वैश्विक स्तर पर सेमीकंडक्टर या माइक्रोचिप के उत्पादन में आई कमी से; सारे विश्व के विनिर्माण उद्योग के सामने एक बड़ी समस्या खड़ी कर दी है! उत्पादन के अन्य साधनों की उपलब्धता के बावजूद माइक्रो चिप के अभाव में मांग के अनुरूप उत्पादन में जो कमी हो रही है उसे ही इस समस्या के रूप में देखा जा रहा है! वैश्विक स्तर पर मांग के अनुरूप सेमीकंडक्टर का उत्पादन नहीं हो पा रहा है; जिससे इलेक्ट्रॉनिक्स ऑटोमोबाइल सेक्टर के उत्पादन में निरंतर कमी आ रही है ;कंप्यूटर; मोबाइल;और इलेक्ट्रॉनिक सर्किट का उपयोग करने वाले लगभग सभी उद्योगों पर इसका प्रभाव पड़ा है!
वैश्विक स्तर पर सेमीकंडक्टर या माइक्रोचिप के उत्पादन में आई कमी से; सारे विश्व के विनिर्माण उद्योग के सामने एक बड़ी समस्या खड़ी कर दी है! उत्पादन के अन्य साधनों की उपलब्धता के बावजूद माइक्रो चिप के अभाव में मांग के अनुरूप उत्पादन में जो कमी हो रही है उसे ही इस समस्या के रूप में देखा जा रहा है! वैश्विक स्तर पर मांग के अनुरूप सेमीकंडक्टर का उत्पादन नहीं हो पा रहा है; जिससे इलेक्ट्रॉनिक्स ऑटोमोबाइल सेक्टर के उत्पादन में निरंतर कमी आ रही है ;कंप्यूटर; मोबाइल;और इलेक्ट्रॉनिक सर्किट का उपयोग करने वाले लगभग सभी उद्योगों पर इसका प्रभाव पड़ा है!
क्या है माइक्रोचिप/ सेमीकंडक्टर का उपयोग
माइक्रोचिप किसी भी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के सर्किट में लगने वाला वह महत्वपूर्ण कंपोनेंट होता है जिससे उस डिवाइस की कार्य क्षमता में वृद्धि आकार में कमी लागत में कमी और उपयोग के लिए आसान बनाया जा सकता है, आज के आधुनिक युग में बिजली से चलने वाले लगभग सारे उपकरणों में इसका उपयोग होता है जैसे बल्ब; फ्रीज; हीटर; टीवी; कंप्यूटर; मोबाइल; फोन आदि इसके उपयोग से किसी सर्किट में भेजे जाने वाले इलेक्ट्रॉनों की मात्रा और समय को नियंत्रित किया जाता है! जिससे एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस स्मार्ट डिवाइस में कन्वर्ट हो जाता है; एक सर्किट में एक या एक से अधिक माइक्रोचिप हो सकते हैं!
विज्ञान की भाषा में कहें तो चालक और कुचालक के मध्य यह अर्धचालक(ेमउपबवदकनबजवत) होता है; जो ना तो इलेक्ट्रॉनों को निर्बाध गति से प्रभावित प्रवाहित होने देता है और ना ही उनके प्रवाह में बाधा उपस्थित करता है; बल्कि इसकी सहायता से इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह को नियंत्रित किया जाता है! अर्धचालक के रूप में सिलिकॉन को सबसे उपयुक्त पाया गया है! और यह पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में रेत के साथ पाया जाता है!
माइक्रोचिप के उपयोग से इलेक्ट्रॉनिक जगत में नई क्रांति आ चुकी है; अब सारे उपकरण आकार में छोटे कम विद्युत खपत वाले और बहुत ज्यादा कार्य कुशल हो गए हैं!
सेमीकंडक्टर का क्या है इतिहास
सेमीकंडक्टर का इतिहास बहुत पुराना नहीं है; या हम यह कहें कि सेमीकंडक्टर की खोज हुए बहुत अधिक समय नहीं गुजरा है! साठ के दशक में इसकी खोज हुई थी!1958 में इसका आविष्कार रॉबर्ट नाइस और जैक किलवा नाम के दो वैज्ञानिकों ने किया था जो अलग-अलग कंपनियों के लिए काम करते थे; बाद में इन्हीं कंपनियों ने माइक्रोचिप को पेटेंट कराने के लिए आवेदन किया; और अपने दावे प्रस्तुत किए जांच पड़ताल के बाद इन दोनों कंपनियों को सम्मिलित रूप से पेटेंट का अधिकार प्राप्त हुआ! पहली बार 1961 में इसका उपयोग इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में किया गया; आज से अगर इसकी तुलना करें तो आज के माइक्रोचिप ज्यादा छोटे और ज्यादा कार्य कुशल हो गए हैं!
सबसे पहले माइक्रोचिप में एक ट्रांजिस्टर एक कैपेसिटी और दो रजिस्टर थे और आज के माइक्रोचिप में 100 मिलियन रजिस्टर से ज्यादा असेंबल्ड होते हैं
सेमीकंडक्टर का उत्पादन किन देशों में होता है
माइक्रोचिप का उत्पादन के दो पक्ष है! माइक्रोचिप का डिजाइन और दूसरा उसका निर्माण; इनका डिजाइन तो बहुत सारे देशों में होता है; जिनमें भारत भी सम्मिलित है! डिजाइनर चिप का डिजाइन तैयार करके उन कंपनियों को दे देते हैं जो इनका निर्माण करती हैं कंपनियां इन डिजाइन के आधार पर चिप का उत्पादन व्यापक पैमाने पर करती हैं! चिप डिजाइन करने वाली मुख्य कंपनियां है और आदि!
सेमीकंडक्टर का उत्पादन मुख्यतः अमेरिका; चीन; ताइवान; जापान आदि देशों में होता है! एक्सपर्ट के अनुसार; दुनिया की सबसे एडवांस सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कैपेसिटी के मामले में ताइवान की वैश्विक हिस्सेदारी 90ः है!
सेमीकंडक्टर के उत्पादन में क्यों आ रही है समस्या
एक महत्वपूर्ण सवाल यह भी उठता है कि माइक्रोचिप का उत्पादन और उपयोग प्रारंभ हुए 50 वर्षों में कभी भी इन के उत्पादन में कमी दर्ज नहीं हुई तो ऐसा पहली बार क्यों हो रहा है तो इस समस्या का कोई एक कारण नहीं है इस के निम्न कारण है जो चिप निर्माण को प्रभावित कर रहे हैं !
महामारी (कोविड-19) चाइना वायरस के वैश्विक प्रसार के कारण वर्ष 2020 में लगभग सारे विश्व में लॉकडाउन की स्थिति बन गई; जिससे चिप निर्माण कंपनियों में उत्पादन कार्य प्रभावित हुआ चिप निर्माण कई चरणों में अलग-अलग देशों में भी पूरा होता है; तो अर्ध निर्मित सेमीकंडक्टर फैक्ट्रियों में ही पड़े रह गए उत्पादन के अलग-अलग चरण के लिए उनको दूसरे देशों में भेजना लॉकडाउन के कारण धीमा पड़ गया! वहीं मेडिकल इमरजेंसी के कारण उत्पादक देशों के लोग इस वायरस से किसी न किसी प्रकार से प्रभावित हुए; और उसका सीधा प्रभाव माइक्रो चिप उत्पादन पर पड़ा!
अमेरिका चाइना आर्थिक टकराव
महामारी के पहले से ही चाइना द्वारा अनैतिक तरीके से बौद्धिक संपदा (ब्व्च्ल्त्प्ळभ्ज्) के मामलों का उल्लंघन करके उसकी सस्ती नकल बनाकर आर्थिक लाभ प्राप्त किया; और साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपने सस्ते और घटिया माल को प्रमोट करके उसने अमेरिका; भारत; जापान; और यूरोपीय देशों के उत्पादक इकाइयों को आर्थिक क्षति भी पहुंचाई है ! तब से अमेरिका द्वारा चाइना पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए हैं; अमेरिका ने कई चीनी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया माइक्रोचिप के चरणबद्ध निर्माण में जिन माइक्रोचिप का निर्माण अमेरिका और चीन के बीच होता था; उनका उत्पादन पूरी तरह से ठप पड़ गया है! ताइवान और चाइना के बीच भी टकराव की स्थितियां लगातार बनी हुई है! कोविड-19 के प्रसार के बाद भारत; यूरोप; जापान; आस्ट्रेलिया आदि देशों में चाइनीज कंपनी पर प्रतिबंध लगाया गया; जिसका प्रभाव चिप उत्पादन पर पड़ा; क्योंकि चीनी कंपनियां बड़ी मात्रा में उपभोक्ता वस्तुओं के लिए चिप का उत्पादन करके इन देशों को निर्यात करती थी; जो एक झटके में बंद हो गया!
माइक्रोचिप उत्पादक देशों में सूखा पड़ना
माइक्रो चिप के उत्पादन में पानी का उतना ही महत्व है; जितना कि कृषि उत्पादन में; माइक्रोचिप निर्माण में बहुत ज्यादा साफ पानी की आवश्यकता होती है! वर्ष 2019-20 से ताइवान; कोरिया आदि चिप उत्पादक देशों में सूखा पड़ने के कारण पानी की कमी हो गई है! जिससे माइक्रोचिप निर्माण कार्य अत्यधिक प्रभावित हुआ है!
मांग का अधिकतम होना;
महामारी के बाद से मनोरंजन के साधनों मोबाइल; टीवी; गेमिंग कंसोल;आदि की मांग तेजी से बढ़ी है और उत्पादन में कमी के कारण चिप उपलब्धता की वैश्विक समस्या उत्पन्न हो गई है!
पहले कार; बस आदि ट्रांसपोर्ट के माध्यमों में इस तरह के चिप की आवश्यकता नहीं थी; परंतु वर्तमान में चार पहिया वाहनों के अलावा दुपहिया वाहनों में भी माइक्रोचिप का प्रयोग बढ़ता जा रहा है; और मांग में लगातार वृद्धि हो रही है! एक सामान्य चार पहिया वाहन के निर्माण में लगभग 100 माइक्रोचिप का प्रयोग होता है! इस प्रकार माइक्रो चिप की मांग; इसके उत्पादन की तुलना में कई गुना बढ़ गई है; और सारे विश्व में एक संकट उत्पन्न हो गया है!
सेमीकंडक्टर उत्पादन में भारत के लिए क्या है संभावना ? माइक्रोचिप उत्पादन में आई गिरावट के फलस्वरुप वैश्विक समस्या के निदान और चिप निर्माण में भारत की संभावनाओं के नए द्वार खुल रहे हैं! भारत सरकार ने भी निवेश करने और चिप निर्माण के क्षेत्र में कार्य कर रही है थ्।ठ इकाइयों में निवेश और विशेष छूट देने की घोषणा की गई है साथ ही इसराइल; ताइवान; और दक्षिण कोरिया जैसे देशों की बड़ी कंपनियों से करार किया गया है; ताकि भविष्य में चिप निर्माण का मार्ग भारत में प्रशस्त हो सके !
ऐसा नहीं है कि भारत में माइक्रो चिप का निर्माण नहीं हो रहा है इसरो; टाटा; विप्रो जैसी कंपनियां अपने लिए चिप का निर्माण कर रही है; लेकिन यह माइक्रोचिप कुछ खास कंपोनेंट के साथ ही लगाए जा सकते हैं! और इनका सार्वभौमिक प्रयोग वर्तमान में संभव नहीं है!
भारत में चिप निर्माण की चुनौतियों को हम इस रूप में भी देख सकते हैं; कि यह सिर्फ सेमीकंडक्टर की भौतिक रचना मात्र नहीं है! इसे हम सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम के रूप में समझ सकते हैं! जिसमें
1) चिप डिजाइनिंग 2)
चिप का उत्पादन या निर्माण और 3) चिप सॉफ्टवेयर है ! वैश्विक स्तर पर कंपनियां चिप का डिजाइन बनाती है! वही टीसीएस, सैमसंग और इंटेल आदि कंपनियां इसका निर्माण या उत्पादन करती है! यदि भारत में डिजाइनिंग और उत्पादन संभव हो भी जाए तो सॉफ्टवेयर को लेकर एक बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है! क्योंकि सॉफ्टवेयर बनाने वाले उन्हीं के लिए सॉफ्टवेयर बनाते हैं; जिसका उत्पादन अब तक होता रहा है!
एक बड़ी समस्या माइक्रोचिप निर्माण को लेकर यह भी है; कि इनके लिए लगने वाले मैन्युफैक्चरिंग प्लांट की लागत 10 बिलियन डॉलर या उससे भी अधिक होती है! साथ ही हर 2 से 4 साल में उस प्लांट को अपग्रेड भी करने की आवश्यकता होती है; बहुत सारी लागत के बावजूद लाभ तभी संभव है जब वैश्विक स्तर पर बड़े निर्माताओं द्वारा माइक्रोचिप को स्वीकार किया जाए और इसके उत्पादन के बड़े आदेश प्राप्त हो; और इस क्षेत्र में पहले से चिप उत्पादन की इकाइयां काम कर रही है उनके बीच यह कठिन कार्य होगा !
माइक्रोचिप निर्माण इकाइयों के लिए निर्बाध विद्युत सप्लाई और साफ पानी की बड़ी मात्रा की आवश्यकता होती है! भारत में इस कार्य में पानी की कमी एक बड़ी बाधा हो सकती है !
भारत में सिलिकॉन की कमी भी माइक्रो चिप के उत्पादन में एक बड़ी समस्या हो सकती है! उत्पादन यूनिट लगाने के बाद भी सिलिकॉन के लिए भारत को दूसरे देशों पर निर्भर रहना होगा !
इस प्रकार हम कह सकते हैं; कि सेमीकंडक्टर चिप के निर्माण क्षेत्र में भारत के लिए अपार संभावनाओं के साथ-साथ चुनौतियां भी कम नहीं है; फिर भी जब देश को अरबों डॉलर के चिप विदेश से आयात करने पड़ते हैं तो निश्चित ही भविष्य में इसकी मांग और बढ़ेगी ऐसी स्थिति में इसके स्वदेशी उत्पादन की ओर कदम बढ़ाने का यह सुनहरा अवसर हो सकता है!
वाहन निर्माण उद्योग क्यों है; ज्यादा प्रभावित
वाहन निर्माण उद्योग सेमीकंडक्टर के उत्पादन में आई कमी से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं! इसका मुख्य कारण वाहन निर्माण में लगने वाले चिप के निर्माण में आई बाधा है! हम कह सकते हैं कि वाहनों में लगने वाले चिप के उत्पादन में ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है; अपेक्षाकृत दूसरे अन्य उपकरणों में लगने वाले माइक्रोचिप की तुलना में !
आधुनिक वाहनों में इलेक्ट्रॉनिक ब्रेकिंग सिस्टम; ऑटोमेटिक ब्रेकिंग सिस्टम मेमोरी सीट अडांस सिस्टम आदि से लैस होते हैं! इन सब स्मार्ट डिवाइस के फंक्शन के लिए सेमीकंडक्टर चिप का प्रयोग बड़ी मात्रा में वाहनों में किया जा रहा है! वाहनों के में औसतन 120 चिप का प्रयोग किया जाता है !इसके वैश्विक स्तर पर वाहनों की मांग के विपरीत माइक्रो चिप का उत्पादन न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है!
भारत के लिए इस क्षेत्र में संभावनाएं अधिकतम है! क्योंकि जहां आधुनिक माइक्रोचिप 3 माइक्रो द.उ.तक के निर्मित हो रहे हैं! वहीं वाहनों में 30 से 80 माइक्रो द.उ. तक के माइक्रोचिप का प्रयोग होता है; जिसका उत्पादन तकनीकी रूप से आसान हो सकता है; साथ ही इसके उत्पादन के लिए कम लागत और अपेक्षाकृत कम जटिल फैब यूनिट की आवश्यकता होगी