रायपुर। विश्व में आदिवासी समुदाय की परंपराओं और उनकी संस्कृति को समझना इतना भी आसान नहीं है। उनका प्रकृति से जुड़ाव तो अपनी सदियों पुरानी परंपरा को आज भी संजोए रखना कोई मजाक नहीं, पर आदिवासी संस्कृति ही यह खासियत है कि वे इस आधुनिकता की अंधी दौड़ के बावजूद अपनी संस्कृति को जस का तस बनाए हुए हैं।
आदिवासी समुदाय के संदर्भ में कहा जाता है कि परिश्रम से उनका गहरा नाता है। जल, जंगल और जमीन की पूजा सबसे अह्म होती है, वे प्रकृति को ही भगवान की संज्ञा देते हैं, प्रकृति की गोद में जन्म लेते हैं, तो प्रकृति की गोद में ही सोते हैं।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में दूसरी बार ‘राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव’ का आयोजन हो रहा है। साल 2020 में कोरोना संक्रमण की वजह से महोत्सव नहीं हो पाया था। इसकी अवधारणा को छत्तीसगढ़ के मुखिया भूपेश बघेल ने 2019 में अस्तित्व में लाया था। उनकी इस सोच की वजह से ना केवल प्रदेश, बल्कि देश और दुनिया के आदिवासी समुदाय के लोगों को एक बड़ा मंच मिला है।
उनके प्रत्येक नृत्य में देखा जाता है कि वे प्रकृति से जुड़े होते हैं। उनकी वेश—भूषा, उनका रहन—सहन यहां तक उनकी दिनचर्या भी प्रकृति से जुड़ी होती है। ऐसे ही कुछ खास लम्हों को ग्रैंड न्यूज ने अपने कैमरे में कैद किया है।