कार्तिक मास को धर्मशास्त्रों एवं पुराणों में सर्वाधिक पवित्र माना है। वेदों ने इस मास का नाम ऊर्ज रखा था। ऊर्ज का अर्थ भी तेजस्विता से है। वेदोत्तर काल में ऋषियों ने सूक्ष्म निरीक्षण द्वारा नक्षत्राधारित नाम कार्तिक कहा। निरंतर आकाशावलोकन से यह निर्धारित किया कि कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि कृत्तिका नक्षत्र में होती है, अतएव इसे कार्तिक कहा जाना अधिक समीचीन है। जैसा कि कहा भी गया है-यस्मिन् मासे पौर्णमासी येन धिष्णेनसंयुता। तन्नक्षत्राह्वयो मास: पौर्णमास-तदुच्यते।।अर्थात् जिस किसी मास की पूर्णिमा को जो नक्षत्र हो, उस नक्षत्र के नाम से उस मास को जाना जाए। जैसे चित्रा से चैत्र, विशाखा से वैशाख उसी तरह कार्तिक भी कृत्तिका नक्षत्र से बना।
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कार्तिक मास को धर्मशास्त्रों एवं पुराणों में सर्वाधिक पवित्र माना है। वेदों ने इस मास का नाम ऊर्ज रखा था। ऊर्ज का अर्थ भी तेजस्विता से है। वेदोत्तर काल में ऋषियों ने सूक्ष्म निरीक्षण द्वारा नक्षत्राधारित नाम कार्तिक कहा। निरंतर आकाशावलोकन से यह निर्धारित किया कि कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि कृत्तिका नक्षत्र में होती है, अतएव इसे कार्तिक कहा जाना अधिक समीचीन है। जैसा कि कहा भी गया है-यस्मिन् मासे पौर्णमासी येन धिष्णेनसंयुता। तन्नक्षत्राह्वयो मास: पौर्णमास-तदुच्यते।।अर्थात् जिस किसी मास की पूर्णिमा को जो नक्षत्र हो, उस नक्षत्र के नाम से उस मास को जाना जाए। जैसे चित्रा से चैत्र, विशाखा से वैशाख उसी तरह कार्तिक भी कृत्तिका नक्षत्र से बना।कालान्तर में महावैयाकरण महर्षि पाणिनि ने इसी तथ्य को सूत्रबद्ध करते हुए नक्षत्रेणयुक्त: काल: सास्मिन् पौर्णमासी कहा। कार्तिक मास मे भगवान सूर्य जो चराचरजगत् की आत्मा हैं, तुला राशि पर संचरण करते हैं। ज्योतिष के अनुसार, तुला राशि ब्रह्माण्ड की नाभि है। पृथ्वी का मध्य भाग तुला राशि का आरंभ बिंदु है। द्वादशराशियों में जब मध्यभाग समाप्त हो रहा होता है, तब तुला राशि प्रारंभ होती है। तुला का अर्थ तराजू है, जिसका कार्य संतुलन बनाना है। अत: दिग् देश, काल एवं वस्तु के असंतुलन को संतुलित करने के लिए ही ब्रह्मा जी ने इस मास की रचना की है। न केवल मानवों को अपितु चराचर जड़ चेतन सभी को स्वस्थ्य, समृद्धि, शांति एवं सुख प्रदान करने वाला मास यही है। इसी मास की पूर्णिमा से हेमंतऋतु का आगमन होता है।जब ग्रीष्म, वर्षा आदि के द्वारा कभी जल विप्लव, झंझावात तथा अन्यान्य उपद्रवों से पृथ्वी ही नहीं, संपूर्ण प्रकृति असंतुलित हो जाती है, तब कार्तिक मास अशांति को शमित करता हुआ चतुर्दिक सुख, शांति, समृद्धि बिखरेता हुआ संपूर्ण धराधाम को मंगलमय बना देता है। नदी, तालाब, कूप, भूमिस्थ जल स्वच्छ एवं मधुर हो जाते हैं। आकाश में ग्रह-नक्षत्र, तारे भी निर्मल दिखाई देने लगते हैं।कार्तिक पूर्णिमा का महत्व कार्तिक पूर्णिमा को भगवान विष्णु का मत्स्यावतार, देव दीपावली, त्रिपुरासुर का संहार तथा भगवान् कार्तिकेय का दर्शन-पूजन महत्त्वपूर्ण कृत्य है। पद्मपुराण के उत्तरखण्ड में कार्तिक मास का महत्त्व बताते हुए कहा गया है कि संपूर्ण कार्तिक मास में प्रात: सूर्योदय के पूर्व स्नान करने से दैहिक, दैविक, भौतिकताप शांत हो जाते हैं। जो कार्तिक पूर्णिमा के दिन नियमपूर्वक स्नान करते हैं, रात्रि जागरण करते हैं, तुलसी में दीपदान, आंवले का पूजन, आंवला वृक्ष के नीचे भोजन तथा सायंकाल आकाशदीप दान करते हैं, वे देवताओं के लिए भी वंदनीय हो जाते हैं। कार्तिकी पूर्णिमा को पुष्करतीर्थ, द्वारकापुरी, सूकरक्षेत्र में व्रत पूजन विशेष फलदायी कहा गया है।
कालान्तर में महावैयाकरण महर्षि पाणिनि ने इसी तथ्य को सूत्रबद्ध करते हुए नक्षत्रेणयुक्त: काल: सास्मिन् पौर्णमासी कहा। कार्तिक मास मे भगवान सूर्य जो चराचरजगत् की आत्मा हैं, तुला राशि पर संचरण करते हैं। ज्योतिष के अनुसार, तुला राशि ब्रह्माण्ड की नाभि है। पृथ्वी का मध्य भाग तुला राशि का आरंभ बिंदु है। द्वादशराशियों में जब मध्यभाग समाप्त हो रहा होता है, तब तुला राशि प्रारंभ होती है। तुला का अर्थ तराजू है, जिसका कार्य संतुलन बनाना है। अत: दिग् देश, काल एवं वस्तु के असंतुलन को संतुलित करने के लिए ही ब्रह्मा जी ने इस मास की रचना की है। न केवल मानवों को अपितु चराचर जड़ चेतन सभी को स्वस्थ्य, समृद्धि, शांति एवं सुख प्रदान करने वाला मास यही है। इसी मास की पूर्णिमा से हेमंतऋतु का आगमन होता है।
जब ग्रीष्म, वर्षा आदि के द्वारा कभी जल विप्लव, झंझावात तथा अन्यान्य उपद्रवों से पृथ्वी ही नहीं, संपूर्ण प्रकृति असंतुलित हो जाती है, तब कार्तिक मास अशांति को शमित करता हुआ चतुर्दिक सुख, शांति, समृद्धि बिखरेता हुआ संपूर्ण धराधाम को मंगलमय बना देता है। नदी, तालाब, कूप, भूमिस्थ जल स्वच्छ एवं मधुर हो जाते हैं। आकाश में ग्रह-नक्षत्र, तारे भी निर्मल दिखाई देने लगते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा को भगवान विष्णु का मत्स्यावतार, देव दीपावली, त्रिपुरासुर का संहार तथा भगवान् कार्तिकेय का दर्शन-पूजन महत्त्वपूर्ण कृत्य है। पद्मपुराण के उत्तरखण्ड में कार्तिक मास का महत्त्व बताते हुए कहा गया है कि संपूर्ण कार्तिक मास में प्रात: सूर्योदय के पूर्व स्नान करने से दैहिक, दैविक, भौतिकताप शांत हो जाते हैं। जो कार्तिक पूर्णिमा के दिन नियमपूर्वक स्नान करते हैं, रात्रि जागरण करते हैं, तुलसी में दीपदान, आंवले का पूजन, आंवला वृक्ष के नीचे भोजन तथा सायंकाल आकाशदीप दान करते हैं, वे देवताओं के लिए भी वंदनीय हो जाते हैं। कार्तिकी पूर्णिमा को पुष्करतीर्थ, द्वारकापुरी, सूकरक्षेत्र में व्रत पूजन विशेष फलदायी कहा गया है।