चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि को गणगौर पर्व मनाया जाता है। यह त्योहार मुख्य रूप से राजस्थान(rajasthan ) में मनाया जाता है। इसके अलावा मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात(gujarat ) आदि में भी महिलाएं इस पर्व को श्रद्धा के साथ मनाती हैं। ऐसे में यह पर्व होली के दूसरे दिन से शुरू हो जाता है। और अगले सोलह दिनों तक मनाया जाता है। यह चैत्र शुक्ल(chaitra shukl ) की तृतीया को संपन्न होता है। इस दिन विवाहित महिलाएं(maaried women ) अपने पति की लंबी उम्र और सौभाग्य के लिए व्रत रखती हैं। वहीं अविवाहित महिलाएं मनचाहा वर पाने के लिए यह व्रत रखती हैं।
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शुभ मुहूर्त(shubh muhrat )
हिन्दू पंचांग(hindu panchnag ) के अनुसार तृतीया तिथि 3 अप्रैल, रविवार को दोपहर 12:38 बजे से शुरू हो गई थी, जो 4 अप्रैल, सोमवार को दोपहर 01:54 बजे तक रहेगी।
क्यों रखा जाता है व्रत (vrat )
इस व्रत में शिव परिवार भगवान शिव(god shiv ), माता पार्वती(maa parvati ), भगवान कार्तिकेय, भगवान गणेश व उनकी पुत्री देवसेना की गणगौर के रूप में पूजा की जाती है। दरअसल इसके अर्थ में ही शिवपरिवार का नाम जुड़ा है। गणगौर में गण भगवान भोलेनाथ और गौर शब्द माता पार्वती के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह त्योहार आस्था और प्रेम का प्रतीक है। यह व्रत कुंवारी कन्याएं(unmarried girls ) मन चाहा वर प्राप्त करने के लिए भी रखती हैं। मान्यता है कि गणगौर तीज के एक दिन पूर्व द्वितीया तिथि को नवविवाहित महिलाएं अपने द्वारा पूजी गई गणगौरों को किसी नदी तालाब में पानी पिलाती है और दूसरे दिन शाम के समय विसर्जित कर देते हैं। यह व्रत होली के बाद यह पर्व 17 दिनों तक चलता है। आज के दिन व्रत रखकर इसका समापन होता है।