नई दिल्ली। देश में covid-19 मरीजों का इलाज कर रहे केंद्र और राज्यों के सरकारी अस्पतालों को निर्देश दिया गया है कि वे सुनिश्चित करें कि पहचान पत्र और कोरोना वायरस जांच रिपोर्ट के न होने की वजह से किसी भी मरीज को भर्ती करने से मना नहीं किया जाए। केंद्र सरकार ने यह जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा उठाए गए बिंदुओं पर हलफनामे के जरिए दिए जवाब में केंद्र ने कहा कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने सभी राज्य सरकारों को covid-19 के संदिग्ध/पुष्ट हुए मामलों के प्रबंधन के लिए तीन स्तरीय चिकित्सा अवंसरचना स्थापित करने की नीति से अवगत करा दिया है। इसमें कहा गया कि अचानक आई महामारी और टीके की सीमित खुराक की वजह से एक बार में पूरे देश का टीकाकरण संभव नहीं है, ऐसे में खतरे पर विचार-विमर्श प्रमुख विषय है।
कोर्ट द्वारा covid-19महामारी के दौरान आवश्यक आपूर्ति और सेवाएं सुनिश्चित करने को लेकर लिए गए स्वत: संज्ञान पर केंद्र की ओर से रविवार रात को हलफनामा दाखिल किया गया। हलफनामा में कहा गया कि 7 अप्रैल, 2020 को इस संबंध में जारी किए गए मार्गदर्शन दस्तावेज में संक्रमण के हल्के लक्षणों वाले मरीजों के लिए covid-19 मरीज देखभाल केंद्र (CCC) की स्थापना की परिकल्पना की गई है और इन्हें सार्वजनिक और निजी छात्रावास, होटल, स्कूल, स्टेडियम और लॉज में स्थापित करने का प्रावधान हैं। केंद्र ने कहा, ‘‘सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जैसे कार्यरत अस्पताल जिनमें नियमित रूप से गैर covid-19 मरीज देखे जाते हैं उन्हें भी आखिरी विकल्प के तौर पर कोविड-19 मरीज देखभाल केंद्र बनाया जा सकता है। वहीं समर्पित covid-19 स्वास्थ्य केंद्र मध्यम लक्षण वाले मरीजों का इलाज कर सकते हैं।
केंद्र ने बताया, ‘‘संदिग्ध मामले में मरीजों को कोविड-19 मरीज देखभाल, समर्पित कोविड-19 स्वास्थ्य केंद्र या समर्पित अस्पताल के संदिग्ध मामलों के वार्ड में भर्ती किया जा सकता है। किसी भी मरीज को अगर वह दूसरे शहर का है तो वैध पहचान पत्र या स्थानीय निवासी होने का प्रमाण पत्र पेश नहीं करने के आधार पर सेवा देने से इनकार नहीं किया जा सकता है और मरीज को ऑक्सीजन और आवश्यक दवाई जैसी सेवा देनी होगी। सरकार ने शीर्ष अदालत को कहा कि अस्पताल में भर्ती जरूरत के आधार पर होनी चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि बिस्तर ऐसे लोगों द्वारा नहीं भरा जाए जिन्हें भर्ती होने की जरूरत नहीं है। केंद्र ने कहा, ‘‘सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों से अनुरोध किया गया है कि वे तीन दिन के भीतर उपरोक्त निर्देशों को शामिल करने के लिए परिपत्र जारी करें और यह उचित समान नीति बनने तक लागू रहेंगे।