Work From Home: सरकार जल्द कंपनियों को उन मौजूदा कर्मचारियों के सैलरी स्ट्रक्चर में बदलाव करने की मंजूरी दे सकती है, जो स्थायी तौर पर वर्क फ्रॉम होम को चुनते हैं. इसमें कर्मचारियों के हाउस रेंट अलाउंस (HRA) में कटौती और इंफ्रास्ट्रक्चर कंपोनेंट के अंदर रिम्बर्समेंट कॉस्ट में बढ़ोतरी शामिल होगा. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने उसे बताया कि श्रम मंत्रालय सर्विस की शर्तों की परिभाषा में बदलाव करने को लेकर स्टैंडिंग ऑर्डर जारी कर सकता है.
रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकारी ने कहा कि सर्विस की शर्तों को दोबारा परिभाषित करने की जरूरत है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि कर्मचारी के कंपनसेशन को घर से काम करने की वजह से होने वाले खर्चों को देखते हुए तैयार किया गया है.
बिजली और वाईफाई से जुड़े खर्च होंगे शामिल
कर्मचारियों को इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े कुछ खर्चों को उठाना पड़ता है, जैसे बिजली और वाईफाई. और इनको कंपनसेशन स्ट्रक्चर में शामिल करने की जरूरत है. नियोक्ता की तरफ से, कर्मचारी का अपने गृह शहर में रहने की वजह से कम खर्च होना, कुछ मामलों में टीयर-2 और टीयर-3 शहरों में रहने से, उसे कंपनसेशन पैकेज में दिखना जरूरी है. रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकारी ने कहा कि सरकार सभी विकल्पों पर विचार कर रही है और जल्द ही इस मामले में कुछ महत्वपूर्ण बात निकलकर आने की उम्मीद है.
रिपोर्ट के मुताबिक, टीमलीज कंप्लायंस और पेरोल आउटसोर्सिंग बिजनेस के हेड और वाइस प्रेजिडेंट प्रशांत सिंह ने कहा कि जो कर्मचारी परमानेंट तौर पर वर्क फ्रॉम होम को चुन रहे हैं, उनके सैलरी स्ट्रक्चर में बदलाव होगा, जिसमें HRA के कंपोनेंट्स और प्रोफेशनल टैक्स में बदलाव किया जा सकता है.
लेबर वेलफेयर फंड पर भी आ सकता है नियम
सिंह ने कहा कि इसके अलावा लेबर वेलफेयर फंड भी दूसरा मामला है, जिसको साफ करने की जरूरत है. इसके साथ ऐसी स्थितियों में राज्य के श्रम कानूनों के असर पर भी सफाई देने की जरूरत है.
BCP एसोसिएट्स के चेयरमैन और वकील और श्रम कानूनों के जानकार बीसी प्रभाकर का मानना है कि इसे लेकर कानून लाने से बचना चाहिए, क्योंकि वर्क फ्रॉम होम भारत में अभी उभरता हुआ कॉन्सेप्ट है. उन्होंने कहा कि बाजार को सैलरी स्ट्रक्चर को तय करने दें, जो भारतीय बाजार में श्रम की डिमांड और सप्लाई पर निर्भर हो.