प्रगतिशील धार के प्रमुख कवि विजेंद्र को भी गुरुवार को क्रूर कोरोना ने लील लिया। संक्रमण के बीच सुबह उन्हें ऑक्सीजन की जरूरत हुई थी लेकिन व्यवस्था नहीं हो सकी। एक दिन पहले ही उनकी सहधर्मिणी उषा भी नहीं रही थीं।
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प्रखर चिंतक, आलोचक और चित्रकार विजेंद्र की मार्क्सवादी सौंदर्यशास्त्र पर गहरी पकड़ रही। बदायूं के मूल निवासी विजेंद्र ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से पढ़ाई के बाद लंबे अरसे तक राजस्थान के कॉलेजों में अध्ययन किया। फिर गुरुग्राम में रहने लगे।
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उनके नियमित डायरी लेखन में समकालीन समाज और संस्कृति पर गहरी टिप्पणियां हैं, जो बाद में उनकी पुस्तकों मे दर्ज हुई। कवि की अंतर्यात्रा उनकी पहली किताब थी। इसके बाद बीस कविता संग्रह और कई नाटक भी प्रकाशित हुए। चैत की लाल टहनी, उठे गूमड़ नीले और ऋतु का पहला फूल उनके चर्चित संग्रह हैं। विजेंद्र ने बरसों तक कृति और नामक साहित्यिक पत्रिका का भी संपादन-प्रकाशन किया।
उल्लेखनीय है कि एक दिन पहले ही प्रख्यात कवि कुँवर बेचैन का भी निधन कोरोना की चपेट में आने की वजह से हुआ है। उनके निधन पर देश के प्रख्यात कवि और आलोचक कुमार विश्वास ने ट्वीट कर कहा था कि एक और सूरज का अंत हो गया। कोरोनावायरस की इस दूसरी लहर ने मौतों का अंबार लगा दिया है।