ग्रैंड न्यूज़ डेस्क/ बासकी ठाकुर। बस्तर के मीठे फलो जैसे महुआ ,साल,कटहल, आम ,इत्यादि के पेड़ में पाई जाने वाली लाल चींटी (red ant ) जिसे स्थानीय बोलचाल में ‘ चापड़ा’ कहते हैं। जो बस्तर के लोग पेड़ो से इकट्ठा कर इसकी चटनी (sauce) बनाते हैं। बस्तर के लगभग सभी आदिवासी इलाको में आसानी से लाल चीटियाँ मिल जाती है। वहीँ यहाँ के आदिवासी लोग इस लाल चींटी का चटनी (red ant sauce) बनाकर औषधि के रूप में प्रयोग करते है। आदिवासियों का कहना है कि चापड़ा (चींटी ) को खाने की सीख उन्हें अपनी विरासत में मिली है। यदि किसी को बुखार होता हैं तो उस व्यक्ति को उस स्थान पर बिठाया जात है जहाँ लाल चीटियां ( चापड़ा ) होती है। वहीँ लोगो का कहना है कि चीटियों के काटने से पीड़ित व्यक्ति का बुखार उतर उतर जाता है।
यहाँ ऐसे बनाई जाती है चींटी की दो रेसिपी (Two types of ant recipe)
चटनी
बस्तर में पाई जाने वाली लाल चीटियों से दो प्रकार का रेसिपी (Two types of ant recipe) बनाई जाती हैं, पहला जो आमतौर से इसका चटनी बनाई जाती हैं। इसे बनाने के लिए पहले लाल चींटी ( चापड़ा ) को पेड़ के गुड़ा झाड़कर पात्र या चादर में तेज धूप में छोड़ दिया जाता है। जिससे यह चींटिया धूप में बेहोश होकर मर जाते है। और फिर इसे साफ करके इसमें टमाटर को अच्छे से आग में भूजने के बाद इसे सिलपट्टा से पिसा जाता है। फिर नमक, हरी मिर्च, धनिया अच्छी तरह से मिलाई जाती है। और दिर इसमें चापड़ा को अच्छे से मिक्स किया जाता है। जिसके बाद तैयार हो जाता है चटपटा चापड़ा की चटनी।
कड़ी (आमट )
कड़ी को बस्तरिया बोलचाल में ( आमट ) कहते हैं। इस विधि को बंनाने के लिए चावल को दस से पन्द्रह मिनट तक पानी में भिगोकर रखा जाता है, और भिगोये चावल को बारीकी से सिलपट्टा में पीसने ( grind in silpatta) के बाद उसमे ,अद्रक ,लहसुन, हरीमिर्च को भी अच्छे पिसा जाता है। फिर उसमें चापड़ा को डालकर फिरसे पिसा जाता है। फिर सभी चीजों को इकठ्ठा कर अच्छे से मिलाकर चूल्हे में गर्म पानी कर 20 मिनट तक पकने के लिए छोड़ दिया जाता है। और तैयार हो जाने के बाद उसे सुप के रूप में गर्मा – गर्म पिया जाता है। जिससे ज्वार एवं सर्दी, खाँसी से छुटकारा (relief from Tides, cold and cough) मिल जाता हैं।
चींटियों से बनाई गई औषधि
बस्तर में लाल चींटी (चापड़ा ) के उपयोग से आदिवासियों को कई बिमारियों से बचाने में मदद करती है, आदिवासियों का मानना है कि, इससे कई बीमारियों में आराम मिलता है और बिमारियों से लड़ने की रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है, इन आदिवासियों की मानें तो चापड़ा चटनी के सेवन से सर्दी खाँसी ,मलेरिया और डेंगू ,पीलिया ,जैसी बीमारियां भी ठीक हो जाती है। और आदिवासियों के लिए ये प्रोटीन का सस्ता और आसानी से उपलब्ध होने वाला साधन भी है।
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