नई दिल्ली। देश में दिनों—दिन पेट्रोल और डीजल की कीमतों में इजाफा हो रहा है, वजह सड़क पर हर रोज बढ़ने वाली गाड़ियों की तादाद है। खपत के मुकाबले पेट्रोलियम पदार्थों की कमजोर आवक ने वाहन धारकों का बजट बिगाड़ दिया है। ऐसे में इलेक्ट्रिक कारें भारत जैसे बड़ी जनसंख्या वाले देशों के लिए बेहतर विकल्प है। देश में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री शुरु भी हो चुकी है और लोग अपना भी रहे हैं, लेकिन पेट्रोल कारों के मुकाबले इसकी कीमतें काफी ज्यादा है।
भारत में इलेक्ट्रिक कारों की जितनी भी मॉडल अब तक अस्तित्व में आईं हैं, कीमत के मुकाबले उनकी रेंज पर्याप्त नहीं है, जिसकी वजह से आम लोगों का रूझान अब भी पेट्रोल कारों की ओर ज्यादा है। एक पेट्रोल कार की औसत कीमत यदि 8 लाख रुपए है, तो इलेक्ट्रिक सेग्मेंट की कारें 15 लाख से शुरु होती हैं। ऐसे में लोगों का मन बिचक जाता है।
देश में बढ़ते प्रदूषण और बीमारियों को देखते हुए सरकार इलेक्ट्रिक कारों के ज्यादा से ज्यादा उपयोग पर फोकस कर रही है, लेकिन कीमतों को कम करने के उपाय नहीं सूझ रहे हैं। इस बीच केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने भरोसा दिलाया है कि आने वाले दो सालों के भीतर इलेक्ट्रिक कारों की कीमतें पेट्रोल कारों के बराबर होंगी।
यदि ऐसा हो जाता है, निश्चित तौर पर रोजाना उपयोग में लाई जा रही ज्यादातर कारें इलेक्ट्रिक से ही चलती नजर आएंगी। हालांकि इस बीच यह बात भी सामने आई है कि जिस लिथियम बैटरी से इलेक्ट्रिक कारों को दौड़ाया जा सकता है, उस बैटरी का विकल्प खोज निकालना आसान नहीं है, लेकिन वैज्ञानिक और इंजीनियर्स इस काम में जुट चुके हैं।