भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर तीन दिनों की रूस की यात्रा पर थे। भारतीय विदेश मंत्री का यह दौरा भारत-रूस साझेदारी से इतर दोनों देशों के बीच सामरिक साझेदारी को और मजबूत करने का एक अवसर भी है। खास बात यह है कि विदेश मंत्री का यह दौरा ऐसे समय हो रहा है, जब भारत और चीन के रिश्ते काफी तल्ख है। पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन के बीच सैन्य तनाव बना हुआ है। यह बात तब और अहम हो जाती है, जब चीन और रूस के बीच संबंध बेहद मधुर है। दूसरे, पाकिस्तान से भी अब रूस के संबंध पूर्व की तरह नहीं हैं। रूस और पाकिस्तान की निकटता बढ़ रही है। दोनों देशों के बीच सामरिक रिश्ते मजबूत हो रहे हैं। यह भारत के लिए चिंता का विषय है।
रूस के साथ नए संबंधों की तलाश में भारत
- प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि भारत लगातार इस कोशिश में जुटा है कि रूस के साथ संबंधों में नए आयाम लाए जाए। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि भारत-रूस के बीच सिर्फ रक्षा संबंध रह गए हैं। इसके अलावा कई मुद्दों पर दोनों देशों के बीच मतभेद बढ़े हैं। मसलन इंडो पैसिफिक की रणनीति पर रूस और भारत के बीच मतभेद हैं। इस ममाले में रूस और चीन एक दूसरे के काफी करीब हैं। इसलिए दोनों देशों के बीच वार्ता जरूरी है।
- दूसरे, भारत की यह भी रणनीति रहेगी कि रूस, अपने दोस्त चीन पर लद्दाख को लेकर दबाव बनाए। हाल में मौजूद भारतीय राजदूत ने भी रूस के समक्ष भारत की चिंताए रखी थीं। उस वक्त रूस ने पूरा आश्वासन दिया था कि यदि चीन के साथ भारत का विवाद बढ़ता है तो उसे शांतिपूर्ण ढंग से हल करने की कोशिश की जाएगी।
- प्रो. पंत के मुताबिक रूस यह भलीभांति समझता है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जबकि चीन सर्वसत्तावादी या कहें एक तरह की तानाशाही वाला देश है। इसलिए रूस, भारत के साथ अपने संबंध अधिक प्रेमपूर्ण मानता है और यही भारत और रूस के पुराने-घनिष्ट संबंधों का आधार है। उन्होंने कहा कि हालांकि बीते एक दशक में वैश्विक परिस्थितियों में तेजी से बदलाव हुआ है। इस क्रम में चीन के साथ रूस के संबंध मजबूत होते जा रहे हैं।
- रूस का पूर्व विश्वास है कि बहुध्रुवीय विश्व बने। चीन का इस मामले में रूस से पुराना वैचारिक मतभेद है। इस मामले में चीन कहीं न कहीं रूस को भारत के ज्यादा नजदीक समझता है। उन्होंने कहा कि यदि सीमा विवाद पर चीन और भारत के बीच अगर टकराव बढ़ता है तो रूस की अंतरराष्ट्रीय स्थिति पर भी असर पड़ेगा। रूस में सत्ता में बैठै लोग यह बात भली भांति समझते हैं कि जिस दिन भारत कमजोर हुआ उस दिन चीन से सबसे ज्यादा परेशानी रूस को होगी। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि मध्य एशिया में जो वर्चस्व सावियत संघ का था, वह स्थान धीरे-धीरे चीन ने ग्रहण कर लिया है।
- प्रो. पंत का कहना है कि अब यह नौबत आ चुकी है कि आज जब रूस और चीन आपस में खड़े होते हैं तो रूस का कद छोटा नजर आता है। उनका कहना है कि आज दोनों देशों के बीच बड़े पैमाने पर व्यापार होता है। दोनों में संबंध इस तरह है कि रूस नंबर-2 यानी छोटे साझेदार के रूप में चीन के साथ खुशी से खड़े होने को तैयार है। उन्होंने कहा कि रूस को इसलिए भी ऐतराज नहीं है, क्योंकि वह चीन से ज्यादा अमेरिका को बड़ी परेशानी मानता है। वह अमेरिका को संतुलित करने के लिए चीन की मदद लेने को भी तैयार है। उन्होंने कहा कि यहां भारत के लिए परेशानी जरा अलग किस्म की है, क्योंकि चीन से खट-पट होने के बाद रूस की मदद से भारत तीनों देशों के बीच पावर का एक बैलेंस बनाना चाहता है।
- रूस और भारत के बीच हुई संधियों में एक प्रावधान यह भी है कि दोनों देशों की सुरक्षा के लिए कोई चुनौती खड़ी होती है तो दोनों देश एक दूसरे से विचार-विमर्श करेंगे। ऐसे में यह उम्मीद की जा सकती है कि चीन के साथ ज्यादा तनावपूर्ण स्थिति में रूस, भारत के लिए चीन पर दबाव डाल सकता है।