नई दिल्ली। एक सरकारी अधिकारी ने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में जिस तेजी से कच्चे तेल के दाम बढ़ रहे हैं, उस स्थिति में सरकार के पास पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। भारत ना केवल कच्चे तेल का तीसरा बड़ा आयातक है बल्कि वह तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है। देश अपनी कच्चे तेल की जरूरत का 85 फीसद और प्राकृतिक गैस की जरूरत का 50 फीसद आयात करता है। कच्चे तेल को आयात करने के बाद उसे पेट्रोल और डीजल जैसे ईधन में बदला जाता है जबकि गैस का उपयोग वाहनों में सीएनजी और कारखानों में ईधन के तौर पर होता है।
पेट्रोल-डीजल की कीमत तय करने में शामिल एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें ज्यादा हैं, जिसके चलते भारत जैसे देशों को फिलहाल कोई राहत मिलती नहीं दिख रही है। एक महीने पहले जहां कच्चे तेल का दाम 72 डालर प्रति बैरल था वहीं सोमवार को यह बढ़कर 79 डालर प्रति बैरल हो गया। चूंकि बढ़े हुए दामों ने तेल कंपनियों के मार्जिन पर खासा असर डाला है, इसीलिए कीमतों में बढ़ोतरी का भार उपभोक्ताओं पर डाला जा रहा है।
जुलाई-अगस्त में इसलिए नहीं बढ़ा डीजल पेट्रोल का दाम
अधिकारी ने कहा कि जुलाई और अगस्त के महीने में कच्चे तेल के दामों में बहुत उतार-चढ़ाव नहीं आया था, इसीलिए तेल कंपनियों ने 18 जुलाई से 23 सितंबर तक कोई मूल्य वृद्धि नहीं की गई थी। उल्टे पेट्रोल की कीमत में 0.65 रुपये प्रति लीटर और डीजल के दामों में 1.25 रुपये की कमी की गई थी। हालांकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगातार बढ़ती कीमतों के चलते 28 सितंबर से पेट्रोल और 24 सितंबर से डीजल की कीमतों में वृद्धि शुरू की गई। यह बात ठीक है कि सोमवार को पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कोई वृद्धि नहीं हुई, लेकिन 24 सितंबर से अब तक डीजल के दाम 2.15 रुपये बढ़ चुके हैं जबकि एक सप्ताह में पेट्रोल के दामों में सवा रुपये की बढ़ोतरी हो चुकी है।
एलपीजी की दरों में बढ़ोतरी
पेट्रोलियम सचिव तरुण कपूर ने पिछले सप्ताह कहा था कि तेल कंपनियां लागत के साथ खुदरा दरों के तालमेल के लिए खुद निर्णय ले रही हैं। हालांकि साथ ही वे सुनिश्चित कर रही हैं कि बाजार में अत्यधिक उतार-चढ़ाव की स्थिति नहीं बने। उन्होंने कहा, ‘हमारी स्थिति पर निगाह है। यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि वैश्विक उतार-चढ़ाव का प्रभाव देश में सीमित रहे।’ एक अन्य अधिकारी ने कहा कि एलपीजी दरों पर गौर करें तो एक महीने में इसकी कीमत 665 डालर से 797 डालर हो गई है, लेकिन पेट्रोलियम कंपनियों ने इसका पूरा बोझ ग्राहकों पर नहीं डाला है।