रायपुर। आदिवासी बाहुल्य सरगुजा के मदनपुर क्षेत्र से राजधानी रायपुर की ओर चल पड़ी “हसदेव बचाव यात्रा” राजधानी पहुंच चुकी है। इस लंबी यात्रा का उद्देश्य साधारण नहीं है, बल्कि आदिवासियों के भीतर की ज्वालामुखी है, जो लावा बनकर उनके दिल में उबल रहा है। दरअसल, हसदेव अरण्य क्षेत्र में जारी कोयला खनन और कोल ब्लाक आबंटन के खिलाफ आदिवासियों का यह आंदोलन है। इसमें 400 से अधिक स्थानीय आदिवासियों का एक समूह 300 किमी की पदयात्रा कर विरोज दर्ज कराने राजधानी पहुंचा है।
ख्याल रखने सीएम ने दिए निर्देश
उनकी पदयात्रा राजभवन तक तय है, पर सुरक्षा के मद्देनजर उन्हें रोकने का पूरा इंतजाम किया गया हैं। खास बात यह है कि इसके लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रशासन को खास दिशा—निर्देश दे रखा है, जिसमें पदयात्रा कर राजधानी पहुंचे आदिवासियों के सम्मान और उनकी जरुरतों का पूरा ख्याल रखा जाना है। उनके भोजन से लेकर ठहरने की तमाम व्यवस्था प्रशासन को भले प्रकार से ही करनी है। सीएम बघेल के निर्देश पर प्रशासन ने भनपुरी में आदिवासियों के लिए दोपहर के भोजन से लेकर रास्ते भर पेयजल की व्यवस्था सुनिश्चित कर रखी थी।
तो क्या विरोध सीएम बघेल का..?
सरगुजा से पदयात्रा कर राजधानी रायपुर पहुंचे आदिवासियों के हित की चिंता कर रहे मुख्यमंत्री बघेल ने उनके सम्मान का ख्याल रखा, उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रशासन को लगा दिया, तो ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि फिर क्यों मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का आदिवासी विरोध कर रहे हैं..? तो इस बड़े सवाल का जवाब आगे मिलेगा।
असल विरोध आखिर किस बात का..?
बीते दो साल से भारत कोरोना की चपेट में है। शासन से लेकर निजी कामों तक में बाधाएं आईं, बमुश्किल हालात सामान्य हुए हैं, लेकिन खौफ अब भी कायम है। इस बीच जब पूरा देश कोरोना के खौफ में घरों के भीतर दुबका था, 18 जून 2020 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत देश के 41 कोल ब्लाक की नीलामी की प्रकिया शुरू की। इसमें सबसे बड़ा बदलाव यह रहा कि देश के इतिहास में पहली बार भारत के कोयला खदानों को कमर्शियल माइनिंग के नामपर निजी कंपनियों को खनन और विक्रय का स्वतंत्र अधिकार देने का निर्णय लिया गया। कमर्शियल माइनिंग के लिए तय 41 कोल ब्लॉक कि यह सूची 2021 में अब 67 के करीब पहुँच चुकी है। विरोध की जड़ यही है।
सीएम बघेल ने किया विरोध
केंद्र सरकार ने 18 जून को देश भर में छत्तीसगढ़ सहित, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, मध्य प्रदेश और झारखंड के 41 कोयला खदानों में कमर्शियल माइनिंग की नीलामी प्रक्रिया के लिए नोटिफिकेशन जारी किया था। तब 5 दिनों के भीतर ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 22 जून को एक पत्र लिखकर केंद्र से हसदेव क्षेत्र की पांच खदानों को कमर्शियल माइनिंग नीलामी प्रक्रिया से बाहर रखने का आग्रह किया था। इस बीच केन्द्रीय कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी का भी छत्तीसगढ़ दौरा हुआ।
इस विजिट के दौरान मुख्यमंत्री के साथ हुई बैठक के बाद केन्द्रीय मंत्री ने भी मुख्यमंत्री के इस बात पर स्वीकारोक्ति देते हुए केंद्र के फैसले पर बदलाव करने की बात कही और 31 जुलाई 2020 कमर्शियल माइनिंग के लिए चिन्हित राज्य की 9 कोयला खदानों में से पांच को लिस्ट से हटा दिया। जिन कोयला खानों को लिस्ट से हटाया गया है उनमें मोरगा टू, मोरगा साउथ, मदनपुर नार्थ, सयांग और फतेहपुर ईस्ट शामिल हैं। ये सभी खानें राज्य में कोरबा जिले के हसदेव और मांड नदियों के कछार क्षेत्र में स्थित हैं।
अंतत: विरोध का आया जवाब
इस पूरे मामले पर हसदेव बचाव संघर्ष समिति की अगुवाई कर रहे उमेश्वर सिंह उम्रे ने बताया कि उनका मुख्य विरोध भारत सरकार के खिलाफ है। हम कोयला खदानों का अडानी जैसे घरानों को दिए जाने का विरोध कर रहे हैं। साथ ही बताया कि गलत तरीके से भूमि अधिग्रहण करने का विरोध कर रहे हैं। स्पष्ट किया कि उनकी लड़ाई मुख्यमंत्री से नहीं है।