जिला खनिज न्यास (DMF) के विवाद का अंतत: पटाक्षेप हो गया है। केंद्र सरकार के निर्देश पर राज्य सरकार झुकना पड़ गया है। सरकार ने DMF के अध्यक्ष पद से प्रभारी मंत्री को बाहर कर दिया है। अब तक पदेन सदस्य सचिव रहे कलेक्टर को अध्यक्ष बना दिया गया है। सांसदों को भी DMF के शासी परिषद में जगह मिल गई है।
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राज्य सरकार ने खनिज न्यास की नियमावली में बदलाव को राजपत्र में प्रकाशित कर दिया है। खनिज साधन विभाग की ओर से जारी अधिसूचना के मुताबिक, सदस्य सचिव रहे कलेक्टर को अब DMF का अध्यक्ष बना दिया गया है। वहीं सांसदों को भी शासी परिषद का सदस्य बनाया गया है। जिले में एक से अधिक लोकसभा सीट होने पर सभी सांसद इसका हिस्सा होंगे। अगर कोई लोकसभा सीट एक से अधिक जिलों में आती है तो सांसद उन सभी जिलों की परिषद में शामिल होंगे। राज्य सभा के सांसदों को किसी एक जिले की शासी परिषद में रखा जाएगा। उन्हें खनिज साधन विभाग के सचिव को बताना होगा कि वे किस जिले की शाषी परिषद में रहना चाहते हैं।
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इस मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकार के बीच पिछले कई महीनों से विवाद चल रहा था। केन्द्रीय खनन मंत्रालय ने 23 अप्रैल 2021 को नियमों संशोधन करते हुए कलेक्टर को ही अध्यक्ष बनाने का फैसला किया है। विधायक व सांसदगण इसकी शासी परिषद में सदस्य होंगे। सरकार को इस पर आपत्ति थी।
वनमंत्री मोहम्मद अकबर का कहना था कि DMF का गठन करने के लिए नियम बनाने का पूर्ण अधिकार राज्य सरकारों को है। इसके तहत छत्तीसगढ़ शासन ने जिले के प्रभारी मंत्री को अध्यक्ष नियुक्त करने का प्रावधान किया था। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने केंद्रीय खनन मंत्रालय को पत्र लिखा, लेकिन बात नहीं बनी। पिछले महीने केंद्रीय खनन मंत्री प्रल्हाद जोशी ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कलेक्टर को ही DMF का अध्यक्ष बनाने का आग्रह किया था।