बिलासपुर रायपुर से बड़ा कोरोना का हॉटस्पॉट बनता जा रहा है। मरीजों की तुलना में देखें तो बिलासपुर में कोविड से सबसे अधिक मौतें हो रही हैं। बावजूद इसके स्वास्थ्य संसाधनों की कमी का सबसे अधिक सामना करना पड़ रहा।
कलेक्टर डॉ. सारांश मित्तर की पहल पर आज अपोलो प्रबंधन ने 20 बेड बढ़ाया। अपोलो ने पहले कोविड के उपचार के लिए 50 बेड का वार्ड बनाया था। कलेक्टर के बोलने पर उसे 75 किया। और आज 20 बढ़ते हुए 95 बेड। फिर भी 300 बेडों की तुलना में एक तिहाई से भी कम है।
इस विपदा की घड़ी में, जब उम्दा इलाज के अभाव में लोगों की सांसे उखड़ती जा रही है, अपोलो ग्रुप आगे बढ़कर लोगों की मदद नहीं करेगा तो फिर कब करेगा। बेड 300 तो कोरोना के लिए 75 क्यों? अपोलो अस्पताल आखिर जिला प्रशासन का क्यों नहीं सुन रहा, कलेक्टर के बोलने पर सिर्फ 25 बेड बढ़ा
अपोलो के साथ बेड बढ़ाने में ज्यादा दिक्कत इसलिए नहीं है कि उसके सभी बेड ऑक्सीजन युक्त हैं। अलग से ऑक्सीजन की व्यवस्था करने का लफड़ा नहीं है। फिर, 300 बेड की क्षमता का अस्पताल है, तो जाहिर है उसी अनुपात में उसके पास ट्रेंड लोगों का स्टाफ भी है। कोरोना के टाइम दीगर मरीज आ भी कम रहे हैं। लिहाजा, अपोलो प्रबंधन चाहे तो अस्पताल में और बेड बढ़ा सकता है। मगर दुर्भाग्य है, प्रबंधन बनिया की तरह बेड बढ़ाने में आगे-पीछे हो रहा। पहले 25 बेड, और अब 20 बेड बढ़ाया। वो भी कलेक्टर सारांश के प्रेशर पर।
ऐसे समय में लोगों को नेतृत्व की कमी खल रही। बिलासपुर के लिए यह पहला मौका है, जब राज्य सरकार में कोई मंत्री नहीं। बिलासपुर या बिलासपुर जिले से दो, तीन मंत्री हमेशा रहे हैं। कांग्रेस सरकार में स्व. बीआर यादव, स्व. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल, चित्रकान्त जायसवाल, अशोक राव जैसे दबंग मंत्री रहे। तो बीजेपी सरकार में अमर अग्रवाल। इस समय बिलासपुर नेतृत्व विहीन है। कोरोना के टाइम में यह कमी साफ महसूस की जा रही। लोगों को याद है बीआर यादव प्रयास करके एसईसीएल का मुख्यालय बिलासपुर लाये। बिलासपुर के नेताओं की सलाह पर एसईसीएल के सीएमडी गौतम झा ने अपोलो अस्पताल खोलवाया। इसके लिए स्व. लखीराम अग्रवाल ने तत्कालीन कोयला मंत्री स्व. रामविलास पासवान से बात की थी। तब अपोलो को SECL से बिल्डिंग बनाकर अपोलो को सौंपा। जाहिर सी बात है, बिलासपुर में सक्षम राजनीतिक नेतृत्व होता तो लोगों को इस कदर अफरातफरी का सामना नहीं करना पड़ता। बिलासपुर में जो राजनीतिक लोग हैं, वे उतने में ही संतुष्ट हैं कि उनके परिजनों या उनके अगल- बगल रहने वालों को वे अस्पताल में बेड मुहैया हो जा रहा। सवाल है, फिर आम आदमी का क्या होगा? आम आदमी अस्पतालों के दरवाजों पर धक्का खाने पर विवश है।
उधर, कलेक्टर सारांश मित्तर ने बताया, अपोलो में कोविड बेड को पचास से बढ़ाकर पहले 75 और फिर 95 कर दिया गया है। ज़िला चिकित्सालय में पचास जबकि सिम्स में भी चालीस अतिरिक्त कोविड बेड लगाए गए हैं।