नई दिल्ली। जमीन के दस्तावेज में छेड़छाड़ या किसी भी तरह के घपले-घोटाले को रोकने के पुख्ता बंदोबस्त किए जा रहे हैं। भूमि दस्तावेज को डिजिटल करने के साथ ही उन्हें आनलाइन कर दिया गया है। आधार नंबर की तर्ज पर सभी भूस्वामियों को उनकी भूमि का यूनिक आइडी नंबर दिया जाएगा, जो सभी बैंकों व अन्य सरकारी संस्थाओं के लिए भी आनलाइन उपलब्ध होगा। इससे जमीन के एक ही टुकड़े का कई लोगों के नाम बैनामा कर देने या उसी जमीन पर कई बैंकों से लोन लेना आसान नहीं होगा।
यूनिक नंबर की व्यवस्था का समर्थन
पिछले हफ्ते केंद्रीय भूसंसाधन मंत्रालय के राष्ट्रीय सम्मेलन में सभी राज्यों के राजस्व मंत्रियों की उपस्थिति में भूमि दस्तावेज को पूर्णत: पारदर्शी व त्रुटिहीन बनाने पर विचार किया गया। उसमें जमीन के यूनिक नंबर की व्यवस्था का पुरजोर समर्थन किया गया। इसी साल के आखिर तक इस व्यवस्था को सभी राज्यों में लागू कर दिया जाएगा।
नहीं रहेगी विवाद की गुंजाइश
जमीनों के लिए विशिष्ट भूखंड पहचान नंबर (यूएलपीआइएन) जारी होने के बाद किसी तरह के विवाद की गुंजाइश नहीं रहेगी। भूखंड के लिए जारी पहचान नंबर लैटीट्यूड और लांगीट्यूड के आधार पर तैयार किया जाएगा। पहले गांव को यूनिट मानकर सभी तरह की रजिस्ट्री (बैनामा) में उसे बार-बार दोहराया जाता था। पहले चौहद्दी के अनुसार घर का रिकार्ड तैयार किया जाता था जिस पर कई बार विवाद होता रहा है।
13 राज्यों में जारी किए गए यूनिक आइडी नंबर
भूखंड पहचान नंबर से इस तरह की गड़बड़ियों का रास्ता बंद होगा और गांवों में जमीन को लेकर होने वाले मुकदमों में कमी आएगी। डिजिटल इंडिया लैंड रिकार्ड माडर्नाइजेशन प्रोग्राम की शुरुआत वैसे तो 2008 में हुई थी लेकिन उसे रफ्तार 2016 में डिजिटल इंडिया अभियान के बाद मिली। देश के 13 राज्यों के कुल सात लाख भूखंडों के यूनिक आइडी नंबर जारी कर दिए गए हैं। 19 राज्यों में इसका पायलट प्रोजेक्ट सफलतापूर्वक हो चुका है।
डिजिटल टेक्नोलाजी लागू होने के बाद पारदर्शिता
इस संबंध में जागरण से बातचीत में केंद्रीय भूमि संसाधन व ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि भूसंसाधन विभाग में डिजिटल टेक्नोलाजी लागू होने के बाद पारदर्शिता आई है। विशेष पहचान नंबर मिल जाने से अचल संपत्ति और जमीनों को लेकर होने वाली धोखाधड़ी कम होगी और बेनामी लेनदेन पर रोक लगेगी।
हर ब्योरा किया जा सकेगा हासिल
इस विशिष्ट नंबर को झुठलाया अथवा गलत साबित नहीं किया जा सकता है। इसके बगैर जमीन का बैनामा करना या कराना दोनों संभव नहीं होगा। बैंकों के पास इसका पूरा ब्योरा होगा, जिससे उन्हें जमीनों पर दिए जाने वाले लोन में कोई गलत बयानी नहीं कर सकेगा। इस पहचान नंबर से ही जमीनों की खरीद-फरोख्त का हर ब्योरा प्राप्त किया जा सकता है।
कंप्यूटरीकरण का काम लगभग हो चुका है पूरा
भूमि दस्तावेजों के कंप्यूटरीकरण के मामले में 94 फीसद कार्य पूरा कर लिया गया है। देश के कुल 5,220 रजिस्ट्री कार्यालयों में से 4,883 को आनलाइन भी कर दिया गया है। भूमि संसाधन मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, देश के कुल 6.56 गांवों में से 6.08 लाख गांवों के भूमि रिकार्ड को डिजिटल कर वेब पोर्टल पर डाल दिया गया है। यह आंकड़ा आम लोगों के लिए उपलब्ध करा दिया गया है।
नहीं लगाना होगा अनावश्यक चक्कर
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बताया कि पहले अपनी जमीन का ब्योरा प्राप्त करने के लिए राजस्व आफिस के कई चक्कर लगाने पड़ते थे। दस्तावेज की कापी प्राप्त करने के लिए अनावश्यक पैसे भी खर्च करने पड़ते थे। पुराने रिकार्ड निकालना और भी मुश्किल होता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। खासतौर पर शहरों में रहने वाले ऐसे लोगों को काफी सहूलियत होगी, जिनकी जमीन गांव में है। उनके लिए रिकार्ड देखना बड़ी चुनौती थी। आनलाइन रिकार्ड्स को आसानी से प्रिंट भी किया जा सकता है।