जगदलपुर। जल, जंगल और जमीन में वनवासियों का ही अधिकार है। वनों में रहने वाले आदिवासी दो दशकों से पेसा कानून के लिए मांग करते रहे है। अठारवीं शताब्दी के अंतिम दशक में बीती सरकार के किट्टू जमीदारों के खिलाफ शुरू हुआ संघर्ष अब जाकर प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के प्रयासों से एवं मंत्रियों के प्रयासों से राज्य में पेसा कानून से नए नियमों को राजपत्रों में प्रकाशित कर दिया गया है। उसका असर बस्तर संभाग के अंतागढ़, केसकाल, भानुप्रतापपुर, कोंडागांव, नारायणपुर, चित्रकूट , जगदलपुर, बस्तर, दंतेवाड़्, बीजापुर, कोण्टा 12 विधानसभा क्षेत्रों में आदिवासयिों को जल, जंगल और जमीन का अधिकार मिल जाएगा। इसके लागू करने से गौर खनीजों पर अधिकार तथा प्रमाण पत्र का देने का अधिकार ग्राम पंचायतों में निर्णय पारित होकर ग्रामसभा में लाया जाएगा। जिसके तहत बुनियादी फैसले वे लेंगे। राजस्व , उद्योग, वन खनीज से संबंधित सभी का फैसले करने का अधिकार ग्रामसभा लेगी। बस्तर में बैलाडीला पहाडिय़ों में अडानी जैसे ग्रुपों द्वारा लिए गए खदानों को दोबारा पाने पसीना बहाना होगा। दूसरी तरफ आदिवासी महासभा के अध्यक्ष मनीष कुंजाम का कहना है कि राज्य सरकार का पेसा कानून तथा केंद्र सरकार का वन्य अधिनियम कानून मात्र संतुष्टि के लिए है इसे पूरी तरह से स्पष्ट नहीं किया गया है जो चुनौती देने पर अदालतों में सुनवाई देने के लिए पूंजपती एवं उद्योगपति बैलाडीला खदानों को लेने के लिए अदालतों में जा सकते है एैसी संभावना है।