S-400 Missile System : रूस से एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम (S-400 Missile Defense System)खरीदने की भारत की कोशिशों का शुरुआती दौर में अमेरिका ने विरोध किया था। अब उसने ही संसद में बिल पास कर उसे CAATSA (काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सेंक्शन्स एक्ट) से छूट दी है। अमेरिका का यह फैसला ऐसे वक्त में आया है, जब भारत की ओर से यूक्रेन युद्ध (Ukraine war)को लेकर भी रूस के खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं की गई है। एक तरफ भारत ने एस-400 डील से कदम पीछे नहीं हटाए और दूसरी तरफ यूक्रेन युद्ध पर रूस को मूक समर्थन भी दिया। ऐसे में अमेरिका की भारत को लेकर इस मेहरबानी की वजह क्या है? यह समझने की जरूरत है।
संसद से पारित इस बिल पर अभी राष्ट्रपति जो बाइडेन के हस्ताक्षर बाकी हैं, जो अब औपचारिकता भर है। यह बिल भारत को विशेष रूप से रूस से S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदने के लिए प्रतिबंधों से राहत देता है। भारत ने इस डिफेंस सिस्टम को 2018 में रूस से पांच अरब अमेरिकी डॉलर में ख़रीदा था। उस दौरान अमेरिका की ओर से तीखे बयान आए थे और डोनाल्ड ट्रंप की ओर से प्रतिबंध तक की बात कही गई थी। लेकिन अब उसका रुख एकदम अलग है और उलटे संसद से बिल पास कर वह राहत देने जा रहा है। यही नहीं दिलचस्प बात यह है कि इसी S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की खरीदने की कोशिश करने पर उसने तुर्की पर बैन लगा दिया था।
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भारत और अमेरिका के मामलों को समझने वाले एक्सपर्ट्स मानते हैं कि यह एक कूटनीतिक से ज्यादा रणनीतिक कदम है। दरअसल रूस को रोकने में भले ही भारत ने अमेरिका साथ नहीं दिया है, लेकिन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के साथ शक्ति संतुलन में भारत का अहम रोल हो सकता है। ऐसे में अमेरिका भारत जैसे अहम साझीदार को खोकर इस इलाके में अकेला नहीं पड़ना चाहता। खासतौर पर पाकिस्तान का झुकाव तेजी से चीन की ओर बढ़ा है। ऐसे में अफगानिस्तान का मसला हो या फिर चीन के मुकाबले शक्ति संतुलन स्थापित करने की कोशिश हो, उसे भारत की सख्त जरूरत है। यही वजह है कि तुर्की जैसा रवैया उसने भारत के साथ नहीं दिखाया और नरम पड़ गया।
भारत को राहत तो फिर तुर्की से अमेरिका को क्या दिक्कत?
दरअसल तुर्की के साथ अमेरिका के रिश्ते बेहद जटिल हैं। एक तरफ तुर्की नाटो संगठन का सदस्य है, जो यूक्रेन को मदद कर रहा है। वहीं दूसरी तरफ रूस से भी उसके अच्छे संबंध हैं और इसी का फायदा उठाते हुए उसने हाल ही में यूक्रेन और रूस के बीच एक समझौता कराया है। इस समझौते के बाद यूक्रेन की ओर से गेहूं का निर्यात करना आसान हो जाएगा। ऐसे में अमेरिका ने उस पर इसलिए बैन लगाए ताकि उससे मिली रक्षा तकनीकों को वह रूस को ट्रांसफर न कर सके। कहा जा रहा है कि अमेरिका को आशंका थी कि एफ-35 फाइटर जेट्स में इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक से छेड़छाड़ की जाएगी या शायद एस 400 डिफेंस सिस्टम के ज़रिये इसे डिकोड कर लिया जाएगा।
क्यों चीन समेत तमाम देश S-400 खरीदना चाहते हैं
रूस के बनाए S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम को सुरक्षा के लिहाज से बहुत कारगर माना जाता है। यह मिसाइल हमलों को रोकने का अब तक का सबसे अडवांस सिस्टम है। यह एक मोबाइल सिस्टम है यानी सड़क के ज़रिए इसे लाया-ले जाया सकता है। इसकी मोबिलिटी इतनी आसान है कि चंद मिनटों में ही इसे तैनात किया जा सकता है।