महासमुंद।
मुख्यालय के नजदीकी नगर पंचायत तुमगांव का सपेरा डेरा। संवरा जनजाति के लोगों की मुख्य आजीविका सांपों पर निर्भर है। सपेरा डेरा के निवासी सांपों को अपना परिवार मानते हैं। इस बस्ती में रहने वालों के लिए सांप केवल आय का जरिया नहीं है। संवरा जनजाति के लोगों में सांपों को सुरक्षित रखने के कड़े नियम भी हैं। अगर सांप की मौत होती है तो पूरे परिवार के सदस्य मुंडन कराते हैं और कुनबे के लोगों को भोज भी कराते हैं।
शादी में वर पक्ष को 21 जहरीले सांप भेंट करते हैं। इनमें गहुंआ और डोमी जरूरी होता है। दूध-मुंहे बच्चे भी इन जहरीले सांपों से ऐसे घुले-मिले हैं। मानो सांपों के प्रति इनके मन में कोई भय न हो। इनके घर में जन्म लेने वाले बच्चे बचपन से ही सांपों के साथ पलते बढ़ते हैं और आगे चलकर अपने पारिवारिक पेशे को आगे लेकर जाते हैं। दरअसल, इनकी पूरी आजीविका सांपों पर निर्भर रहती है। इसलिए संवरा जनजाति के लोग इन्हें सदस्य ही मानते हैं।
संवरा जनजाति के लोग विवाह में बेटी विदा करने के साथ वर पक्ष को 21 जहरीले सांप भी उपहार स्वरूप भेंट करते हैं। जनजाति परिवार के बुजुर्ग कृष्णा नेताम ने बताया कि पूर्वजों द्वारा बनाई गई इस परंपरा को वे आज भी निभा रहे हैं। विवाह के लिए सांप का उपहार आवश्यक है। कृष्णा के अनुसार यह परंपरा बुजुर्गो के जमाने से चली आ रही है, जिसे वे आज भी वे निभा रहे है। उन्होंने बताया कि 21 सांपों में दो प्रमुख प्रजाति के सांप गहुंआ और डोमी दिया जाना भी आवश्यक है।
वर पक्ष को भेंट में मिलने वाले सांपों को नव दंपति अपनी रोजी रोटी का जरिया बनाते हैं। लोगों को सांप दिखाकर होने वाली आय से परिवार का भरण पोषण करते है। इस जमापूंजी से होने वाली आय से उनके परिवार को दो वक्त की रोटी मिलती है। दहेज में मिले कुछ सांपों को दिखाने के लिए अपने पास रखा जाता है और अन्य को परिवार के लोगों को भी बांटा जाता है।
सपेरे जनजाति के परिवार के लोगों ने बताया कि जब तक वधु पक्ष भेंट में देने के लिए सांप की व्यवस्था नहीं कर लेते, तब तक उनका विवाह नहीं होता। इसकी वजह से विवाह एक से दो साल तक के लिए टल जाता है। कृष्णा बताते हैं कि उनके पुत्र कैलाश के विवाह के लिए वधु पक्ष को सांप नहीं मिलने की वजह से करीब दो साल प्रतीक्षा करनी पड़ी।