पौडी गढ़वाल(उत्तराखंड)- वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण संवर्धन के लिए विभाग और वन्य ग्राम्यजनों से सामंजस्य हेतु वर्ष 1999 से समितियां बनी। जिसमें समिति का अध्यक्ष गांव की आमबैठक से चुना जाता है जबकि सचिव वन दारोगा होता है ताकि विभागीय हस्तक्षेप बना रहे ।लेकिन शनै:- शनै: समितियां राजनीति ,कूटनीति और पैसा कमाने का जरिया बन गयी।जहां समिति से प्रत्येक परिवार के मुखिया को लाभ दिलाने की बात कही गयी लेकिन कुछ ने तो लाभ लेकर भी लिया गया ऋण वापस नहीं किया।कुछ समय बाद तो अध्यक्ष बनने पर भी खूब खर्च लोगों ने किया ।यद्यपि इन समितियों के माध्यम से गांवों में शामियाना ,बरतन् ,परदे ,दरी ,शादी पार्टी का सामान भी आया जिसमें कि सामान कीमती दिखाकर सस्ता खरीदा गया। आडिट करने अध्यक्ष सचिव निदेशक कार्यालय जाते तो हफ्ते तक का खर्च होता सब एडजस्टिंग चलती रहती ,इसी दृष्टिकोण के चलते काम कुछ हुआ दिखाया कुछ और खर्चा अप्रत्याशित् समझ से परे।
पौडी गढ़वाल(उत्तराखंड)- वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण संवर्धन के लिए विभाग और वन्य ग्राम्यजनों से सामंजस्य हेतु वर्ष 1999 से समितियां बनी। जिसमें समिति का अध्यक्ष गांव की आमबैठक से चुना जाता है जबकि सचिव वन दारोगा होता है ताकि विभागीय हस्तक्षेप बना रहे ।लेकिन शनै:- शनै: समितियां राजनीति ,कूटनीति और पैसा कमाने का जरिया बन गयी।जहां समिति से प्रत्येक परिवार के मुखिया को लाभ दिलाने की बात कही गयी लेकिन कुछ ने तो लाभ लेकर भी लिया गया ऋण वापस नहीं किया।कुछ समय बाद तो अध्यक्ष बनने पर भी खूब खर्च लोगों ने किया ।यद्यपि इन समितियों के माध्यम से गांवों में शामियाना ,बरतन् ,परदे ,दरी ,शादी पार्टी का सामान भी आया जिसमें कि सामान कीमती दिखाकर सस्ता खरीदा गया। आडिट करने अध्यक्ष सचिव निदेशक कार्यालय जाते तो हफ्ते तक का खर्च होता सब एडजस्टिंग चलती रहती ,इसी दृष्टिकोण के चलते काम कुछ हुआ दिखाया कुछ और खर्चा अप्रत्याशित् समझ से परे।
LOCKDOWN BREAKING : राजधानी रायपुर में एक हफ्ते और बढ़ेगा लॉकडाउन!… जल्द हो सकती है घोषणा… इन व्यवसायों में छूट की उम्मीद
Contents
पौडी गढ़वाल(उत्तराखंड)- वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण संवर्धन के लिए विभाग और वन्य ग्राम्यजनों से सामंजस्य हेतु वर्ष 1999 से समितियां बनी। जिसमें समिति का अध्यक्ष गांव की आमबैठक से चुना जाता है जबकि सचिव वन दारोगा होता है ताकि विभागीय हस्तक्षेप बना रहे ।लेकिन शनै:- शनै: समितियां राजनीति ,कूटनीति और पैसा कमाने का जरिया बन गयी।जहां समिति से प्रत्येक परिवार के मुखिया को लाभ दिलाने की बात कही गयी लेकिन कुछ ने तो लाभ लेकर भी लिया गया ऋण वापस नहीं किया।कुछ समय बाद तो अध्यक्ष बनने पर भी खूब खर्च लोगों ने किया ।यद्यपि इन समितियों के माध्यम से गांवों में शामियाना ,बरतन् ,परदे ,दरी ,शादी पार्टी का सामान भी आया जिसमें कि सामान कीमती दिखाकर सस्ता खरीदा गया। आडिट करने अध्यक्ष सचिव निदेशक कार्यालय जाते तो हफ्ते तक का खर्च होता सब एडजस्टिंग चलती रहती ,इसी दृष्टिकोण के चलते काम कुछ हुआ दिखाया कुछ और खर्चा अप्रत्याशित् समझ से परे।LOCKDOWN BREAKING : राजधानी रायपुर में एक हफ्ते और बढ़ेगा लॉकडाउन!… जल्द हो सकती है घोषणा… इन व्यवसायों में छूट की उम्मीदवन विभाग कान में रुई डालकर सो रहा !
वन विभाग के कालागढ़ टाइगर रिजर्व के अधीन मैदावन ,अदनाला और मंदाल रेंजों में ये समितियां बनाई गयीं जिसमें वन्य ग्रामों गैर विद्युतीकृत गांवों को सोलर लालटेन वितरण,चैकडाम ,वन्य जीव सुरक्षा बाढ़ ,सोलर पैनल सब्सिडी पर भी दिये गये । लेकिन महत्वाकांक्षा के चलते विवादग्रस्त रहे।अब आलम यह है कि वन विभाग कर्मियों के रवैये से खफा विगत माहों हुयी वनाग्नि ने पूरा मंजर ही दुखदाई कर दिया।इसमें चाहे वनविभाग की नीतियां फेल रहीं या वन्य जीवन जी रहे लोगों की मूलभूत परेशानियां। अबतक कालागढ़ टाइगर रिजर्व के अधीन सताईस इको विकास समितियां इस पर काम करती रहीं लेकिन असंतोष , मौकापरस्त नीतियों ने समितियों और विभाग से लोगों का विश्वास टूटता रहा।कतिपय गांवों की समितियां भंग भी हुई जिनका कोई लेखा जोखा तक नहीं और कुछ के पंजीकरण नवीनीकरण भी आड़े आ रहे हैं कतिपय अध्यक्ष तो वर्षों से स्वयंभू बन बैठे हैं । जो खुद को आजीवन अध्यक्ष समझ बैठे हैं । आम बैठक में गिनेचुने अपने पक्ष के चार लोगों की सहमति से ही बनते रहे।वही सबसे ज्यादा वनविभाग को कहीं न कहीं इनसे आहत भी रहा हो।वनविभाग रेंज में हो रहे हैं निर्माण कार्य
वन विभाग रेंज स्तर पर कई निर्माण कार्य मनपसंद ठेकेदारों को देता रहा है जिनकी आपसी तालमेल से कागजी कार्रवाई और धरातलीय मिलान में जमीं आसमां का अन्तर देखा जा सकता है।जहां एक तरफ जंगल में जेसीबी चलाना घोर अपराध है वहीं वनक्षेत्राधिकारियों के रौब रुतबे , पैसे की चाहत के साथ ठेकेदारों से मिली भगत से बेखौफ जेसीबी बुलडोजर पार्क के अंदर तक जाते रहे हैं।जबकि सड़क से लगी वाटिकाओं को बनाने के लिये खुशामद करनी पड़ती है और निर्माणकार्य वनक्षेत्राधिकारी रोक लेते हैं । इस आशय से गांवों के साथ कैसा सामंजस्य इन समितियों का होगा अभी तक यह यक्ष प्रश्न सा लगता जा रहा है । प्रभागीय वनाधिकारी कालागढ़ टाइगर रिजर्व का कहना है कि वन वन्य जीव व वन्य ग्रामीणों को सहूलियतें दिलाने हेतु समितियां बनाई गयी जो बखूबी काम कर रहीं हैं कौन सी विवादग्रस्त रही इसकी जानकारी नहीं।LOCKDOWN BREAKING : राजधानी रायपुर में एक हफ्ते और बढ़ेगा लॉकडाउन!… जल्द हो सकती है घोषणा… इन व्यवसायों में छूट की उम्मीद
वन विभाग कान में रुई डालकर सो रहा !
वन विभाग के कालागढ़ टाइगर रिजर्व के अधीन मैदावन ,अदनाला और मंदाल रेंजों में ये समितियां बनाई गयीं जिसमें वन्य ग्रामों गैर विद्युतीकृत गांवों को सोलर लालटेन वितरण,चैकडाम ,वन्य जीव सुरक्षा बाढ़ ,सोलर पैनल सब्सिडी पर भी दिये गये । लेकिन महत्वाकांक्षा के चलते विवादग्रस्त रहे।अब आलम यह है कि वन विभाग कर्मियों के रवैये से खफा विगत माहों हुयी वनाग्नि ने पूरा मंजर ही दुखदाई कर दिया।इसमें चाहे वनविभाग की नीतियां फेल रहीं या वन्य जीवन जी रहे लोगों की मूलभूत परेशानियां। अबतक कालागढ़ टाइगर रिजर्व के अधीन सताईस इको विकास समितियां इस पर काम करती रहीं लेकिन असंतोष , मौकापरस्त नीतियों ने समितियों और विभाग से लोगों का विश्वास टूटता रहा।कतिपय गांवों की समितियां भंग भी हुई जिनका कोई लेखा जोखा तक नहीं और कुछ के पंजीकरण नवीनीकरण भी आड़े आ रहे हैं कतिपय अध्यक्ष तो वर्षों से स्वयंभू बन बैठे हैं । जो खुद को आजीवन अध्यक्ष समझ बैठे हैं । आम बैठक में गिनेचुने अपने पक्ष के चार लोगों की सहमति से ही बनते रहे।वही सबसे ज्यादा वनविभाग को कहीं न कहीं इनसे आहत भी रहा हो।
वन विभाग के कालागढ़ टाइगर रिजर्व के अधीन मैदावन ,अदनाला और मंदाल रेंजों में ये समितियां बनाई गयीं जिसमें वन्य ग्रामों गैर विद्युतीकृत गांवों को सोलर लालटेन वितरण,चैकडाम ,वन्य जीव सुरक्षा बाढ़ ,सोलर पैनल सब्सिडी पर भी दिये गये । लेकिन महत्वाकांक्षा के चलते विवादग्रस्त रहे।अब आलम यह है कि वन विभाग कर्मियों के रवैये से खफा विगत माहों हुयी वनाग्नि ने पूरा मंजर ही दुखदाई कर दिया।इसमें चाहे वनविभाग की नीतियां फेल रहीं या वन्य जीवन जी रहे लोगों की मूलभूत परेशानियां। अबतक कालागढ़ टाइगर रिजर्व के अधीन सताईस इको विकास समितियां इस पर काम करती रहीं लेकिन असंतोष , मौकापरस्त नीतियों ने समितियों और विभाग से लोगों का विश्वास टूटता रहा।कतिपय गांवों की समितियां भंग भी हुई जिनका कोई लेखा जोखा तक नहीं और कुछ के पंजीकरण नवीनीकरण भी आड़े आ रहे हैं कतिपय अध्यक्ष तो वर्षों से स्वयंभू बन बैठे हैं । जो खुद को आजीवन अध्यक्ष समझ बैठे हैं । आम बैठक में गिनेचुने अपने पक्ष के चार लोगों की सहमति से ही बनते रहे।वही सबसे ज्यादा वनविभाग को कहीं न कहीं इनसे आहत भी रहा हो।
वनविभाग रेंज में हो रहे हैं निर्माण कार्य
वन विभाग रेंज स्तर पर कई निर्माण कार्य मनपसंद ठेकेदारों को देता रहा है जिनकी आपसी तालमेल से कागजी कार्रवाई और धरातलीय मिलान में जमीं आसमां का अन्तर देखा जा सकता है।जहां एक तरफ जंगल में जेसीबी चलाना घोर अपराध है वहीं वनक्षेत्राधिकारियों के रौब रुतबे , पैसे की चाहत के साथ ठेकेदारों से मिली भगत से बेखौफ जेसीबी बुलडोजर पार्क के अंदर तक जाते रहे हैं।जबकि सड़क से लगी वाटिकाओं को बनाने के लिये खुशामद करनी पड़ती है और निर्माणकार्य वनक्षेत्राधिकारी रोक लेते हैं । इस आशय से गांवों के साथ कैसा सामंजस्य इन समितियों का होगा अभी तक यह यक्ष प्रश्न सा लगता जा रहा है । प्रभागीय वनाधिकारी कालागढ़ टाइगर रिजर्व का कहना है कि वन वन्य जीव व वन्य ग्रामीणों को सहूलियतें दिलाने हेतु समितियां बनाई गयी जो बखूबी काम कर रहीं हैं कौन सी विवादग्रस्त रही इसकी जानकारी नहीं।
वन विभाग रेंज स्तर पर कई निर्माण कार्य मनपसंद ठेकेदारों को देता रहा है जिनकी आपसी तालमेल से कागजी कार्रवाई और धरातलीय मिलान में जमीं आसमां का अन्तर देखा जा सकता है।जहां एक तरफ जंगल में जेसीबी चलाना घोर अपराध है वहीं वनक्षेत्राधिकारियों के रौब रुतबे , पैसे की चाहत के साथ ठेकेदारों से मिली भगत से बेखौफ जेसीबी बुलडोजर पार्क के अंदर तक जाते रहे हैं।जबकि सड़क से लगी वाटिकाओं को बनाने के लिये खुशामद करनी पड़ती है और निर्माणकार्य वनक्षेत्राधिकारी रोक लेते हैं । इस आशय से गांवों के साथ कैसा सामंजस्य इन समितियों का होगा अभी तक यह यक्ष प्रश्न सा लगता जा रहा है । प्रभागीय वनाधिकारी कालागढ़ टाइगर रिजर्व का कहना है कि वन वन्य जीव व वन्य ग्रामीणों को सहूलियतें दिलाने हेतु समितियां बनाई गयी जो बखूबी काम कर रहीं हैं कौन सी विवादग्रस्त रही इसकी जानकारी नहीं।