अपने हाथों से बुढ़ी माँ को खाना खिलाने के बाद रोज काम पर जाती है संगीता ,तब जाकर दो वक्त के खाने का हो पाता है जुगाड़ ।
गरियाबंद कहते हैं बेटा बुढ़ापे का सहारा होता है क्योंकि बेटी तो ब्याह कर पराये घर चली जाती है। लेकिन नगर में एक बेटी ऐसी भी है । जो लगभग 75 साल की बीमार और लाचार माँ का सहारा बनी हुई है । एक के बाद एक करके पति और तीन बेटो की मौत ने बुधयारिन बाई को खामोश कर दिया ।नगर के रावनभाठा में रहने वाली 32 वर्षीय संगीता ने जब ससुराल में रोज रोज के विवादो के बारे में अपनी माँ को बताया तो उन्होंने उसे 2011में वापस अपने पास बुला लिया इस दौरान संगीता के तीनों भाई और पिता भी साथ रहते थे । लेकिन 5 साल में ही तीनो भाई और पिता की मौत ने उसे और उसकी माँ को अंदर तक झकझोर के रख दिया । बुधयारिन बाई को क्या पता था कि जिस बेटी को उसने साहारा देने के लिए अपने पास बुलाया था वही बेटी आखिर में उसका साहारा बनेगी ।
2016 में बड़े बेटे 2019 में छोटे बेटे और पति ने और 2021 में मंझले बेटे के चल बसने के बाद घर की पूरी जिम्मेदारी सुनीता के कंधों पर आ गई । घर के आर्थिक हालात अच्छे नही होने के चलते उनकी 32 वर्षीय बेटी संगीता देवांगन ने बेटे की जगह लेते हुए अपनी माँ और भतीजी की परवरिश की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली है । घर की आर्थिक हालात ठीक नही होने के चलते संगीता कुछ घरों में काम करके महीने का 3 से 4 हजार रुपये कमा लेती है जिससे वह अपने घर का खर्च जैसे तैसे चला लेती है । बुधयारिनधयारिन बाई की उम्र और उनके मानसिक और शारीरिक स्थित ठीक नही होने के चलते वह अपना कोई काम नही कर पाती है । न ही खाना खा पाती है और वह इन सब के लिए पूरी तरह से अपनी बेटी पर ही आश्रित रहती है ।संगीता कहती है कि वह अपनी माँ की परवरिश के लिए दूसरों का सहारा नही लेना चाहती इसलिये वह खुद ही कमा कर घर खर्च ,माँ की दवाइयों और अपनी भतीजी की पढ़ाई का खर्च उठती है । 32 वर्षीय बेटी संगीता देवांगन ने बेटे की जगह लेते हुए अपनी माँ और भतीजी की परवरिश की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली है । घर की आर्थिक हालात ठीक नही होने के चलते संगीता कुछ घरों में काम करके महीने का 3 से 4 हजार रुपये कमा लेती है जिससे वह अपने घर का खर्च जैसे तैसे चला लेती है । बुधयारिनधयारिन बाई की उम्र और उनके मानसिक और शारीरिक स्थित ठीक नही होने के चलते वह अपना कोई काम नही कर पाती है । न ही खाना खा पाती है और वह इन सब के लिए पूरी तरह से अपनी बेटी पर ही आश्रित रहती है ।संगीता कहती है कि वह अपनी माँ की परवरिश के लिए दूसरों का सहारा नही लेना चाहती इसलिये वह खुद ही कमा कर घर खर्च ,माँ की दवाइयों और अपनी भतीजी की पढ़ाई का खर्च उठती है । दूसरी शादी करने के सवाल पर कहती है कि अभी उनके जीवन की पहली प्राथमिकता उनकी माँ है उसके बाद वह अपने भविष्य के बारे में सोचेंगी । हालांकि वो जो कर रही हैं, वो कर पाना आसान नहीं है, पर हौसले के दम इसे मुमकिन कर दिखाया । संगीता इतनी कम उम्र में अपनी बूढ़ी मां को सहारा देकर बेटी के साथ-साथ बेटे होने का भी फर्ज निभा रही , साथ ही इस समाज को एक संदेश भी दे रही है कि बेटियां बेटों से कम नहीं हैं।