बस्तर /बस्तर के इतिहासकार लेखक रूद्रनारायण पाणिग्राही नेबस्तर में बोली जाने वाली बाली का व्याकरण तैयार किया है। वे रंगकर्मी के साथ-साथ अंचल के वरिष्ठ साहित्यकार भी है, उन्होंने वर्ष 1977 से अपना लेखन प्रारंभ किया तथा उनकी रचनाएं स्थानीय अखबार पत्रिकाओं से प्रारंभ होकर राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती आ रही है। आकाशवाणी के लिए उन्होंने लिखना प्रारंभ किया और आज बस्तर की कला-संस्कृति, बोली-भाषा, इतिहास को लेकर 2 दर्जन से भी अधिक किताबें उनकी प्रकाशित हो चुकी है। उनकी अधिकांश किताबें छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी तथा राज्यपाल महामहिम सुश्री अनुसुइया उइके जी के द्वारा विमोचित हुई है और पिछले दिनों साहित्य लेखन के लिए छत्तीसगढ़ के राजधानी रायपुर में उन्हें ‘छत्तीसगढ़ रत्न सम्मान’ से सम्मानित किया गया है। पाणिग्राही बस्तर की हल्बी, भतरी तथा बामनी लोक बोली के विशेषज्ञ माने जाते हैं तथा बस्तर में बोली भाषाओं के संवर्धन के लिए एक सेनानी की भांति काम कर रहे हैं, वे बस्तर से संबंधित प्रत्येक विषयों को लेकर पुस्तक लेखन करना चाहते हैं । पाणिग्रही एक सफल रंगकर्मी भी है और अखिल भारतीय नाट्य प्रतियोगिताओं में भाग लेकर 6 बार राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किया है।
प्रमुख प्रकाशित किताबें
बस्तर दशहरा
हल्बी का व्याकरण
हिंदी-हल्बी शब्दकोश
बस्तर के लोक पर्व
बस्तर की लोकोक्तियां,मुहावरे तथा पहेलियां
ढेलमारू
गदिया
हिंदी-हल्बी गोठ बात
ढालिया खोसा
गोंचा पर्व की रथ यात्रा
हल्बी की लोक कथाएं
भतरी की लोक कथाएं
बांडा बाघ जय गोपाल
के साथ-साथ बच्चों के लिए बाल साहित्य भी प्रकाशित किया है उनके द्वारा अनुदित अनेक किताबें बस्तर की प्राथमिक शालाओं में पढ़ाया भी जाता है ।
प्रकाशनाधीन पुस्तकें
बस्तर, कल आज और कल
बस्तर की हल्बा जनजाति
बस्तर के लोकगीत
बस्तर की लोक कथाएं
एक था चेंदरू
बस्तर की लोक मान्यताएँ
लुप्त होते बोलियों को बचाना हमारा मकसद
बस्तर के संदर्भ में अब तक सबसे अधिक पुस्तकें लिख चुके वरिष्ठ साहित्यकार श्री रूद्र नारायण पाणिग्राही से जब इस बात पर प्रश्न किया गया कि उनका लेखन सिर्फ लोक- भाषाओं या लोग बोलियों पर क्यों ? तो उन्होंने उत्तर दिया कि आज विश्व में प्रतिदिन अनेक बोली भाषाएं लुप्त होती जा रही है बोलियों का इस प्रकार विलुप्त होने की घटना बस्तर में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में घट रही है और जब कोई बोली-भाषा लुप्त हो जाती है तो समाज की शताब्दियों से अर्जित ज्ञान, कला-संस्क़ृति, खान-पान, उनकी वाचिक परम्पराएं सब कुछ मिट जाता है, यही कारण है कि मैंने बस्तर के संदर्भ में लिखना शुरू किया। बोली-भाषाओं को लेकर राष्ट्रीय पटल पर भी अपनी बात रखी रखी है, आगे भी बस्तर की लोक बोलियों के संवर्धन के लिए काम करेंगे।