गरियाबंद- उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व के काफी मनोरम पर्यटन स्थल देवदाहरा जलप्रपात के उपर लगातार हर साल प्रवासी प्रवासी पक्षि यहाँ आते है, जलसरोवर है जिसे अलग अलग नामों से जाना जाता है इसी में उदंती, मोखाघाट, इंद्रावन नदी भी समाहित होती है इन दिनाें इस देवदाहरा नदी के उपरी भाग में चारो तरफ नदी किनारे जंगल के पेडो में और नदी के उपर सफेद और काले रंग की चादर बरबस ही लोगो का ध्यान खींच लेते है इस नदी में हजारों की संख्या में प्रवासी पक्षी हर साल बारिश में यहा घोसला बनाने आते है, यहा मादा पक्षी अंडे देती है और बच्चे के बडे होने के बाद लौट जाती है इस क्षेत्र के जानकार ग्रामीणों ने बताया कि पहले बहुत कम संख्या में ये पक्षी दिखाई देते थे लेकिन पिछले चार पांच वर्षो से बडी संख्या में बारिश प्रारंभ होते ही ये पक्षी यहा आने लगे है, तथा बारिश के बाद कुछ दिनो में यह पक्षी उडकर कही अन्य जगह चले जाते है पक्षियों के इस प्राकृतिक बसेरे को आज तक संरक्षित नही किया गया है,
वैसे भी उंदती अभ्यारण्य में विभिन्न प्रकार के पक्षियों की प्रजाति देखने को मिलती है लेकिन यह प्रवासी पक्षी साल में एक बार बारिश के शुरूआत में ही यहा पहुचते है और छोटे छोटे पेड़ों में अपने डेरा डालकर घोसला बनाते है, सुबह और शाम के समय देवदाहरा और उसके उपर लगातार जो सात सरोवर है साथ ही मोखाघाट नदी के उपर यह काला और सफेद रंग की पक्षिया उडते रहते है, जो काफी मनमोहक नजर आते है, ऐसा लगता है कि जैसा प्रकृति ने सफेद और काली रंग की चादर इस नदी के उपर डाल दिया है, अभी यह पक्षियों का आना शुरू हुआ है, जो यहा अपना बसेरा बना रहा है साथ ही ठंड के मौसम के बाद यहा से चले जायेंगे इसके संरक्षण और संवर्धन किये जाने की जरूरत है .
इस सबंध में स्थानीय ग्रामीण रामेश्वर कमार, मंगल कमार, बिसाखू कमार ने बताया कि अब तक किसी भी नागरिकों द्वारा या पर्यटको द्वारा इस मेहमान पक्षी को नुकसान नही पहुचाया गया है और न ही इसका शिकार किया जाता है, लेकिन शासन प्रशासन चाहे तो इन पक्षियों के संरक्षण करने से यहा आने वाले पर्यटकों को देवदाहारा जलप्रपात के साथ ही इन पक्षियों को देखने का अलग ही आंनद मिलेगा, मिली जानकारी के अनुसार यह एक वृहद कार पक्षी है, जो पक्षी क्षेत्रो को छोडकर भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है लंबी गर्दन व टांगे तथा चोंच के मध्य खाली स्थान इसकी मुख्य पहचान है। यह खुले पंखो के साथ बडी गर्दन और बडे पैर अधिकांश के मुकुट भी देखने को मिलता है रात में ये बगुले नदी किनारे स्थिर खडे रहते है और घात लगाकर शिकार करते है दिन में आराम करते है, साथ ही यह नदी सरोवर और एकांत स्थान को पंसद करते है