नई दिल्ली। ऑक्सीजन की कमी को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट तक शिकायत पहुंचने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। मंगलवाार को एक बार फिर पीतमपुरा के केडी ब्लाक स्थित मुनी माया राम जैन अस्पताल ने सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट से ऑक्सीजन उपलब्ध कराने की मांग की। अस्पताल की तरफ से पेश हुए संजू मिश्रा ने कहा कि हमारे यहां हर दिन एक-दो मौत हो रही है, लेकिन हमें ऑक्सीजन नहीं दिया जा रहा है। हम छोटे अस्पताल हैं और इसलिए हमें नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
सुनवाई के दौरान मुनी माया राज जेन अस्पताल ने की हाई कोर्ट से अपील
दिन में करीब एक बजे हाई कोर्ट से संपर्क करने के दौरान संजू ने कहा कि हमारे पास 30 बेड हैं और यहां कई मरीजों की स्थिति गंभीर है। न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की पीठ ने दिल्ली सरकार को मामले को देखने और ऑक्सीजन उपलब्ध कराने को कहा। इसके बाद अस्पताल ने दोबारा करीब साढ़े तीन बजे एक बार अदालत से संपर्क किया और कहा कि उन्हें अब तक ऑक्सीजन नहीं मिली है। इस पर दिल्ली सरकार के अधिवक्ता सत्यकाम ने पीठ को बताया कि अस्पताल से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उनका कोई संपर्क नंबर नहीं मिला। वहीं, अदालत के कहने के बाद भी अस्पताल की तरफ से किसी ने संपर्क नहीं किया। पीठ ने अस्पताल के प्रतिनिधि से कहा कि वह अपना नंबर दिल्ली सरकार के अधिवक्ता से साझा करें और उन्हें ऑक्सीजन उपलब्ध कराया जाएगा।
बार काउंसिल आफ दिल्ली के चेयरमैन रमेश गुप्ता के मामले में राकलैंड अस्पताल की तरफ से पेश होकर गलत जानकारी देने पर पीठ ने अधिवक्ता यशवर्धन सोम को भविष्य में ऐसा नहीं करने की चेतावनी दी। सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के स्टैंडिंग काउंसल राहुल मेहरा ने पीठ को बताया कि बीसीडी रमेश गुप्ता ने उन्हें जानकारी दी है कि उक्त अधिवक्ता यशवर्धन के पास राकलैंड अस्पताल की तरफ से पेश होने का अधिकार नहीं था। वहीं, यशवर्धन सोम ने कहा कि उनके पास अधिकार था।
पीठ ने जब पूछा ऐसा क्यों किया तो उन्होंने जवाब दिया कि यह लोगों के हित के लिये किया था। वहीं, राकलैंड अस्पताल की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता ने पीठ को बताया कि राकलैंड अस्पताल को अब मेडयोर अस्पताल के नाम से जाना जाता है और वे खुद अस्पताल को संचालित करना चाहते हैं। इस पर रमेश गुप्ता ने कहा कि वह प्रबंधन द्वारा अस्पताल खुद संचालित करने की बात से सहमत है। ऐसे में बीसीडी को चाबी देने के आदेश की जरूरत नहीं है और एक या दो दिन में कोई भी हमें ऑक्सीजन की सुविधा दे सकता है। पीठ ने इसके बाद चाबी बीसीडी को देने का तीन मई का आदेश वापस ले लिया।