गरियाबंद। जिंदगी भी कमबख्त क्या चीज है। इसे जीने के लिए इंसान को ना जाने क्या-क्या पापड़ बेलने पड़ते है। अमीर हो या फिर गरीब,राजा हो या रंक सभी की जिंदगी में खट्टे मीठे अनुभव जरूर होते है।
आज हम आपको अशोक और बरनु नाम के दो ऐसे परिवारों से रूबरू कराने जा रहे है जिनकी जिंदगी ही जुगाड़ पर टिकी है। ये परिवार मेले में करतब दिखाकर और छोटे बच्चों को रस्सी पर चलाकर रोजी रोटी का जुगाड़ करते है। फिर एक मेले से दूसरे मेले में जाने के लिए जुगाड़ से बनी गाड़ी का इस्तेमाल करते है। मतलब पूरी जिंदगी ही जुगाड़ पर चल रही है।
जांजगीर चाम्पा के डोगाकहरौद के रहने वाले अशोक और बरनु रिस्ते में चाचा-भतीजा है। राजिम मेले से गरियाबंद मड़ई के लिए निकले दोनों परिवारों ने अपने जीवन की दुखभरी कहानी सुनाई। उन्होंने बताया कि यह उनका पुष्तैनी काम है। पहले दादा जी और पिता जी करते थे अब अपने बच्चों के साथ वे लोग कर रहे है।
बातचीत में उन्होंने बताया कि वे जीने के लिए संघर्ष कर रहे है। किसी से भीख नही मांगते। अपना हुनर दिखाते है। लोगो को यदि पसंद आता है तो दो पैसा दे देते है। लेकिन महंगाई के जमाने मे अब इस खेल से घर चलाना उनके लिए मुश्किल हो गया है।
छकड़े पर चलता है पूरा परिवार
अशोक और बरनु किसी भी मेले में एक साथ जाते है। दोनों का परिवार मोटरसाइकिल के बने छकड़े पर सफर करता है। उसी में ही उनकी गृहस्थी का पूरा सामान भी रहता है। अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए उन्होंने बताया कि कई बार तो बड़े लोग उन्होंने नियम कानून का डर दिखाकर परेशान भी करते है।
बच्चों की पढ़ाई प्रभावित
जुगाड़ की जिंदगी चलाने में दोनों के बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। अशोक के 5 बच्चे है। दो की शादी हो गयी। एक बेटा एक बेटी और एक नाती उसके साथ चलते है। 16 साल का बेटा जितेंद्र सबसे ज्यादा पढा लिखा है। वह 9वी पास है। बरनु के दो बच्चे है। 08 साल का बेटा अनिल ओर 10 साल की बेटी दुर्गेश। दुर्गेश 5वी की पढ़ाई कर रही है वही अनिल चौथी क्लास में पढ़ाई कर रहा है। लेकिन जिंदगी के जुगाड़ में उनके लिए डेली स्कूल जाना संभव नही है।
सरकार से गुहार
परिवार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही अशोक की पत्नी मोतीबाई और बरनु की पत्नी गणेशीया बाई ने बताया कि वे खेतिहर मजदूर है। 5 महीने घर पर रहते है और बाकी समय मेलो में घूमकर रोजी रोटी का जुगाड़ करते है। उन्होंने बताया कि सरकार से 35 किलो चावल मिलता है जिससे उन्हें जिंदगी की गाड़ी चलाने में काफी राहत मिल जाती है। उन्होंने कहा कि राशन की तरह यदि सरकार उन्हें उनके घर के आसपास रोजगार भी उपलब्ध करवा दे तो उन्हें ऐसे दर-दर भटकने की जरूरत ही नही पड़ेगी। उनकी जिंदगी का जुगाड़ भी बेहतर बन जायेगा।