किया गया। बच्ची के वजन को सामान्य करना सबसे बड़ी चुनौती थी। इसके लिए विशेषज्ञों की मदद ली गई। कई बार ऐसा होता था कि एक सप्ताह में वजन बढ़ता नहीं था, जिसके बाद दोबारा विशेषज्ञों से राय ली जाती थी। जब बच्ची पैदा हुई उस समय उसका वजन 500 ग्राम था, लेकिन जब अस्पताल से छुट्टी दी गई तो बच्ची 1.41 किलो की हो गई थी।
राजेश्वरी ने छोड़ दी थी उम्मीद
राजेश्वरी और उनके पति गोपी ने बताया कि 24 सप्ताह में प्रसव होने से उन्होंने बच्ची के बचने की उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन डाक्टरों और नर्स के अथक प्रयास ने उनकी उम्मीद को जिंदा रखा। ये देवदूत बनकर आए और बच्ची को बचा लिया। अब बच्ची एक साल की होने जा रही है। राजेश्वरी ने बताया कि बच्ची अभी स्वस्थ्य है और सामान्य जीवन जी रही है।