नई दिल्ली: बिजली सेक्टर के राजस्व का मुख्य माध्यम कही जाने वाली बिजली वितरण कंपनियों (डिस्काम्स) की लगातार खराब होती हालत से पूरे सेक्टर पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। डिस्काम पर बिजली उत्पादक कंपनियों का 1.56 लाख करोड़ का बकाया है जिससे उत्पादक कंपनियों पर लगातार वित्तीय दबाव बढ़ रहा है। हालांकि सरकार अब ऐसा नियम बना रही है कि बिजली उत्पादक कंपनियों का बकाया रखने वाली वितरण कंपनियां किसी और माध्यम से भी बिजली की खरीदारी नहीं कर पाएंगी। हाल ही में इस प्रस्ताव की जानकारी देते हुए बिजली मंत्री आरके सिंह ने कहा था कि बिजली उत्पादक कंपनियों का बकाया नहीं चुकाने वाली डिस्काम पावर एक्सचेंज से भी बिजली नहीं खरीद पाएंगी।
एसोसिएशन आफ पावर प्रोड्यूसर्स कंपनीज (एपीपी) के महानिदेशक अशोक खुराना ने बताया कि डिस्काम्स पूरे सेक्टर के लिए राजस्व का माध्यम हैं। अगर वे ही दिवालिया होने की स्थिति में पहुंच जाएंगी तो पूरे सेक्टर पर इसका असर दिखेगा। हालांकि उपभोक्ताओं के लिए राहत की बात है कि अब बिजली संकट उस स्तर का नहीं होगा जो 10-12 वर्ष पहले होता था, क्योंकि अभी बिजली की आपूर्ति मांग से अधिक है। खुराना कहते हैं कि पिछले कई वर्षो से डिस्काम्स को तात्कालिक उपायों के माध्यम से चलाया जा रहा है। लेकिन इनकी दीर्घकालिक स्थिति ठीक करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है। डिस्काम्स की वित्तीय स्थिति को ठीक करने के लिए सरकार की तरफ से कई बार कोशिश की गई और कई वित्तीय योजनाएं भी लाई गई। लेकिन राज्यों में बिजली सब्सिडी के चलन और एग्रीगेट ट्रांसमिशन एंड कामर्शियल (एटीएंडसी) लास यानी बिजली घर-घर तक पहुंचाने के दौरान तारों से चोरी और वाणिज्यिक नुकसान में कमी नहीं होने की वजह से वितरण कंपनियों की वित्तीय हालत जस की तस बनी हुई है।
इलेक्टि्रसिटी कानून संशोधन बिल
बिजली मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2019-20 के अंत तक डिस्काम्स का औसतन एटीएंडसी लास 20-60 प्रतिशत था। वहीं, बिजली आपूर्ति की लागत और और राजस्व वसूली में 60 पैसे प्रति यूनिट का अंतर था। सरकार वितरण कंपनियों की हालत ठीक करने के लिए बिजली कानून संशोधन बिल में सब्सिडी प्रविधान को भी बदलना चाह रही थी, ताकि सरकारों द्वारा दी जा रही छूट का भार इन कंपनियों पर नहीं पड़े। लेकिन अब फिर से सब्सिडी वाले नियमों को पहले की तरह ही रखने का फैसला किया गया है। उपभोक्ताओं को चौबीसों घंटे सस्ती व गुणवत्तापूर्ण बिजली उपलब्ध कराने के लिए सरकार पिछले चार वर्षो से बिजली कानून में संशोधन की तैयारी कर रही है, लेकिन इसमें कामयाबी नहीं मिल पा रही है। सेक्टर के एक अन्य विशेषज्ञ ने बताया कि वर्तमान स्थिति में सुधार के लिए डिस्काम्स को बिजली की दरों में बढ़ोतरी करनी होगी। उन्होंने बताया कि वर्ष 2012-13 के दौरान कई राज्यों की वितरण कंपनियों के पास बिजली खरीदने के लिए पूंजी नहीं होती थी। वे बैंकों से शार्ट टर्म लोन लेती थीं। अब बिजली मंत्रालय ने सभी बैंकों को सचेत होकर लोन देने के लिए कह दिया है।