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BIG NEWS : छत्तीसगढ़ में राजस्थान की कोयला खदान को मिली मंजूरी, 841 हेक्टेयर जंगल कटेगा, वन विभाग ने जारी किया आदेश

Mahak Qureshi
Last updated: 2022/04/13 at 7:18 AM
Mahak Qureshi
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6 Min Read
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वन विभाग forest department  ने सरगुजा surguja district  और सूरजपुर surajpur  जिलों में पड़ने वाले परसा ओपन कास्ट कोयला खदान coal mines  के लिए वन भूमि के उपयोग की मंजूरी दे दी है। यह परियोजना 841.538 हेक्टेयर वन भूमि पर शुरू होगी। इसकी वजह से इस पूरे क्षेत्र में पेड़ों की कटाई होगी। वहीं सैकड़ों ग्रामीणों को अपना गांव-घर छोड़कर जाना पड़ेगा। स्थानीय ग्रामीण इस परियोजना का लंबे समय से विरोध कर रहे हैं।

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छत्तीसगढ़ वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अवर सचिव केपी राजपूत ने पिछले सप्ताह प्रधान मुख्य वन संरक्षक को मंजूरी का विवरण भेजा। इसके मुताबिक सरगुजा एवं सूरजपुर वन मंडल की 841.538 हेक्टेयर वन भूमि को पांच लाख मीट्रिक टन प्रति वर्ष की क्षमता वाली परसा ओपनकास्ट कोयला खनन परियोजना के लिए राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को देने को मंजूरी दे दी गई है। हालांकि वन विभाग ने इस मंजूरी के साथ 15 शर्तें भी जोड़ी हैं।

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इसके मुताबिक डायवर्ट किए गए क्षेत्र, प्रतिपूरक वनीकरण के तहत क्षेत्र, मिट्टी और नमी संरक्षण कार्यों, वन्यजीवों के संबंध में ई-ग्रीन वॉच पोर्टल पर डिजिटल मैप फाइल अपलोड करनी होगी। वन भूमि की कानूनी स्थिति नहीं बदलेगी। जंगल को हुए नुकसान के एवज में तीन साल के भीतर नए क्षेत्र में एक हजार प्रति हेक्टेयर की दर से नए पौधे लगाने होंगे। नोडल एजेंसी और खदान संचालक को भारतीय वन्य जीव संस्था, देहरादून की बायो डायवर्सिटी रिपोर्ट में दिए सुझावों पर अमल करना होगा। सेफ्टी जोन की सीमा निर्धारित करनी होगी। खनन की वजह से बाहर का कोई क्षेत्र प्रभावित हुआ तो उसको रिस्टोर करना होगा।

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एक लाख 70 हजार हेक्टेयर जंगल बर्बाद होगा
परियोजना से प्रभावित हो रहे हसदेव अरण्य को बचाने के लिए वर्षों से संघर्ष कर रहे छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला का कहना है, सरकार ने परसा कोयला खदान के साथ परसा ईस्ट केंते बासन एक्सटेंशन खदान के दूसरे चरण को भी मंजूरी दे दी है। इसकी वजह से एक लाख 70 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में समृद्ध जैव विविधता वाला जंगल बर्बाद हो जाएगा। इसका असर नदियों पर भी पड़ेगा। सैकड़ों लोगों को अपने गांव से उजड़ना पड़ेगा। आलोक शुक्ला कहते हैं, इसकी भरपाई कभी भी नहीं हो पाएगी।

इन्हीं खदानों के लिए रायपुर आए थे सीएम गहलोत
राजस्थान इस खदान को अंतिम मंजूरी दिलाने के लिए काफी समय से दबाव बना रहा था। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पिछले महीने इसी काम के लिए रायपुर पहुंचे थे। उन्होंने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ चर्चा की। राजस्थान का तर्क था, खदान संचालन नहीं होने से उनके यहां कोयला संकट खड़ा हो गया है। बिजली घरों के संचालन के लिए पर्याप्त कोयला नहीं मिल पा रहा है। बाद में सरकार ने उनकी बात मान ली और परसा कोयला खदान के लिए वन भूमि देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। केंद्र सरकार ने 2019 में ही दे दी थी विवादित मंजूरी

केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जुलाई 2019 में ही परसा कोयला खदान को पर्यावरणीय मंजूरी प्रदान की थी। हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति सहित स्थानीय ग्रामीणों ने आरोप लगाया था, जिस प्रस्ताव के आधार पर यह स्वीकृति दी गई है वह ग्राम सभा फर्जी थी। उनकी ग्राम सभा में इस परियोजना का विरोध हुआ था। सरकार ने बात नहीं सुनी और फरवरी 2020 में केंद्रीय वन मंत्रालय ने परसा कोयला खदान के लिए स्टेज- 1 वन मंजूरी जारी कर दी। अक्टूबर 2021 में इस परियोजना के लिए स्टेज- 2 वन मंजूरी जारी की गई थी। 6 अप्रैल 2022 को छत्तीसगढ़ सरकार ने भी वन भूमि देने की अंतिम मंजूरी जारी कर दी।

अब भी जारी है ग्रामीणों का विरोध
परसा कोयला खदान से प्रभावित फतेहपुर, साल्ही और हरिहरपुर, घाटबर्रा जैसे गांवों के लोग अब भी विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका कहना है, सरकार पर्यावरणीय चिंताओं के साथ उनके संविधानिक अधिकार का अतिक्रमण कर रही है। उन लोगों ने पिछले साल 300 किलोमीटर की पदयात्रा कर राज्यपाल और मुख्यमंत्री को अपनी तकलीफ बताई थी। फर्जी ग्राम सभा की शिकायत की थी। उसके बाद भी सरकार ने उसकी जांच नहीं कराई। अब उनके हितों की अनदेखी कर कोयला खदान को मंजूरी दे दी गई है। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने कहा है, वह सरकार के इस फैसले का विरोध करती है। आंदोलन ग्रामीणों के संघर्ष में उनके साथ खड़ा रहेगा।

आंदोलन ने पांच मांग भी रखी

  • दोनों खदानों की अंतिम मंजूरी को तुरंत वापस लिया जाए।
  • फर्जी ग्राम सभा की शिकायत की जांच कर संबंधित अधिकारियों पर कार्यवाही की जाए।
  • लोकतांत्रित आंदोलन और ग्राम सभा के अधिकारों का सम्मान किया जाए।
  • दबावपूर्वक खनन शुरू करने की कंपनी की कोशिशों का संज्ञान लेकर रोक लगाई जाए।
  • संपूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र को संरक्षित किया जाए।
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