Unparliamentary Words: असंसदीय शब्दों की सूची को लेकर छिड़े विवाद को लेकर लोकसभा स्पीकर ने तस्वीर साफ करने की कोशिश की है. लोकसभा स्पीकर ओम बिरला (Om Birla) ने मीडिया से बात करते हुए कहा है कि देश में भ्रम नहीं होना चाहिए. किसी शब्द को बैन नहीं किया है. जिन शब्दों को विलोपित की लिस्ट में शामिल किया गया है उसकी पूरी डिक्शनेरी है जिसमें 1100 पन्ने हैं. साल 1954 से अबतक समय समय पर निकाला जाता है. 2010 से हर साल यह निकाला जाता है.
किस संदर्भ में बोले गए शब्द?
ओम बिरला ने कहा कि जो शब्द अ-संसदीय शब्द की सूची में शामिल किए गए हैं, वे वही शब्द हैं जो किसी विधानसभा में या किसी भी सदन में कहे गए हैं और उनको कार्यवाही से उस दौरान निकाला गया है. लेकिन साथ ही लोकसभा स्पीकर ने साफ किया कि उस दौरान वह शब्द किस संदर्भ में कहा गया है, यह मायने रखता है. ऐसा नहीं है कि वह शब्द लोकसभा या राज्यसभा की कार्यवाही में बोला नहीं जा सकता.
कैसे होता है तय?
शब्द किस संदर्भ में बोला जा रहा है उसी के आधार पर लोकसभा स्पीकर खुद से या किसी सदस्य की शिकायत पर यह तय करते हैं कि कौन सा शब्द- असंसदीय बोला गया है और उसको कार्यवाही से हटाया जाए या नहीं. साथ ही स्पीकर की तरफ से कहा गया कि सदन के अंदर किसी सांसद को कोई बात कहने पर कभी कोई कार्यवाही नहीं हो सकती है. अगर कोई गलत बात बोलता है तो देश देखेगा.
घड़ियाली आंसू से आपत्ति?
मीडिया की तरफ से जब सवाल पूछा गया कि घड़ियाली आंसू वाले शब्द को भी असंसदीय शब्दों की डिक्शनरी में रखा गया है तो क्या इस पर पाबंदी है? इसको लेकर लोकसभा स्पीकर ने साफ किया है कि घड़ियाली आंसू शब्द पर पाबंदी नहीं है, ना ही किसी दूसरे शब्दों पर है. सिर्फ यह इस बात पर निर्भर करता है कि इस शब्द का उपयोग किस संदर्भ में किया जा रहा है. तभी यह तय होगा कि यह शब्द आ संसदीय है या नहीं और इसको कार्यवाही से निकाला जाए या नहीं.
हर साल जारी होती है सूची
लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने कहा कि 1954 से लगातार हर साल असंसदीय शब्दों की सूची एक किताब के रूप में जारी की जाती है. 2009 तक जो किताब बनी, उसमें उन शब्दों को रखा गया है जो कभी ना कभी संसदीय कार्यवाही से हटाए गए. उसके बाद लोकसभा सचिवालय की तरफ से हर साल अनपार्लियामेंट्री शब्दों की सूची जारी की जाती है. अभी जो सूची जारी की गई वह कोविड-19 के चलते देरी से हुई. यह साल 2021 की रिपोर्ट है.