आपने गांव बहुत देखें होंगे। वहां सुविधाओं का अभाव भी देखा होगा। कई तस्वीरें सामने आई होंगी। लेकिन आज हम जिस गांव की तस्वीर आपको दिखाने जा रहे हैं। उन तस्वीरों ने सरकारी तंत्र पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। उन दावों की पोल खोलकर रख दी है जिसमे ये कहा जाता है कि सब ठीक ठाक है। कांकेर जिले से 80 किलोमीटर दूर बसे कुदुरुपाल में बिजली के तार बिछे शायद 2 दशक से ज्यादा हो चुके हैं। लेकिन तारों की रानी यानी की बिजली ने आज तक अपना मुखड़ा इस गांव को नहीं दिखाया है। इसे प्रशासनिक उदासीनता माने या फिर मौका परस्ती क्योंकि चुनाव हो जाने के बाद ना तो इस गांव में आज तक कोई जनप्रतिनिधि आया और न ही किसी ने इन भोलेभाले ग्रामीणों की सुध ली। और बची हुई कसर बिजली विभाग ने पूरी दी।
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आपने गांव बहुत देखें होंगे। वहां सुविधाओं का अभाव भी देखा होगा। कई तस्वीरें सामने आई होंगी। लेकिन आज हम जिस गांव की तस्वीर आपको दिखाने जा रहे हैं। उन तस्वीरों ने सरकारी तंत्र पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। उन दावों की पोल खोलकर रख दी है जिसमे ये कहा जाता है कि सब ठीक ठाक है। कांकेर जिले से 80 किलोमीटर दूर बसे कुदुरुपाल में बिजली के तार बिछे शायद 2 दशक से ज्यादा हो चुके हैं। लेकिन तारों की रानी यानी की बिजली ने आज तक अपना मुखड़ा इस गांव को नहीं दिखाया है। इसे प्रशासनिक उदासीनता माने या फिर मौका परस्ती क्योंकि चुनाव हो जाने के बाद ना तो इस गांव में आज तक कोई जनप्रतिनिधि आया और न ही किसी ने इन भोलेभाले ग्रामीणों की सुध ली। और बची हुई कसर बिजली विभाग ने पूरी दी।ना बल्ब ना मीटर, फिर भी आया बिलविभाग के अधिकारियों और उनके अधीनस्थ कर्मचारियों ने यहां के ग्रामीणों को बिजली का बिल थमाया है। औसतन 2 हजार का बिल हर ग्रामीण के घर पर आया है। लेकिन साहब को ये नहीं पता कि जिस बिल को उनके कर्मचारियों ने ग्रामीणों को थमाया है। उनके घर में 25 सालों से बिजली आई ही नहीं। गांव बसे 25 साल हो गए है। लेकिन बुनियादी सुविधाएं तो दूर इनको अपना जीवन यापन करने के लिए संघर्ष करना प़ड़ रहा है।रोजाना एक नई लड़ाई है। कभी खाने की, कभी सिर छिपाने की तो कभी गांव के किसी बीमार को शहर पहुंचाने की। ना जाने कितनी चुनौतियां आज इस गांव के ग्रामीणों के सामने हैं। बावजूद इसके इनके चेहरे में कभी शिकन दिखाई नहीं पड़ती। शिकायत तो काफी है लेकिन इन्हें समझ नहीं आता कि कहे किस से। पूछने पर बड़े ही मासूमियत से जवाब दे देते हैं कि जिन चीजों की हमें जरुरत है वही कोई नहीं देता।प्रशासन की उदासीनता से ग्रामीण परेशानप्रशासन भले ही जिले में सबकुछ कुशल मंगल होने का लाख दावे करें। लेकिन हकीकत कुछ और ही है। गांव में शिक्षा की अलख कैसे जगेगी कोई नहीं जानता । निर्माणाधीन आंगनबाड़ी सफेद हाथी बनकर ग्रामीणों को मुंह दिखा रहा है। नौनिहालों को कल का भविष्य कहा जाता है.लेकिन इस गांव में ना जाने बीते 25 सालों में कितने बच्चे अज्ञानता के अंधकार में गोते लगाकर युवा हो गए। इन तस्वीरों को देखकर हर किसी के मन में, दिलो-दिमाग में एक बात घर कर जाती है कि क्या आज के दौर में किसी भी गांव के लिए बुनियादी चीजें इकट्ठा करना इतना मुश्किल है। शायद नहीं। फिर भी किसी ने इस गांव की तरफ जिम्मेदारी भरा कदम नहीं उठाया। बिजली,सड़क,पानी राशन हर किसी की जरुरत है।इनके बिना इस सुदूर इलाके में लोग अपना जीवन कैसे जी रहे हैं।ये जिम्मेदारों को सोचना है। ताकि इनके साथ जो कुछ हो रहा है वो आगे ना हो।BIG BREAKING- 2 करोड़ 70 लाख का गांजा बरामद, ट्रक से हो रही थी तस्करी
BIG BREAKING- 2 करोड़ 70 लाख का गांजा बरामद, ट्रक से हो रही थी तस्करी
ना बल्ब ना मीटर, फिर भी आया बिल
विभाग के अधिकारियों और उनके अधीनस्थ कर्मचारियों ने यहां के ग्रामीणों को बिजली का बिल थमाया है। औसतन 2 हजार का बिल हर ग्रामीण के घर पर आया है। लेकिन साहब को ये नहीं पता कि जिस बिल को उनके कर्मचारियों ने ग्रामीणों को थमाया है। उनके घर में 25 सालों से बिजली आई ही नहीं। गांव बसे 25 साल हो गए है। लेकिन बुनियादी सुविधाएं तो दूर इनको अपना जीवन यापन करने के लिए संघर्ष करना प़ड़ रहा है।रोजाना एक नई लड़ाई है। कभी खाने की, कभी सिर छिपाने की तो कभी गांव के किसी बीमार को शहर पहुंचाने की। ना जाने कितनी चुनौतियां आज इस गांव के ग्रामीणों के सामने हैं। बावजूद इसके इनके चेहरे में कभी शिकन दिखाई नहीं पड़ती। शिकायत तो काफी है लेकिन इन्हें समझ नहीं आता कि कहे किस से। पूछने पर बड़े ही मासूमियत से जवाब दे देते हैं कि जिन चीजों की हमें जरुरत है वही कोई नहीं देता।
प्रशासन की उदासीनता से ग्रामीण परेशान
प्रशासन भले ही जिले में सबकुछ कुशल मंगल होने का लाख दावे करें। लेकिन हकीकत कुछ और ही है। गांव में शिक्षा की अलख कैसे जगेगी कोई नहीं जानता । निर्माणाधीन आंगनबाड़ी सफेद हाथी बनकर ग्रामीणों को मुंह दिखा रहा है। नौनिहालों को कल का भविष्य कहा जाता है.लेकिन इस गांव में ना जाने बीते 25 सालों में कितने बच्चे अज्ञानता के अंधकार में गोते लगाकर युवा हो गए। इन तस्वीरों को देखकर हर किसी के मन में, दिलो-दिमाग में एक बात घर कर जाती है कि क्या आज के दौर में किसी भी गांव के लिए बुनियादी चीजें इकट्ठा करना इतना मुश्किल है। शायद नहीं। फिर भी किसी ने इस गांव की तरफ जिम्मेदारी भरा कदम नहीं उठाया। बिजली,सड़क,पानी राशन हर किसी की जरुरत है।इनके बिना इस सुदूर इलाके में लोग अपना जीवन कैसे जी रहे हैं।ये जिम्मेदारों को सोचना है। ताकि इनके साथ जो कुछ हो रहा है वो आगे ना हो।