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गर्मी में खुद के साथ बेजुबान पशु-पक्षियों का भी रखें ध्यान, इस शिक्षक ने किया सोशल मीडिया में मार्मिक पोस्ट, जमकर हो रही है सराहना

Vijay Sinha
Last updated: 2022/04/01 at 1:31 PM
Vijay Sinha
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7 Min Read
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Contents
गिरीश शर्मा कहते हैहर साल हो जाती हैं कई मौतेंनहीं हैं कोई प्राकृतिक स्रोत
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गरियाबंद- गर्मी में पानी को अमृत के समान माना जाता है, मनुष्य को प्यास लगती है तो वह कहीं भी मांग कर पी लेता है, लेकिन मूक पशु पक्षियों को प्यास में तड़पना पड़ता है, हालांकि जब वे प्यासे होते हैं तो घरों के सामने दरवाजे पर आकर खड़े हो जाते हैं। कुछ लोग पानी पिला देते हैं तो कुछ लोग भगा भी देते है। इस गर्मी में पशु पक्षियों की प्यास बुझाने के लिए लोगों को प्रयास करना चाहिए

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गर्मियों में कई परिंदों व पशुओं की मौत पानी की कमी के कारण हो जाती है। लोगों का थोड़ा सा प्रयास घरों के आस पास उड़ने वाले परिंदों की प्यास बुझाकर उनकी जिंदगी बचा सकता है। सुबह आंखें खुलने के साथ ही घरों के आस-पास गौरेया, मैना व अन्य पक्षियों की चहक सभी के मन को मोह लेती है। घरों के बाहर फुदकती गौरेया बच्चों सहित बड़ों को भी अपनी ओर आकर्षित करती है। गर्मियों में घरों के आसपास इनकी चहचहाहट बनी रहे, इसके लिए जरूरी है कि लोग पक्षियों से प्रेम करें और उनका विशेष ख्याल रखें। जिले में गर्मी बढऩे लगी है। यहां का तापमान 42 डिग्री सेल्सियस पार हो गया है। आने वाले सप्ताह और जेठ में और अधिक गर्मी पडऩे की संभावना है। गर्मी में मनुष्य के साथ-साथ सभी प्राणियों को पानी की आवश्यकता होती है। मनुष्य तो पानी का संग्रहण कर रख लेता है, लेकिन परिंदे व पशुओं को तपती गर्मी में यहां-वहां पानी के लिए भटकना पड़ता है। पानी न मिले तो पक्षी बेहोश होकर गिर पड़ते हैं।

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गिरीश शर्मा कहते है

भीषण गर्मी में बेजुबान पशु पक्षियों के लिए घर से बाहर वह छतों पर मिट्टी के बर्तनों एवं पशुओं के लिए नाद में पानी भरकर छोड़ना गुजरे जमाने की बात हो गई अब जंगली जानवरों वह मवेशियों वह पक्षियों की प्यास बुझाने वाला कोई नजर नहीं आ रहा अब तो भागमभाग जिंदगी में किसे फुर्सत है कि बेजुबानों की प्यास बुझाई इस तपस भरी गर्मी में घर के बाहर छत पर वह बगीचे में अब पशु पक्षी के लिए पानी रखने का प्रथा विलुप्त हो गया है।

जानवरों के प्रति खत्म हो रहा है मानव का लगाव गंभीर चिंता का विषय है आइये बात करते है कुछ वर्ष पूर्व की जब नवरात्र खत्म होते ही ग्रामीण मिट्टी के बर्तनो में पेड़ो के नीचे , घर के बाहर और छत पर पानी भरकर रख देते थे । इसी तरह बारी बगीचो में भी लोग पशुओं के नाद में लबालब पानी भर देते थे ताकि आवारा जानवर एवम घडरोज उस पानी से प्यास बुझाते थे लेकिन अब ये प्रथा खत्म होते नज़र आ रही है ग्रामीण अंचलों में पशुधन वाले ग्रामीणों को अपने पशुओं की चिंता सता रही है। आज मैंने घर और बगीचे और छत सभी जगह पक्षियों और बेज़ुबान जानवरो की प्यास बुझाने लिए व्यवस्था कि है और शोशल मीडिया पर इसे साझा ज्यदा इस मुहिम जुड़ पाए किसी जानवर या पक्षी की मौत प्यास की वजह से ना हो मै आप सभी विनम्र निवेदन करना हूँ बेज़ुबान जानवरो ख़्याल रखिए ये आपको कुछ दे तो नहि पाएँगे पर हाँ आपके मन को संतुष्टि और शुकुन ज़रूर मिलेगा


आप सभी इन बातों का रखें ख्याल

– घर के बाहर या बालकनी में छांव वाली जगह पर बर्तन में पानी भरकर रखें।

– पानी गर्म हो जाने पर समय-समय पर उसे बदलते रहें।

–
– पानी और दाना आदि रख रहे हैं तो नियमित तौर पर इसे बरकरार रखें।

घरों के बाहर पानी के बर्तन भरकर टांगें, या बड़ा बर्तन अथवा कोटना पानी भरकर रखें, जिससे मवेशी व परिंदे पानी देखकर आकर्षित होते हैं।

छत में भी पानी की व्यवस्था करें, छायादार जगह बनाकर वहां पानी के बर्तन भर कर रखें।

पक्षियों के लिए चना, चावल, ज्वार, गेंहूं आदि जो भी घर में उपलब्ध हो उस चारे की व्यवस्था छतों में करें।

कम पानी वाले जल स्रोतों को गंदा न करें, इससे पशु-पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था हो सकती है।

हर साल हो जाती हैं कई मौतें

आपको अगर ऐसा लग रहा है कि पक्षी-जानवर तो अपने लिए पानी का इंतजाम कर ही लेते होंगे, असल में ऐसा है नहीं! एक समय था जब वे सच में अपने लिए पानी की व्यवस्था कर लेते थे, क्योंकि तब उनके लिए पानी के प्राकृतिक स्रोत जैसे नदी, तालाब आदि थे। जो कि अब या तो नष्ट हो चुके सूखते जा रहे हैं या गंदे हो गए हैं। इस बारे में गौरेया संरक्षण अभियान में जुटे गौरव बाजपेयी बताते हैं, ‘गर्मी का असर पशुओं के साथ-साथ पक्षियों पर होता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि पक्षी इस मौसम में ज्यादा प्रभावित होते हैं। खाना और पानी की खोज में लगातार धूप में उड़ते रहने से वे कमजोर हो जाते हैं। इसके अलावा पेड़ों की कटाई-छंटाई के कारण कहीं रुककर आराम करने के लिए इनके पास कोई आशियाना भी नहीं होता है। हर साल पक्षियों के गिरने या घायल होने के ढेरों मामले सामने आते हैं। इस सबके चलते हर साल गर्मियों के मौसम में पक्षियों और जानवरों की मौत हो जाती है।

नहीं हैं कोई प्राकृतिक स्रोत

एक दौर था जब शहर में पानी के तमाम प्राकृतिक स्रोत मौजूद थे। मगर आज कई ऐसे इलाके हैं जहां पानी के प्राकृतिक स्रोत न के बराबर हैं। जो बचे भी हैं उनका पानी पीने योग्य नहीं है। ऐसे में आप तो अपने घर में साफ पानी की व्यवस्था कर लेते हैं मगर जानवरों और पक्षियों को इन्हीं गंदे पानी के स्रोतों से प्यास बुझानी पड़ती है जिससे इनको फायदा कम होता है बल्कि ये बीमार भी हो जाते हैं।

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