सक्ती। अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर पंडित शिवकुमार शर्मा वरिष्ठ अधिवक्ता पीयूष राय संगीता स्वीट्स के संचालक बंटी शर्मा,पत्रकार दीनदयाल शर्मा ने परशुराम चौक स्थित भगवान परशुराम जी की पुजा अर्चना की। 14 मई को सक्ती नगर सहित अंचल में अक्षय तृतीया का पर्व सादगी व परंपरागत तरीके से मनाया गया। हालांकि लाकडाउन के कारण इस वर्ष भी अक्षय तृतीया पर गुड्डा-गुड़ियों का विवाह परंपरा अनुसार देखने को नहीं मिला किंतु घरों में रहकर ही ये सारे कार्यक्रम जरूर संपन्न कराये गये।
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मांगलिक कार्यों के लिए जाना जाता है अक्षय तृतीया
विदित हो कि हिंदू पंचांग अनुसार अक्षय तृतीया वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला प्रमुख त्योहार है। मान्यता है कि इस दिन बिना किसी पंचांग देखे कोई भी शुभ मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, वस्त्र, आभूषण खरीदारी संबंधित कार्य किए जाते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है। सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था। मां गंगा का आगमन और महाभारत युद्ध की समाप्ति भी इसी दिन हुई। ब्लाक मुख्यालय सक्ती सहित ग्रामीण अंचल में आज अक्षय तृतीया के दिन बालक बालिकाएं आम और बरगद के नीचे बैठकर गुड्डा-गुड़ियों का विवाह संपन्न कराये। ये वृक्ष गर्मी के दिनों में शीतलता प्रदान करते हैं। कुछ ग्रामीणों ने बताया कि पुराने दिनों में आज के दिन ही नए घड़े भरे जाते और इसमें चना डाले जाते थे। और जैसे ये चने अंकुरित होते थे उसी आधार पर आगामी बारिश का अंदाजा लगाया जाता था।मांगलिक कार्यों के लिए शुभ मुहुर्तअक्षय तृतीया का मुहूर्त 14 मई को शुभ मुहुर्त सुबह पांच बजकर 38 मिनट से शुरू होकर 15 मई को सुबह सात बजकर 59 मिनट तक रहेगी। इस दौरान वैवाहिक बंधन से लेकर जमीन खरीदी, नया व्यापार शुरू करना, आभूषण खरीदारी जैसे सभी कार्य में शुभ फलदायी माना जाता है। ब्लाक मुख्यालय सक्ती सहित आसपास के गांव में इस दिन भारी संख्या में शादियां होती थीं, किंतु इस बार अक्षय तृतीया पर कोरोना महामारी का साया है। लाकडाउन की स्थिति में धूमधाम के साथ विवाह संपन्न नहीं हुआ बल्कि सीमित संख्या में सादगीपूर्ण तरीके से घरों में कार्यक्रम हुआ। केवल औपचारिकता निभाई गयी।मिट्टी से जुड़े कामगारों को बड़ा नुकसानअक्षय तृतीया के पूर्व ही सक्ती सहित गांवों के बाजारों में धूम रहता था। मिट्टी से विभिन्न सामग्री बनाने वाले कुम्हार जाति के लोग इन दिनों बहुत निराश हैं। समाज का हर परिवार अक्षय तृतीया के मौके पर मिट्टी के गुड्डा-गुड़िया बेचकर हजारों रुपये का कारोबार करते थे। लाकडाउन ने सब-कुछ चैपट कर दिया है। जिन्होंने पूर्व में बनाकर रख लिया था उन्हें भी काफी झटका लगा है। रोजी-रोटी पर इसका सीधा असर हुआ है। इसी तरह से अक्षय तृतीया से कई दिनों पहले से ही शादी ब्याह के लिए ज्वेलरी की खरीदारी शुरू हो जाती थी। सक्ती में लाकडाउन के कारण संकट की स्थिति है। विवाह स्थगित हो रहे हैं। बाजार पूरी तरह से बंद हैं। इसके कारण व्यवसाय पूरी तरह से प्रभावित हुआ है।
मांगलिक कार्यों के लिए जाना जाता है अक्षय तृतीया
विदित हो कि हिंदू पंचांग अनुसार अक्षय तृतीया वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला प्रमुख त्योहार है। मान्यता है कि इस दिन बिना किसी पंचांग देखे कोई भी शुभ मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, वस्त्र, आभूषण खरीदारी संबंधित कार्य किए जाते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है। सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था। मां गंगा का आगमन और महाभारत युद्ध की समाप्ति भी इसी दिन हुई। ब्लाक मुख्यालय सक्ती सहित ग्रामीण अंचल में आज अक्षय तृतीया के दिन बालक बालिकाएं आम और बरगद के नीचे बैठकर गुड्डा-गुड़ियों का विवाह संपन्न कराये। ये वृक्ष गर्मी के दिनों में शीतलता प्रदान करते हैं। कुछ ग्रामीणों ने बताया कि पुराने दिनों में आज के दिन ही नए घड़े भरे जाते और इसमें चना डाले जाते थे। और जैसे ये चने अंकुरित होते थे उसी आधार पर आगामी बारिश का अंदाजा लगाया जाता था।
विदित हो कि हिंदू पंचांग अनुसार अक्षय तृतीया वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला प्रमुख त्योहार है। मान्यता है कि इस दिन बिना किसी पंचांग देखे कोई भी शुभ मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, वस्त्र, आभूषण खरीदारी संबंधित कार्य किए जाते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है। सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था। मां गंगा का आगमन और महाभारत युद्ध की समाप्ति भी इसी दिन हुई। ब्लाक मुख्यालय सक्ती सहित ग्रामीण अंचल में आज अक्षय तृतीया के दिन बालक बालिकाएं आम और बरगद के नीचे बैठकर गुड्डा-गुड़ियों का विवाह संपन्न कराये। ये वृक्ष गर्मी के दिनों में शीतलता प्रदान करते हैं। कुछ ग्रामीणों ने बताया कि पुराने दिनों में आज के दिन ही नए घड़े भरे जाते और इसमें चना डाले जाते थे। और जैसे ये चने अंकुरित होते थे उसी आधार पर आगामी बारिश का अंदाजा लगाया जाता था।