पेट्रोल और डीजल फिलहाल GST के दायरे से बाहर है। लोकसभा में पूछे सवाल के जवाब में पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस राज्य मंत्री रामेश्वर तेली ने कहा कि GST काउंसिल ने इसके लिए कोई सिफारिश नहीं की है। मार्च में आई एक रिसर्च रिपोर्ट कहती है कि अगर पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स GST के दायरे में आते हैं तो पूरे देश में पेट्रोल की कीमत 75 रुपए प्रति लीटर और डीजल 68 रुपए प्रति लीटर हो सकता है। पर GST काउंसिल में शामिल राज्यों को इस पर आपत्ति है और इसी वजह से यह मामला अटका हुआ है।
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इस साल जुलाई तक देश में पेट्रोल की कीमतें 66 बार बढ़ीं हैं और केवल 6 बार कम की गई हैं। इसी तरह डीजल की कीमतें भी 63 बार बढ़ीं हैं और केवल 4 बार कम की गई हैं। देश में कई जगहों पर पेट्रोल का रेट 110 रुपए/लीटर से भी ज्यादा हो गया है।
जून 2010 तक सरकार पेट्रोल की कीमत निर्धारित करती थी और हर 15 दिन में इसे बदला जाता था, लेकिन 26 जून 2010 के बाद सरकार ने पेट्रोल की कीमतों का निर्धारण ऑयल कंपनियों के ऊपर छोड़ दिया। इसी तरह अक्टूबर 2014 तक डीजल की कीमत भी सरकार निर्धारित करती थी, लेकिन 19 अक्टूबर 2014 से सरकार ने ये काम भी ऑयल कंपनियों को सौंप दिया।
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यानी कि पेट्रोलियम प्रोडक्ट की कीमत निर्धारित करने में सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। ये काम ऑयल मार्केटिंग कंपनियां करती हैं। ऑयल कंपनियां अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल की कीमत, एक्सचेंज रेट, टैक्स, पेट्रोल-डीजल के ट्रांसपोर्टेशन का खर्च और बाकी कई चीजों को ध्यान में रखते हुए रोजाना पेट्रोल-डीजल की कीमत निर्धारित करती हैं।
पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों के पीछे सरकारी टैक्स ही सबसे बड़ी वजह है। अभी पेट्रोल-डीजल का बेस प्राइस करीब 40 रुपए ही है, लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से लगने वाले टैक्स से इनकी कीमतें देश के कई हिस्सों में 110 रुपए के पार पहुंच गई हैं।
केंद्र सरकार पेट्रोल पर 33 रुपए एक्साइज ड्यूटी वसूल रही है। इसके बाद राज्य सरकारें इस पर अपने हिसाब से वैट और सेस वसूलती हैं। इससे पेट्रोल-डीजल का दाम बेस प्राइज से 3 गुना तक बढ़ गया है। भारत में पेट्रोल पर 55 और डीजल पर 44 रुपए से भी ज्यादा टैक्स वसूला जाता है।