नई दिल्ली। कोरोना फैलने की वजहों पर दुनियाभर में रिसर्च हो रही है। 15 महीने के कोरोनाकाल में रिसर्च के बाद भारतीय वैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया है कि वायरस गर्मी में बहुत तेजी से फैल रहा है। इससे पहले माना जा रहा था कि वायरस सर्दियों में ज्यादा असर दिखाएगा। भारत सरकार के 17 वैज्ञानिकों के रिसर्च में सामने आया है कि गर्मी के कारण वायरस के फैलाव की क्षमता बढ़ जाती है।
सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिकुलर बॉयोलॉजी (CCMB) हैदराबाद के डायरेक्टर डॉ. राकेश के. मिश्रा बताते हैं कि गर्मी के मौसम में सांस तेजी से भाप बन जाती है। ऐसे में जब कोई संक्रमित व्यक्ति सांस छोड़ता है तो वायरस छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट जाता है। वायरस के अतिसूक्ष्म कण सांस के साथ स्प्रे की तरह तेजी से बाहर आते हैं। फिर देर तक हवा में रहते हैं। अगर कोई व्यक्ति बिना मास्क उस जगह पहुंचता है तो उसके संक्रमित होने की आशंका होती है। हालांकि, खुले वातावरण में संक्रमण का खतरा कम है, लेकिन अगर किसी हॉल, कमरे, लिफ्ट आदि में कोई संक्रमित व्यक्ति छींक भी ले, तो वहां मौजूद लोगों को संक्रमित होने की आशंका बहुत ज्यादा बढ़ जाती है।
हवा में वायरस के असर को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने हैदराबाद और माेहाली में 64 जगहों पर सैंपल लिए। इसमें अस्पतालों के ICU, सामान्य वार्ड, स्टाफ रूम, गैलरी, मरीज के घर के बंद और खुले कमरे, बिना वेंटिलेशन और वेंटिलेशन वाले घर शामिल हैं।
रिसर्च में इन सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश की गई…
तो क्या यह कह सकते हैं कि वायरस हवा से फैल रहा?
नहीं। CCMB के पूर्व डायरेक्टर डॉ. सीएच मोहन राव के मुताबिक, वायरस हवा में भी फैल रहा है, लेकिन हवा से नहीं फैल रहा। उदाहरण के लिए किसी जगह संक्रमित व्यक्ति खांसता है तो उस 2-3 मीटर के दायरे में आने वाला व्यक्ति संक्रमित हो सकता है। लेकिन, ये वायरस भोपाल गैस कांड की तरह नहीं है, तब गैस हवा के बहाव से फैलती गई। जबकि, वायरस ऐसे ट्रैवल नहीं करता।
हवा में वायरस कितने घंटे तक जीवित रहता है?
गर्मी में क्योंकि सांस के साथ निकले वायरस के कण बेहद छोटे होते हैं, इसलिए सर्दी के मुकाबले ज्यादा देरी तक हवा में रहते हैं। धूप में जल्दी खत्म भी हो जाते हैं। लेकिन, घरों के अंदर वायरस हवा में 2 घंटे तक रहता है। इसलिए घरों में क्रॉस वेंटिलेशन बेहद जरूरी है।
बंद कमरे ज्यादा खतरनाक क्यों हैं?
जिस हॉल में कोविड मरीज ने समय बिताया हो, वहां हवा में वायरस के कण 2-3 मीटर के दायरे में मौजूद रहते हैं। इसीलिए, घर में इलाज करा रहे लोगों को हवादार कमरे में रखने की सलाह दी जाती है।
क्या ऐसे में पूरे अस्पताल में ही वायरस मौजूद रहता है?
यह संभव है। इसलिए हमने सरकार को सुझाव दिया है कि कोविड अस्पतालों को सामान्य अस्पतालों से पूरी तरह अलग रखा जाए। इससे संक्रमण का फैलाव रुकेगा।
घर में जो पॉजिटिव नहीं, क्या उसे मास्क पहनना जरूरी?
अगर घर में किसी को क्वारैंटाइन किया गया हो या उसमें कोरोना के लक्षण हों तो उनके लिए मास्क अनिवार्य है ही, साथ ही दूसरे लोगों का भी हर समय मास्क पहनना चाहिए।
दफ्तरों में संक्रमण की आशंका कितनी रहती है?
आप बेशक सोशल डिस्टेंसिंग रखें, लेकिन अगर दफ्तर हवादार नहीं है, तो संक्रमण का खतरा बहुत ज्यादा रहेगा। क्योंकि, बंद जगहों पर वायरस ज्यादा देर तक रहता है। सांस के जरिए वह लोगों के शरीर में चला जाता है।
ऐसी और कौन सी जगह है, जहां वायरस का खतरा ज्यादा है?
टॉयलेट। हमें सुनिश्चित करना चाहिए कि जिस टायलेट में जा रहे हैं, वहां कोई पिछले 30 मिनट में नहीं गया हो। टायलेट में मास्क पहनना बेहद जरूरी है। हाथ धोने के लिए साबुन ही बेहतर है। सैनिटाइजर का इस्तेमाल तभी करें, अगर साबुन उपलब्ध नहीं हो।
यात्रा के दौरान संक्रमण की कितनी संभावना रहती है?
पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करना है, तो 30 मिनट से ज्यादा सफर करने से बचना चाहिए। कोशिश करें कि यात्रा को छोटे-छोटे हिस्सों में पूरा करें। अगर मास्क लगा हो तो संक्रमित व्यक्ति के पास 30 मिनट तक रहने से भी वायरस से बचा जा सकता है।
इन भारतीय वैज्ञानिकों ने की रिसर्च
डॉ. राकेश के. मिश्रा, डॉ. शिवरंजनी, डॉ. टी शरथचंद्र, डॉ. आरुषी गोयल, डॉ. भुवनेश्वर ठाकुर, डॉ. गुरप्रीत सिंह भल्ला, डॉ. दिनेश कुमार, डॉ. दिग्विजय सिंह नरुका, डॉ. अश्विनी कुमार, डॉ. अमित तुली, डॉ. स्वाती सुरावरम, डॉ. त्रिलोकचंद बिंगी, डॉ. श्रीनिवास एम, डॉ. राजाराव, डॉ. कृष्णा रेड्डी, डॉ. संजीव खोसला, डॉ. कार्तिक भारद्वाज।