बस्तर। छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय एक बार फिर जोरदार तरीके से आंदोलित हो उठा है। आदिवासियों ने पूर्व CM, HM, DGP सहित तत्कालीन SP और IG के खिलाफ तत्काल FIR दर्ज करने की मांग भूपेश सरकार से की है। इसके साथ ही 20 सितंबर को छत्तीसगढ़ बंद का भी ऐलान किया गया है।
क्यों आंदोलित हुए आदिवासी
दरअसल 6 अप्रैल 2010 को सुकमा के ताडमेटला गांव के पास सीआरपीएफ पर सबसे बड़ा नक्सली हमला हुआ था। इसमें 76 जवान शहीद हो गए थे। जिसके बाद 16 अप्रैल 2011 के बीच सुरक्षा बलों ने ताड़मेटला, मोरपल्ली और तिम्मापुर गांवों में घुसकर आगजनी की थी। फिर सारकेगुड़ा गांव में जून 2012 में बीज पंडुम मनाने इकट्ठा हुए ग्रामीणों पर धुंआधार फायरिंग हुई, जिसमें 17 ग्रामीणों की मौत हो गई थी, लेकिन पुलिस ने इसे मुठभेड़ का नाम दे दिया था।
इसके बाद 17 मई 2013 की रात बीजापुर के एडसमेटा गांव में सुरक्षा बलों के एक अभियान दल ने ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार कर दी थी। इस गोलीबारी में एक सुरक्षाकर्मी सहित 11 ग्रामीणों की मौत हो गई थी, जिसमें 4 बच्चे भी शामिल थे। इसे भी मुठभेड़ का नाम दिया गया था, जिसे सिरे से खारिज कर जांच बिठा दी गई थी। अब वही जांच रिपोर्ट सरकार के पास आ चुकी है।
छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के पोटाई धड़े के कार्यकारी अध्यक्ष बीएस रावटे ने कहा कि एडसमेटा, सारकेगुड़ा और ताडमेटला कांड की न्यायिक जांच रिपोर्ट से साफ हो चुका है कि मारे गए लोग निर्दोष आदिवासी थे। वहीं इन घटनाओं के बाद जिस पुलिस अधिकारी को पदोन्नति और बहादुरी का मेडल मिला है उसे वापस लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि सिलगेर गोली कांड में मृतकों के परिजनों को 50 लाख रुपए का मुआवजा, परिवार के एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी की मांग कायम है।