कवर्धा। छत्तीसगढ़ में संभवत: पहली बार किसी थाने में राजभाषा छत्तीसगढ़ी में ही एफआईआर दर्ज की गई। किसान के घर से जेवरात व मोबाइल चोरी हुए। किसान को हिन्दी नहीं आती तो उन्होंने छत्तीसगढ़ी में ही घटनाक्रम को बताया। इस पर पुलिस ने भी छत्तीसगढ़ी में ही एफआईआर दर्ज की। यह एफआईआर कबीरधाम जिले के सहसपुर लोहारा थाने में दर्ज की गई।
टीआई अनिल शर्मा ने बताया कि घटना 14 नवंबर की रात की है जब ग्राम पीपरटोला बड़ा निवासी किसान रामकुमार साहू परिवार के साथ घर में सो रहे थे। अज्ञात चोर ने उनके घर से 17 हजार रुपए के जेवरात व मोबाइल की चोरी कर ली। दूसरे दिन रामकुमार साहू ने सहसपुर लोहारा थाने पहुंचकर छत्तीसगढ़ी में रिपोर्ट दर्ज कराई।
वैसे नियम भी है कि प्रार्थी जिस तरह से रिपोर्ट दर्ज कराए वैसे ही लिखी जाती है। इसलिए छत्तीसगढ़ी में ही रिपोर्ट लिखी गई। मामले में पुलिस ने अज्ञात आरोपी के खिलाफ धारा 380, 457 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर विवेचना में लिया है।
किसान ने ऐसे लिखा आवेदन
‘मे ह ग्राम पीपरटोला बड़े मे रहिथव अउ खेती बाड़ी के काम करथव। काली तारीख 14-11-21 के रात कन 8 बजे हमन खाना खा पी के घर मे सो गे रेहेन। मेहा अउ मोर बाई, अउ मोर छोटे लड़का भोलाराम एक कुरिया में सो रहेन। बड़े लड़का नोहरलाल अउ बहु रामकली दोनों झन अलग कुरिया में सो रहिस। रात के बेरी करीबन 12 बजे रामकली उठिस त देखिस कमरा मे रखे गोदरेज के भीतर मे रखे कपड़ा लता भुईया मे पढे रहिस। तब बेटा नोहर मोला अउ मोर बाई ला उठईस।
तब हमन ओखर कुरिया में जाके देखेन अउ आलमारी ल चेक करेन त आलमारी मे रखाय एक जोडी चांदी के चुड़ा 5 तोला कीमती 2000 रुपए, एक सोना के लाकेट कीमती 10000 रुपए नई रहिस। अउ चार्ज मे लगे मोबाइल ओप्पो कंपनी के जेमा सीम नंबर जीओ कंपनी 9301074690 लगे हवय कीमत 5000 रुपए नई रहिस। कोनो चोर ह रात कन घर के परदा ले कुदके घर के कुरिया भितरी आके चोरी कर ले गे हवय। बिहनिहीया ले काम करे बर गे रहेव अभी खेत ले आके रिपोर्ट करे बर आये हव। अपन समान ल देख के चिंह डारहु। रिपोर्ट मैं जइसन बताये हव वैसन लिखे हे, कारवाही करे जाय’।
आसान नहीं छत्तीसगढ़ी लिखना-पढ़ना
छत्तीसगढ़ी को जो लोग सीख चुके हैं, उनके लिए बोलना आसान है लेकिन पढ़ना और लिखना उतना ही कठिन। चूंकि प्रदेश में छत्तीसगढ़ी मुख्य रूप से बोली जाती है। लेकिन राजभाषा होने के बाद भी शासकीय कार्यों में इसका उपयोग नहीं होता, क्योंकि छत्तीसगढ़ी में बात तो कर सकते हैं लेकिन उसे लिखना और पढऩा कठिन है। पढ़ने व लिखने में काफी समय लगता है। उसका अर्थ भी समझना होगा। पूरी तरह से छत्तीसगढ़ी बोली को केवल बुजुर्ग और ग्रामीण इलाके के लोग ही समझ सकते हैं।