रायपुर। CG NEWS छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राज्य में कृषि की लागत को कम करने, विषरहित खाद्यान्न के उत्पादन तथा जैविक खेती को बढ़ावा देने की लगातार सार्थक पहल की जा रही है। छत्तीसगढ़ में रासायनिक उर्वरकों (chemical fertilizers) के विकल्प के रूप में जैविक खाद की उपलब्धता और इसके उपयोग के प्रभावी परिणामों को देखते हुए अब रासायनिक कीटनाशकों का खेती में उपयोग कम करने के उद्देश्य से गौमूत्र कीट नियंत्रक उत्पाद (Cow urine pest control products) तैयार कर किसानों को सस्ते दर पर उपलब्ध कराने की प्रभावी पहल शुरू कर दी गई है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की विशेष पहल पर राज्य में आगामी 28 जुलाई हरेली पर्व के दिन से गौठानों में गौमूत्र की खरीदी और इससे कीट नियंत्रक उत्पाद तैयार किए जाने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। प्रथम चरण में राज्य के सभी जिलों के चिन्हिंत गौठानों में 4 रूपए लीटर की दर से गौमूत्र की खरीदी गौठान समितियां करेंगी, जिससे महिला स्व-सहायता समूह की प्रशिक्षित महिलाएं गौमूत्र कीट नियंत्रक, जीवामृत (ग्रोथ प्रमोटर) तैयार करेंगी। महिला स्व-सहायता समूहों द्वारा तैयार गौमूत्र कीटनाशक उत्पाद, जीवामृत किसानों को बाजार में मिलने वाले रासायनिक कीटनाशक के मूल्य की तुलना में एक तिहाई कीमत से भी कम में उपलब्ध कराए जाएंगे।
गौमूत्र कीटनाशक बाजार में मिलने वाले रासायनिक पेस्टीसाइड का बेहतर और सस्ता विकल्प है। इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता, रासायनिक कीटनाशक से कई गुना अधिक होती है। खेतों में इसके छिड़काव से सभी प्रकार की कीटों पर नियंत्रण में मदद मिलती है। पत्ती खाने वाले, फल छेदन तथा तना छेदक जैसे अधिक हानि पहुंचाने वाले कीटों के प्रति इसका उपयोग अधिक लाभकारी है। गौमूत्र कीटनाशक, खाद्य पदार्थ की गुणवत्ता और उसके स्वाद को बनाए रखने, खेती की उर्वरा शक्ति के साथ-साथ कृषि पर्यावरण एवं स्वास्थ्य के लिए बेहतर है।
गौमूत्र कीटनाशक बनाने की विधि – गौमूत्र कीट नियंत्रक उत्पाद आसानी से बनाया जा सकता है। इसको बनाने के लिए 10 लीटर गौमूत्र में 2-3 किलो नीम की पत्ती के साथ सीताफल, पपीता, अमरूद एवं करंज की 2-2 किलो पत्तियां मिलाकर उबालना होता है। जब इसकी मात्रा 5 लीटर तक हो जाए तब इसे छान कर ठण्डा कर बोतल में पैकिंग की जाती है। इस तरह 5 लीटर गौमूत्र कीटनाशक तैयार हो जाता है।
उपयोग का तरीका – दो से ढाई लीटर गौमूत्र कीटनाशक को 100 लीटर पानी में मिलाकर सुबह-शाम खड़ी फसल पर 10 से 15 दिनों के अंतराल में छिड़काव करने से फसलों का बीमारियों एवं तना छेदक कीटों से बचाव होता है। गौमूत्र कीटनाशक का उपयोग कीट का प्रकोप होने के पूर्व करने पर अधिक प्रभावशाली होता है। यह रोग नियंत्रक बायो डिग्रेबल है, जो वातावरण के लिए पूर्णतः सुरक्षित है। इसके उपयोग से कीटों में इसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न नहीं होती है, क्योंकि यह मल्टीपल एक्शन से कीट नियंत्रण करता है। गौमूत्र कीटनाशक से मित्र कीटों को हानि नहीं होती है।
गौमूत्र कीटनाशक की प्रति लीटर लागत- कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार गौमूत्र कीटनाशक बनाने पर प्रतिलीटर खर्च 39 रूपए की लागत आती है, जिसमें इसके एक लीटर पैकेजिंग का खर्च 15 रूपए शामिल है। यदि केन में पैकेंजिंग की जाए तो इसकी लागत और कम हो जाती है। प्रदेश में कृषकों को गौमूत्र कीटनाशक 50 रूपए प्रति लीटर की दर से उपलब्ध कराए जाना प्रस्तावित है, जो कि बाजार में मिलने वाले रासायनिक कीटनाशकों की मूल्य से एक तिहाई से भी कम है।
गोबर और गौमूत्र से बनता है जीवामृत – गौमूत्र से जीवामृत यानि ग्रोथ प्रमोटर भी तैयार किया जाता है। यह एक बायोस्टिमुलेंट है, जो मिट्टी में सूक्ष्म जीवों तथा पत्ते पर छिड़के जाने पर फाइलोस्फेरिक सूक्ष्म जीवों की गति को बढ़ाता है। यह माइक्रोबियल गतिविधि के लिए प्राइमर की तरह काम करता है और देशी केंचुओं की आबादी को भी बढ़ाता है। जीवामृत बनाने के लिए गाय का गोबर 10 किलो, गौमूत्र 10 लीटर, गुड़ एक किलो, बेसन एक किलो, बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी 250 ग्राम तथा 200 लीटर पानी की जरूरत होती है।
जीवामृत बनाने की विधि – एक प्लास्टिक अथवा सीमेंट की टंकी में 200 लीटर पानी भरकर उसमें 10 किलो गाय का गोबर, गौमूत्र डालने के बाद एक किलो गुड़, एक किलो बेसन, बरगद या पीपल के नीचे की 250 ग्राम मिट्टी मिलाते हैं। इसको 48 घंटा छाया में रखकर बोरे से ढक देते हैं, जिससे जीवामृत तैयार हो जाता है। जीवामृत में एजोस्पाइरिलम, फास्फेट सॉल्यूब्ल्यूलाइजिंग माइक्रोब्स, स्यूडोमोनास, ट्राइकोडर्मा, खमीर एवं मोल्ड्स सूक्ष्मजीव बहुतायत मात्रा में उपलब्ध होते हैं। इस जीवामृत का उपयोग केवल 7 दिनों तक किया जा सकता है। जीवामृत का प्रयोग करने से फसलों को उचित पोषण मिलता है और दाने और फल स्वस्थ होते हैं।
सावधानियां एवं प्रति लीटर लागत – जीवामृत बनाने के लिए उपयोग में आने वाले गौमूत्र को धातु के बर्तन में नहीं रखना चाहिए। ताजा गोबर अथवा सात दिन तक छायां में रखे गोबर का ही उपयोग इसके लिए करना चाहिए। जीवामृत बीज बोने के 21 दिन बाद फसल की पहली सिंचाई के साथ किया जाना चाहिए। एक लीटर जीवामृत तैयार करने की अनुमानित लागत 21 रूपए आती है। इसे बोतल में भरकर विक्रय किया जा सकता है। छत्तीसगढ़ में गौठानों में तैयार किए जाने वाले जीवामृत का मूल्य 40 रूपए प्रति लीटर प्रस्तावित है।