होली का त्योहार पूरे देश में शुक्रवार को मनाया जाएगा, लेकिन उससे पहले बृहस्पतिवार शाम से होलिका दहन किया जा रहा है। देशभर में होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त शुरू हो चुका है। इस बार होलिका दहन का शुभ मुहूर्त दो चरणों में होने जा रहा है। पहला चरण बृहस्पतिवार शाम 6.30 से शुरू हुआ है चो 8 बजे तक होगा। वहीं, शुभ मुहूर्त का दूसरा चरण रात 9.08 से शुरू होगा और फिर यह 10.08 तक होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त बताया गया है। दिल्ली में चांदनी चौक स्थित श्रीसत्यनारायण मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित रमेश चंद शर्मा ने बताया कि वैसे तो बृहस्पतिवार को दोपहर 1.31 मिनट से भद्रकाल शुरू हुआ जो रात्रि 1.13 तक रहेगा, जिसमें शुभ कार्य नहीं होते हैं। इस तरह की असमंजस वाली स्थिति में धर्म सिंधु के अनुसार तब मुखकाल की जगह पूछकाल के हिसाब से गणना की जाती है। उसके अनुसार बृहस्पतिवार को शाम 6.30 से 8 बजे तक तथा रात्रि 9.08 से 10.08 होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त है। उन्होंने कहा कि जब होलिका जल जाती है तो उसके अगले दिन ही होली पड़ती है। ऐसे में होली शुक्रवार को ही मनाई जाएगी।
ऐसे करें पूजा
हिंदुओं के सबसे बड़े त्योहार होली मनाने से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है। यह पूजा पूरे श्रद्धा भाव से की जाती है, इसलिए पूजा शुद्ध मन से की जाए और इससे पहले स्नान करना श्रेयस्कर रहता है। स्नान के बाद होलिका की पूजा वाले स्थान पर उत्तर या पूरब दिशा की ओर मुंह करके बैठना चाहिए। पूजा से पहले गाय के गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमा बनानी चाहिए। वहीं, पूजा की सामग्री के तौर पर रोली, फूल, फूलों की माला, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे के साथ गुलाल और नारियल और 5 से 7 तरह के अनाज और एक लोटे में पानी जरूर होना चाहिए। पूजा के दौरान मिठाइयां और फल जरूर चढ़ाना चाहिए। पूजा करने के क्रम में भगवान नरसिंह की भी विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। पूजा के अंतिम चरण में होलिका के चारों ओर सात बार परिक्रमा आवश्यक माना जाता है।
हाइलाइ्टस
- देशभर में हर साल फागुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के अगले दिन होली मनाई जाती है। इस लिहाज से बृहस्पतिवार को होलिका दहन किया जा रहा है और शुक्रवार को होली मनाई जाएगी।
- ऐसी मान्यता है कि होलिका दहन करने से आसपास की नकारात्मक शक्तियां नष्ट हो जाती हैं और जीवन में खुशहाली आती है।
- धार्मिक मान्यता है होलिका दहन के बिना होली का त्योहार नहीं मनाया जा सकता है।
- ऐसी मान्यता है कि होलिका दहन में सभी लोग अपनी नकारात्मकता की आहुति देकर स्वयं के अंदर सकारात्मक शक्ति का संचार करते हैं।
- होली त्योहार से पहले होलिका दहन का विशेष महत्व है। माह भर पहले से ही सार्वजनिक स्थानों पर होलिका रखी जाने लगी थी। लोग लकड़ियों के साथ ही गोकाष्ठ लाकर रख रहे थे।
- होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त बेहद जरूरी है।
यहां पर यह बताना जरूरी है कि होलिका दहन का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक होता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु के अनन्य भक्त प्रहलाद को उसके पिता हिरण्यकश्यप ने होलिका की गोद में बैठाकर जिंदा जलाने की कोशिश की थी। होलिका दरअसल, प्रहलाद की बुआ थी। बुआ होलिका अपने भतीजे प्रह्लाल दो बैठी तो लेकिन इस दौरान होलिका खुद ही जल कर खत्म हो गई थी। इसके बाद से होलिका दहन के अगले दिन होली खेलने की परंपरा मानी जाता है।
होलिका दहन पर पूजा विधि
होलिका दहन के दौरान पूजा भी करनी चाहिए। इतना ही नहीं, पूजा करने से पूर्व होलिका दहन स्थल से पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। पूजा सामग्री के रूप में तांबे के एक लोटे में जल के साथ रोली, चावल, गंध, फूल, कच्चा सूत, बताशे-गुड़, साबुत हल्दी, गुलाल, नारियल और माला जरूर हो। इसके बाद होलिका में गोबर से बने खिलौने व माला भी रखें। पूजा के दौरान मनभटकाव नहीं होना चाहिए।
वहीं, होली खेलने के दौरान लोगों को केमिकल रंगों से परहेज करने की सलाह दी गई है। लोगों से अपील भी की गई है कि वे होली को सादगी के साथ मनाएं, क्योंकि कैमिकल युक्त रंगों से त्वचा को नुकसान होता है और कभी-कभार लंबे समय तक परेशानी रहती है।