देश ही नहीं, बल्कि दुनिया में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है, जिसकी वजह से ग्लोबल वार्मिंग में भी तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है और यह सिलसिला लगातार बरकरार रहा, तो वह दिन भी दूर नहीं, जब भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई सहित 50 से ज्यादा शहर समंदर का निवाला बन चुके होंगे।
दरअसल, आज के दौर में इंसान अपनी भौतिक सुख—सुविधाओं में प्रकृति को जिस तरह से नुकसान पहुंचा रहा है, उसका परिणाम है कि प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता ही जा रहा है। चाहे बात दूरियां तय करने के लिए उपयोग किए जाने वाले एयर कंडीशनर वाहनों की हो, या फिर घर और दफ्तर में इस्तेमाल किए जा रहे एयर कंडीशनर की हो। तो वहीं अपनी सुविधाओं के लिए प्रकृति को धड़ल्ले से नुकसान पहुंचाने की बात हो। इन सबका दुष्प्रभाव प्रदूषण के रुप में सामने आ रहा है। खासतौर पर उत्सर्जित होने वाले कार्बन, जो सदियों तक वायुमंडल में विद्यमान रहते हैं।
खतरे में एशिया के 50 शहर
अब इसी ग्लोबल वार्मिंग का दुष्प्रभाव है कि समुद्री जलस्तर में तेजी से वृद्धि हो रही है। यदि इसी तरह लगातार कार्बन उत्सर्जन होता रहा तो, मुंबई समेत एशिया के 50 शहर समंदर का निवाला बन जाएंगे। इन 50 शहरों में भारत, चीन, इंडोनेशिया, बांग्लादेश और वियतनाम के नाम शामिल हैं। जिसका खुलासा एक नई रिपोर्ट में किया गया है।
कोयला प्रमुख स्त्रोत
भारत सहित चीन, इंडोनेशिया, बांग्लादेश और वियतनाम ऐसे प्रमुख देश हैं, जहां पर कोयला आधारित प्लांट सबसे ज्यादा हैं। और तो और नए प्लांट के निर्माण पर किसी तरह की रोक नहीं लग पा रही है। दूसरी तरफ इन्हीं देशों में आबादी भी काफी ज्यादा है। यही वजह है कि वैज्ञानिकों ने आशंका जाहिर की है कि ग्लोबल वार्मिंग का सबसे बुरा असर इन देशों में ही सबसे ज्यादा नजर आएगा।
खतरे में मुंबई
दुनियाभर के जो देश हाई-टाइड वाले जोन में आते हैं, वहां पर समुद्री जलस्तर बढ़ने से 15 फीसदी की आबादी प्रभावित होगी। यह स्टडी हाल ही ‘क्लाइमेट कंट्रोल’ नाम की साइट पर प्रकाशित हुई है। इसमें भारत से आर्थिक राजधानी मुंबई को खतरे में दिखाया गया है। इस स्टडी में यह बताया गया है कि अगले 200 साल से लेकर 2000 साल के बीच धरती का नक्शा बदल चुका होगा। क्योंकि अगर 1.5 डिग्री सेल्सियस से लेकर 3 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ता है तो दुनिया भर के ग्लेशियर पिघल जाएंगे। हिमालय जैसे पहाड़ों पर मौजूद बर्फ निचले इलाकों में बाढ़ लाएगी। जिसकी वजह से पूरी दुनिया का बड़ा हिस्सा बढ़ते समुद्री जलस्तर में समा जाएगा।