नई दिल्ली। कोविड के खिलाफ लड़ाई में हर छोटा-बड़ा अपना योगदान देने की कोशिश में लगा है। फिर वे युवा हों या स्कूली बच्चे। कोई इंटरनेट मीडिया के माध्यम से जरूरतमंदों को राहत पहुंचाने, उन तक सही सूचना पहुंचाने में लगा है तो कोई अपने इनोवेशन से सहयोग कर रहा है।
महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के स्कूली छात्र अनिकेत पांचवीं कक्षा से रोबोटिक्स में दिलचस्पी रखते थे। पहली बार उन्होंने कार्डबोर्ड से रोबोट का मॉडल तैयार किया था। इसे मोटर, मोटर ड्राइवर, ब्लूटूथ की प्रोग्रामिंग से चलाया था। जब वह स्कूल में पहुंचे तो वहां अटल टिंकरिंग लैब में उन्हें अपने आइडियाज को इंप्लीमेंट करने का अवसर मिला।
हाल ही में ग्यारहवीं कक्षा के इस छात्र ने सैनऑटो नाम से एक रोबोट तैयार किया है, जो मोबाइल एप के जरिये संचालित किया जा सकता है। कोविड फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए तैयार किए गए इस मॉडल को कोई भी सैनिटरी वर्कर एक सुरक्षित दूरी से संचालित कर सकता है। रोबोट के जरिए किसी स्थान को सैनिटाइज किया जा सकता है। अनिकेत को उनके इस इनोवेशन के लिए डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम इग्निटेड अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें वेब डिजाइनिंग में भी खासी दिलचस्पी है। वेब डेवलपमेंट में ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने अपनी भी एक वेबसाइट डेवलप की है।
ऑटो एंबुलेंस सेवा की शुरुआत
दूसरी कहानी गुजरात के अहमदाबाद के नरेश सिजापति की है। इस युवा ने कोविड मरीजों को नि:शुल्क अस्पताल तक पहुंचाने के लिए ऑटो एंबुलेंस सेवा लॉन्च की है। कोई भी पीड़ित उनके द्वारा उपलब्ध कराए गए नंबर पर कॉल कर ऑटो की सेवा ले सकता है। अब तक उन्होंने 35 से अधिक मरीजों को सुरक्षित अस्पताल तक पहुंचाया है। यहां तक कि जरूरतमंदों को नगद सहायता भी प्रदान की है।
नरेश बताते हैं कि अस्पतालों में बेड की किल्लत को देखते हुए वह एक कोविड सेंटर शुरू करने पर भी विचार कर रहे हैं। जरूरी संसाधन एवं स्वीकृति मिलने के बाद इसे शुरू किया जाएगा। नरेश ने बीते वर्ष भी प्रवासी मजदूरों की काफी सहायता की थी। क्राउड फंडिंग एवं लोगों की मदद से मजदूरों को उनके राज्यों तक भेजा था। जो लोग शहर में रह गए थे और जिनका रोजगार छिन गया था, उनका नया रोजगार शुरू कराया था। उन्हें आर्थिक मदद, ऋण आदि उपलब्ध कराए थे।